कोरोना के बहाने कुरीतियों पर लग रहा है लगाम
सहरसा। कोरोना संक्रमण (कोविड- 19) से एकतरफ जहां जनमानस पर गहरा संकट मंडरा रहा है
सहरसा। कोरोना संक्रमण (कोविड- 19) से एकतरफ जहां जनमानस पर गहरा संकट मंडरा रहा है। हर आम और खास दहशत के साये में जी रहे हैं, वहीं लॉकडाउन के बहाने कुछ सामाजिक कुरीतियों पर भी विराम लग रहा है। भय से ही सही लोग शादी, मुंडन, उपनयन और खासकर मृत्युभोज में हुजूम बनाकर जाने से परहेज कर रहे हैं। इससे जहां इस कुरीतियों पर अंकुश लग रहा है, वहीं असहाय लोग का शादी-श्राद्ध आदि में अपव्यय बचने के कारण जमीन- जायदाद बिकने से बच रहा है। इससे खासकर गरीब तबके के लोगों में बेहद प्रसन्नता है। ऐसे लोग चाहते हैं कि कोरोना संक्रमण काल में ही यह सामाजिक कुरीति समाप्त हो जाए। जिससे पैसे के बल पर बड़ा भोज कर अपना स्टेटस दिखाने वाले लोग गरीब को इसके कारण नीचा दिखाने का साहस नहीं कर सके।
सौरबाजार प्रखंड के एक व्यक्ति नाम नहीं लिखने की शर्त पर कहते हैं कि उनके पिता के इलाज में पांच कट्ठा जमीन सूदभरना लग गया। उनकी मृत्यु के बाद उसी जमीन को बेचने की तैयारी थी, परंतु लॉकडाउन की वजह से लोगों ने भोज में आने से खुद मना कर दिया, जिससे उनकी जमीन बच गई। जब पैसा होगा उसे सूदभरना मुक्त करा लेंगे। सहरसा नगर के एक व्यक्ति आदर्श विवाह तय होने के बावजूद बारातियों के स्वागत के लिए पैसे के प्रबंध के लिए अपनी पुश्तैनी जमीन बेचने की तैयारी में थे। लॉकडाउन की वजह से दोनों परिवार के कुछ सदस्यों ने गुपचुप तरीके से शादी संपन्न कराया, जिससे उनकी यह संपत्ति सुरक्षित रह गई। लॉकडाउन के दौरान ऐसे दर्जनों शादी, श्राद्ध् आदि हुए, जिसमें मामूली खर्च पर गरीब लोगों की इज्जत बच गई। अधिकांश लोगों की इच्छा है कि इसी बहाने यह कुरीतियां समाज से बाहर हो जाए।
समाजशास्त्री डा. विनय चौधरी कहते हैं कि हमारे देश में सोशल डिस्टेंस संभव नहीं है। यह इससे फिजिकल डिस्टेंस का रूप दिया जा सकता है। अन्य देशों के विपरीत हमारे देश में लोग परिवार और समाज के हित का ज्यादा ध्यान देते हैं। ऐसे में परिवार और समाज के हित में लोगों ने सामूहिक भोज की अनदेखी कर एक तरह से कुरीतियों को तिलांजलि देने का मन बनाया है। कुरीतियों को समाप्त करने में इस बहाने एक सकारात्मक ऊर्जा मिली। उम्मीद है कि यह अन्य लोगों को भी आनेवाले दिनों में पसंद आएगा। गायत्री शक्तिपीठ के ट्रस्टी डा. अरूण कुमार जायसवाल कहते हैं कि हमारे देश में लोग परिवार- समाज और विश्व कल्याण की भावना रखते हैं। हम इसके लिए समय- समय पर यज्ञ- हवन भी करते हैं। खासकर मृत्युभोज एक बहुत बड़ी सामाजिक कुप्रथा है। पीड़ित परिजन के कांधे पर खर्च का बोध डालकर लोग निर्लज्जतापूर्वक भोजन का आनंद लेते हैं। लॉकडाउन के बहाने ही अगर इस दिशा में लोगों का ध्यान जाएगा, तो महामारी से निपटने के बाद हमें इस कुरीति को समाप्त होने का सुखद अहसास भी होगा। परंतु, जरूरी है कि लोग इस मुद्दे पर गंभीरता से विचार करे।