तराई हो रही पराई, टूट रहा बेटी-रोटी का रिश्ता
सहरसा। कहने को भले ही दो देश हैं भारत और नेपाल। लेकिन तराई के इलाके की संस्कृति मिथि
सहरसा। कहने को भले ही दो देश हैं भारत और नेपाल। लेकिन तराई के इलाके की संस्कृति मिथिलांचल जैसी ही है। खान-पान, बोल-चाल, रहन-सहन में समानता दो अलग देश होने का एहसास नहीं होने देते हैं। एक दशक पूर्व तक शादी के मौसम में सीमा की दोनों तरफ बरातियों का खूब आना-जाना भी लगा रहता था। लेकिन नेपाल में लोकतंत्र बहाली को लेकर चल रहे आंदोलन व रेल संपर्क टूटने से तराई अब पराई सी होने लगी है। अब दोनों देश के बीच शादियों में कमी आ रही है।
1854 में अंग्रेज सरकार द्वारा भारत में रेल सेवा प्रारंभ की गई। धीरे-धीरे रेलवे का विस्तार होता गया। कोसी का इलाका भी इससे अछूता नहीं रहा। सहरसा से फारबिसगंज, फारबिसगंज से जोगबनी तक रेल सेवा चल रही थी। सहरसा में जनप्रतिनिधियों की पहल पर 2005 में बड़ी रेल लाइन का विस्तार हुआ। सहरसा-मानसी रेलखंड पर बड़ी रेल लाइन की पटरी बिछी। इसके बाद सहरसा-फारबिसगंज के बीच बड़ी रेल लाइन के विस्तार की योजना थी। इसी बीच वर्ष 2008 में कुसहा त्रासदी आई तो सहरसा-फारबिसगंज रेलखंड पर प्रतापगंज के पास रेल पटरियां पूरी तरह ध्वस्त हो गई। रेल मंत्रालय ने उसे दुरुस्त करने की बजाय बड़ी रेल लाइन की पटरी बिछाने की घोषणा की। पहले चरण में राघोपुर-फारबिसगंज के बीच मेगा ब्लॉक लिया गया था। फिर 24 दिसंबर 2016 को सहरसा-सुपौल के बीच भी अमान परिवर्तन के लिए मेगा ब्लॉक की घोषणा कर दी गई। लेकिन आज भी रेल सेवा चालू नहीं हो सकी है।
शादी के सीजन में नहीं आता बुलावा
सहरसा निवासी संजय ¨सह बताते हैं कि उनकी शादी नेपाल के कोलयारी में ठाकुर प्रसाद ¨सह की पोती से हुई थी। शादी के सीजन में एक बार बाराती या सराती बनने का जरूर मौका मिलता था। इस बहाने ससुराल हो आते थे। लेकिन नेपाल के आंतरिक हालात बिगड़ने लगे। रही सही कसर कुशहा त्रासदी ने पूरी कर दी। बीते एक दशक से उन्हें इस इलाके में किसी शादी की जानकारी नहीं है। सुपौल निवासी मनोज ¨सह फुद्दी की शादी नेपाल के राजविराज में हुई थी। ससुराल जाने के लिए रेलवे काफी सुविधाजनक था। सुपौल से राघोपुर और फिर वहां से भीमनगर होते हुए राज-विराज। लेकिन अब आने-जाने में काफी समस्या है। यही कारण है कि अब नेपाल के लोग भारत में और भारत के लोग नेपाल में शादी करने से परहेज करने लगे हैं।