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तंत्र साधना का प्रमुख केंद्र है महिषी की मां उग्रतारा

सहरसा। महिषी स्थित सिद्ध पीठ उग्रतारा स्थान तंत्र साधना का प्रमुख केंद्र है। मां की पूजा-अर्चना से ल

By JagranEdited By: Published: Mon, 12 Apr 2021 07:41 PM (IST)Updated: Mon, 12 Apr 2021 07:41 PM (IST)
तंत्र साधना का प्रमुख केंद्र है महिषी की मां उग्रतारा
तंत्र साधना का प्रमुख केंद्र है महिषी की मां उग्रतारा

सहरसा। महिषी स्थित सिद्ध पीठ उग्रतारा स्थान तंत्र साधना का प्रमुख केंद्र है। मां की पूजा-अर्चना से लोगों की मनोकामना यहां अवश्य पूरी होती है। चैत नवरात्र में इसबार कोरोना का असर है। बावजूद मां के दरबार में पुजारी पूजा-अर्चना करेंगे।

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तंत्र साधना का प्रमुख केंद्र माना जाता है

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तंत्र साधकों के अनुसार उग्रतारा माता का ये स्थल तंत्र साधना के लिए काफी महत्वपूर्ण स्थल माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि तंत्र साधक तंत्र सिद्धि कहीं से भी कर लें लेकिन सिद्धि के अंतिम आदेश के लिए उग्रतारा माता के दरबार में आना ही पड़ता है। यहां शारदीय नवरात्र के अष्टमी तिथि को होने वाले निशा पूजन को बड़ी संख्या में साधक गुप्त पूजा करने यहां आते हैं।

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दिन में तीन स्वरूपों में दिखाई देती हैं माता

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ऐसी मान्यता है कि 24 घंटे में माता के तीन स्वरूपों में माता अपने भक्तों को दर्शन देती हैं।मान्यता के अनुसार सुबह के समय बाल्यावस्था में दर्शन देती हैं तो वहीं दोपहर को युवा अवस्था का दर्शन होता है जबकि संध्याकाल में माता शांत और सौम्य वृद्धा अवस्था का दर्शन भक्तों को होता है।

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आध्यात्मिक मान्यता

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यहां के संबंध में आध्यात्मिक मान्यता है कि माता शती का बायां नेत्र भाग यहां गिरा था। वहीं एक मान्यता ये भी है कि मुनि वशिष्ठ ने अपने तपस्या से माता को प्रसन्न कर चीन देश से यहां लाया था। भगवती के तारा से उग्रतारा होने के संबंध में दो धारणा प्रचलित है। पहली धारणा के अनुसार वशिष्ठ मुनि ने माता को प्रसन्न करने के लिए उग्र तपस्या की थी जिस कारण माता का नाम उग्रतारा पड़ा। वहीं दूसरी मान्यता के अनुसार माता अपने भक्तों के उग्र से उग्र व्याधियों का नाश करती हैं इसलिए इन्हें उग्रतारा कहा जाता है।

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ऐतिहासिक मान्यता

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माता उग्रतारा के संबंध में इतिहास कारों का मानना है कि तारा बौद्ध घर्म के बज्रयान शाखा के साधकों की इष्ट देवी हुआ करती थी।बैद्ध काल में यहां बौद्ध महासंध हुआ करता था जिसमें अन्य विषयों के अतिरिक्त तंत्र शास्त्र की विशेष शिक्षा दी जाती थी।पालकाल में ये स्थल अपने विकास के चरम पर था।बौद्ध घर्म के आठ महाबौधी ने यहां साधना कर सिद्धि प्राप्त की थी।वहीं चीनाचार नामक पुस्तक के अनुसार इस स्थल पर बौद्ध और ब्राह्माण दोनों ही विचारधारा के साधक एक साथ साधना किया करते थे।


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