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शहर में ड्रेनेज सिस्टम नहीं हुआ लागू

सहरसा। यूं तो मानसून के आगमन को देखते हुए पहली बार नगर परिषद ने शहर की अधिकांश न

By JagranEdited By: Published: Tue, 02 Jun 2020 05:03 PM (IST)Updated: Tue, 02 Jun 2020 05:03 PM (IST)
शहर में ड्रेनेज सिस्टम नहीं हुआ लागू
शहर में ड्रेनेज सिस्टम नहीं हुआ लागू

सहरसा। यूं तो मानसून के आगमन को देखते हुए पहली बार नगर परिषद ने शहर की अधिकांश नालियों की सफाई कार्यो को अंतिम चरण में पहुंचा दिया है। किंतु शहर में ड्रेनेज सिस्टम नहीं होने से जलजमाव की समस्या अभी भी गहरायी हुई है। जबकि सरकार ने जलनिकासी व्यवस्था के तहत नाला निर्माण के लिए करोड़ों रुपये आवंटित कर चुकी है। हालांकि इस वर्ष कोरोना वायरस को लेकर लागू लॉकडाउन में शहर की सड़कें सूनी रहने पर नगर परिषद ने इस दौरान ही शहर के नालों की सफाई का काम शुरू कर दिया था। इसका परिणाम है कि शहर के मुख्य बाजारों के अधिकांश नालों की सफाई का काम पूरा कर लिया गया है।

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लॉकडाउन के दौरान दुकानें बंद रहने एवं लोगों की आवाजाही पूर्णत: बंद रहने से सफाईकर्मियों ने पहली बार नाला उड़ाही अच्छे ढंग से हुई। नाला में जमा गंदगी और कचरा को नाला से निकालकर सड़क पर रख दिया। बाद में तीन चार-दिन बाद उसे शहर के बाहर निर्धारित जगहों पर फेंक दिया जाता है। शहर के डीबी रोड, गांधी पथ, पूरब बाजार, गंगजला, दहलान चौक रोड, बंगाली बाजार सहित शहर के अन्य हिस्सों में बने छोटे व बड़े नाला की साफ सफाई पूरी तरह कर दी गयी है। शहर के अन्य मुहल्लों में नाला की साफ-सफाई के काम में मजदूरों की टोली लगी हुई है।

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वुडको ने 51 करोड़ की लागत से बनाया नाला

शहरी क्षेत्र में ही पूरे शहर में जल निकासी के लिए ड्रेनेज सिस्टम लागू करने के लिए 51 करोड़ की राशि से नाला का निर्माण तो किया लेकिन अब तक पूरा नहीं हो पाया है। शहरी क्षेत्र में 12 किमी बड़ा नाला का निर्माण करना था। लेकिन वुडको ने अब तक मात्र छह किमी ही नाला का निर्माण कर पायी है। अगर वुडको द्वारा नाला का निर्माण कार्य पूरा कर लिया जाता है तो उसके बाद जलजमाव की समस्या से शहरवासियों को मुक्ति मिलने की पूरी संभावना है।

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हर वर्ष करोड़ों का बनता है नाला

शहर में हर वर्ष मुख्यमंत्री नली गली योजना अंतर्गत दो करोड़ रुपये से अधिक की लागत से नाला का निर्माण होता है। 40 वार्डों में विभक्त नगर परिषद क्षेत्र में हर वर्ष नाला का निर्माण किया जाता है। लेकिन मुहल्ले में बनने वाले नाला एक बार बनने के बाद कुछ ही दिनों में पूरी तरह ध्वस्त हो जाता है। कुछ ही महीनों में उसका अस्तित्व भी समाप्त हो जाता है। हालांकि शहरी क्षेत्र विशेषकर मुख्य बाजारों में बनने वाले नाला की निकासी का कनेक्शन रहने पर ही उसकी उपयोगिता साबित होती है।

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सहरसा में तो नहीं है कोई फैक्ट्री

सहरसा शहर क्या पूरे जिले में कोई फैक्ट्री नहीं है। जिसका कचरा बाहर निकलता है। सहरसा शहर में लोगों के घर से ही कचरा निकलता है जो शहरवासियों के लिए ही परेशानी बनी हुई है। कचरा को लोग सड़क को ही डस्टबिन समझकर उसे सड़क पर फेंक देते है। हाल के महीने में नगर परिषद ने डोर टू डोर जाकर लोगों को कचरा फेंकने के लिए दो-दो बाल्टी उपलब्ध कराई गई है। जिसके कारण अब बाल्टी से ही सफाईकर्मी घर- घर जाकर कचरा इकट्ठा करते हैं। लोगों की शिकायत रहती है कि सफाईकर्मी उसे शहर के बाहर न फेंककर शहरी क्षेत्र में सुनसान स्थल पर सड़क किनारे फेंक कर चले जाते है। वहीं कचरा से उठते दूषित प्रदूषण से लोगों का जीना मुहाल हो गया है।

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बारिश में सड़क पर रहता है पानी

बारिश के दिनों में बीच सड़क पर ही नाला का गंदा पानी जमा हो जाता है। शहर में कुछ हिस्सों का ही नाला कनेक्शन एक दूसरे नाला से है। जिस कारण पानी बहकर निकल जाता है। लेकिन अधिकांश जगहों पर तो नाला का पानी भरकर बीच सड़क पर ही जमा हो जाता है। शहर के मुख्य बाजार डीबी रोड तो हल्की बारिश में सड़क पर पानी का जमाव हो जाता है।


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