..अफगानियों को भी आकर्षित करेगा शेरशाह का रौजा
ब्रजेश पाठक, सासाराम : रोहतास। अफगान स्थापत्य कला का अप्रतिम नमूना शेरशाह रौजा को अगर
ब्रजेश पाठक, सासाराम : रोहतास। अफगान स्थापत्य कला का अप्रतिम नमूना शेरशाह रौजा को अगर बाहर के देशों विशेषकर अफगानिस्तान में प्रचार-प्रसार किया जाए तो वहां से काफी संख्या में पर्यटक यहां आएंगे। इसके विकास के लिए धन की भी कमी नहीं होगी। इतिहास की पुस्तकों में इस ऐतिहासिक इमारत को जितना महत्व मिला है, उतना पर्यटकों को बुलाने पर किसी ने ध्यान नहीं दिया। रविवार इस ऐतिहासिक रौजा के लिए खास दिन रहा। दिल्ली की सल्तनत पर अपनी सैन्य शक्ति व वीरता के बल पर मुगलों को हराकर बैठा शेरशाह सुरी के रौजा पर आज जब सूबे के राज्यपाल दीदार करने पहुंचे, इसकी कलाकृति देख मुग्ध हो गए। अनायास उनके मुंह से ये शब्द निकल गए कि इस रौजा का प्रचार-प्रसार अफगानिस्तान में भी होना चाहिए था।
शेरशाह की चाहत अपना साम्राज्य स्थापित करने को था। हुमायूं की सेना को चौसा के मैदान में शेरशाह ने हरा बाबर द्वारा बनाए गए मुगल साम्राज्य का अंत कर दिया था। जिसके बाद सासाराम का सितारा बुलंद होने लगा। सबसे पहले शेरशाह ने पिता हसन खां का रौजा का काम पूर्ण कराया। उसके बाद अपने भी मकबरे की नींव सासाराम में ही डाली। बाइस एकड़ में फैले आयताकार तालाब के बीच स्थित इस रौजा का दुनिया में अपनी पहचान है। तालाब के पानी को स्वच्छ रखने के लिए इसके पश्चिम की ओर इनलेट व आउटलेट नहरे बनाई गई। तालाब के बीच में 30 फीट ऊंचे चबूतरे पर अष्टपहलदार रौ•ो का निर्माण हुआ । मुख्य कक्ष के भीतर सूरी परिवार की 25 कब्र हैं। बादशाह शेरशाह का म•ार मकबरे के ठीक बीच में है। 22मई 1545 को का¨लजर युद्ध में मौत के बाद महान बादशाह को यहां सुपुर्दे़खाक किया गया था। चबूतरे से 120 फीट ऊंचा और 80 फीट चौड़ा गुंबद की भव्यता देखते ही बनती है। तभी तो अंग्रेज पुरातत्वविद् क¨नघम ने कहा था कि शेरशाह का यह रौजा वास्तुकला की दृष्टि से ताजमहल से भी अधिक सुन्दर है। अब राज्यपाल की इस पहल के बाद पर्यटकों को यह रौजा कितना आकर्षित कर पाएगा, यह भविष्य की गर्त में छिपा है।