सात वर्ष बाद मजदूरों की आवक से गुलजार होगी करवंदिया पहाड़ी
रोहतास। अगर विभाग चिह्नित पत्थर भूखंड को बंदोबस्त करने में पूरी तरह सफल रहा तो वीरान प
रोहतास। अगर विभाग चिह्नित पत्थर भूखंड को बंदोबस्त करने में पूरी तरह सफल रहा तो वीरान पड़ी करवंदिया पहाड़ सात वर्ष बाद एक बार फिर मजदूरों की आवक से गुलजार होगा। इससे जहां हजारों को रोजगार मिलेगा, वहीं लाखों परिवार के भरण-पोषण का रास्ता भी साफ हो जाएगा। विभाग द्वारा बंदोबस्ती प्रक्रिया को शुरू किए जाने से कभी पत्थर उद्योग के लिए जाना जाने वाला सासाराम प्रखंड का दक्षिण-पूर्वी इलाका ही नहीं बल्कि पूरे जिले के अलावा समीपवर्ती झारखंड राज्य के हजारों गरीबों को रोजगार के दरवाजे भी खुल जाएगा। साथ ही अमरा-तालाब, करवंदियां-बांसा समेत अन्य स्थानों पर लगने वाले साप्ताहिक बाजार की रौनक भी बढ़ जाएगी। करवंदिया पहाड़ की गिट्टी की बढ़ी मांग :
करवंदिया पहाड़ी की गिट्टी व पत्थर की मांग जिले में ही नहीं अन्य दूसरे जिले के अलावा उत्तरप्रदेश, पश्चिम बंगाल, झारखंड समेत अन्य प्रदेशों में भी है। काले पत्थर के लिए यह पहाड़ मुख्य रूप से जाना जाता है, जिससे सिलवट, जाता समेत अन्य बने सामान बाहर भेजे जाते थे। 2015 में भी शुरू हुई थी बंदोबस्ती प्रक्रिया :
करवंदिया के चिह्नित पत्थर खदानों को नए सिरे से बंदोबस्त करने की प्रक्रिया इसके पहले 2015 में भी शुरू की गई थी। निविदा निकालने से कुछ घंटे पहले वन विभाग द्वारा आपत्ति जताए जाने के कारण जिला प्रशासन को बंदोबस्ती प्रक्रिया को स्थगित करनी पड़ी थी। पट्टा अनुरूप क्रशर मशीनों को मिली थी अनुज्ञप्ति :
पूर्व में नियमानुकूल बंदोबस्त खनन पट्टा के आधार पर जिला प्रशासन ने जिले में चार सौ क्रशर मशीनों को चलाने के लिए अनुज्ञप्ति जारी किया था। लेकिन जैसे-जैसे खनन पट्टों की लीज अवधि खत्म होते गई, वैसे-वैसे क्रशर मशीनों की अनुज्ञप्ति को भी रद किया जाता गया। प्रशासन ने क्रशर मशीनों की अनुज्ञप्ति इसलिए रद करता गया कि उसके हिसाब से जिले में पत्थर की उपलब्धता नहीं थी। अगस्त 2011 में सबसे पहले 31 क्रशर मशीनों की अनुज्ञप्ति रद की गई थी। उसके बाद चरणबद्ध तरीके से सभी क्रशर मशीनों की लाइसेंस रद की गई थी। जबकि अंतिम रूप से अप्रैल 2013 में शेष बचे 121 क्रशर मशीनों की अनुज्ञप्ति को तत्कालीन डीएम संदीप कुमार आर पुडकलकट्टी ने रद किया था। जिसके बाद क्रशर संचालकों को बड़े पैमाने पर आर्थिक नुकसान का भी सामना करना पड़ा था। कारण कि उन्हें 20 वर्ष के लिए प्रशासन की तरफ से लाइसेंस जारी किया गया था। कोई हुआ मालामाल, तो कोई बना कंगाल :
पत्थर खदान बंद होने का साइड इफेक्ट भी पड़ा। करवंदिया पहाड़ को जून 2012 में खनन कार्य से मुक्त सभी क्रशर मशीनों की अनुज्ञप्ति रद करने बाद जिले में पत्थर के अवैध खनन का धंधा भी जोरों पर रहा। कार्रवाई का भय न तो धंधेबाजों में दिखा न इसे बढ़ावा देने वाले सरकारी सेवकों में। सबसे अधिक वैसे क्रशर संचालकों को इसका कोपभाजन बनना पड़ा, जो कार्रवाई के बाद अपने व्यवसाय को बंद कर दिया था। इस धंधे के खेल में धंधेबाज से ले संरक्षण देने वाली पुलिस, प्रशासनिक व विभागीय अधिकारी तक मालामाल हुए। जिसे ले कई सरकारी सेवकों पर कार्रवाई तक की गई। पिछले सात वर्ष के दौरान गोपीबिगहा, जमुहार, रूद्रपुरा समेत अन्य मौजों में अवैध रूप से खुलेआम संचालित हो रहे दर्जनों क्रशर मशीनों पर कई बार कार्रवाई की गई। लेकिन कार्रवाई कर जाने के तुरंत बाद ही संचालक अपने धंधे को चालू कर देते थे। क्रमवार रद की गई क्रशर मशीनों की अनुज्ञप्ति
माह संख्या
अगस्त 2011 31
सितंबर 2011 45
सितंबर 2012 108
अप्रैल 2013 121