संवारने की हुई कवायद, फिर भी नहीं बदली शेरशाह मकबरे की सूरत
कितनों की चाहतें यहीं कुर्बान हुई न जाने कितनी रंजिशें यहां दफन हैं कितनों के नाम यहां की दरो-दीवार पर पैबस्त हैं जो मकबरे को बेनूरी पर रोने को मजबूर करता हैं। ऐसा ही कुछ है शेरशाह के मकबरे के साथ। भारत के मशहूर शासकों में से एक शेरशाह सूरी के मकबरे से सासाराम की पहचान जुड़ी है।
कितनों की चाहतें यहीं कुर्बान हुई, न जाने कितनी रंजिशें यहां दफन हैं, कितनों के नाम यहां की दरो-दीवार पर पैबस्त हैं, जो मकबरे को बेनूरी पर रोने को मजबूर करता हैं। ऐसा ही कुछ है शेरशाह के मकबरे के साथ। भारत के मशहूर शासकों में से एक शेरशाह सूरी के मकबरे से सासाराम की पहचान जुड़ी है। यह मकबरा भारतीय इतिहास के मध्यकालीन युग में बनी ऐतिहासिक इमारतों में वास्तुकला का उत्कृष्ट नमूना है। विश्व में अपने तरीके का यह अनूठा मकबरा पानी में तैरता-सा लगता है। मकबरे के स्थापत्य की तुलना कई इतिहासकार ताजमहल से भी करते हैं, लेकिन इसके तालाब और आसपास फैली गंदगी इसकी खूबसूरती पर दाग छोड़ रही है। इसके प्रदूषित पानी से आसपास की आबो-हवा बदतर हो चुकी है। सूचना के अधिकार के तहत मांगी गई जानकारी के जवाब में यह स्पष्ट है कि इस तालाब की साफ-सफाई बीते तीन दशक से नहीं हो हुई है। तालाब में पानी ले जाने और निकालने के लिए बना इनलेट और आउटलेट भी फिलहाल अनुपयोगी साबित हो रहा है। प्रशासनिक अधिकारी इसका जीर्णोद्धार कराने की बाद से तालाब के गंदे पानी को बाहर निकालने का दावा कर रहे हैं।
आरटीआइ के जवाब में पुरातत्व विभाग द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार पूरे मकबरे के रखरखाव के लिए चार कर्मचारी ठेके पर लगाए गए हैं। एक सफाईकर्मी को पांच हजार रुपये प्रति महीने दिए जाते हैं। मकबरे के रखरखाव पर गत पांच वित्तीय वर्ष में 2.30 करोड़ रुपये से ज्यादा खर्च किए गए हैं। पर्यटकों के टिकटों की बिक्री से करीब 90 लाख रुपये भी अर्जित हुए। मकबरा, इसके तालाब व आसपास की हालत देखकर विभागीय आंकड़े झूठे साबित हो रहे हैं। आरटीआइ कार्यकर्ता अमरेंद्र किशोर कहते हैं कि मकबरे की जो हालात हैं, उसके लिए यही कहना होगा कि पांच वित्तीय वर्षो में वीडियोग्राफी के नाम पर पर्यटकों से वसूली गई करीब चार लाख रुपये से भी यदि रखरखाव कराया गया होता तो हालात इतने बदतर नहीं होते। कहते हैं, एक समय ऐसा भी था जब शहर का पानी खारा होने के कारण इस तालाब का पानी आसपास के लोग भोजन बनाने के काम में लाते थे। लेकिन फिलहाल तालाब का पानी अम्लीय बन चुका है। कुछ साल पहले शहर के एक प्राइवेट स्कूल के छात्रों ने पानी की पीएच वैल्यू को सात से अधिक दर्ज किया था। मकबरे का तालाब दलदल में तब्दील हो रहा है। वर्ष 2006 में तालाब में गंदगी फेंके जाने पर रोक लगाने को लेकर पत्रकार आलोक चमड़िया ने पटना हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर की थी। जिस पर हाईकोर्ट ने सरकार व प्रशासन को तालाब में गंदा पानी गिरने से रोकने का सख्त निर्देश दिया था। उसके आलोक में कुछ हद तक तालाब में प्रदूषण पर रोक लगी थी। बावजूद इसके बरसात में शहर का गंदा पानी तालाब में गिरता रहा। वहीं प्रशासन की ओर से रौजा को फुलप्रूफ सुरक्षा देने की बात भी फिलहाल बेमानी साबित हो रही है। कहते हैं जिलाधिकारी :
शेरशाह मकबरे के संरक्षण के लिए हर संभव उपाय किए जा रहे हैं। हाईकोर्ट के आदेश के बाद से तालाब में मूर्ति विसर्जन और गंदा पानी जाने पर प्रतिबंध लगा दिया गया है। समय-समय पर ऐतिहासिक धरोहर के संरक्षण, साफ-सफाई से लेकर सुरक्षा व्यवस्था की समीक्षा की जाती है। पर्यटकों की सुविधा के लिए मकबरा के सामने पार्किंग जोन भी बनाया गया है।
-पंकज दीक्षित, जिलाधिकारी, रोहतास