जीवन में शांति के लिए कामना का त्याग करें : जीयर स्वामी
हम चाहें कुछ भी जगत की व्यवस्था में लगें परंतु अपनी मृत्यु और काल को याद करना चाहिए। जो व्यक्ति मृत्यु और काल को हमेशा याद करता है वह व्यक्ति इस संसार में रहकर भी संसार की अवस्थाओं से दशाओं से व संसार की व्यवस्थाओं में लिप्त नही होता। नासरीगंज प्रखंड के पड़ुरी में आयोजित ज्ञान महायज्ञ में श्री लक्ष्मी प्रपन्न जीयर स्वामी ने मंगलवार को अपने प्रवचन में यह बातें कही।
हम चाहें कुछ भी जगत की व्यवस्था में लगें, परंतु अपनी मृत्यु और काल को याद करना चाहिए। जो व्यक्ति मृत्यु और काल को हमेशा याद करता है, वह व्यक्ति इस संसार में रहकर भी संसार की अवस्थाओं से, दशाओं से व संसार की व्यवस्थाओं में लिप्त नही होता। नासरीगंज प्रखंड के पड़ुरी में आयोजित ज्ञान महायज्ञ में श्री लक्ष्मी प्रपन्न जीयर स्वामी ने मंगलवार को अपने प्रवचन में यह बातें कही।
कहा कि जब हम काल और मृत्यु को भूल जाते हैं, तब हम इस संसार में रह करके अपने को अंहकार में स्वयं अनीति, अन्याय, कुकर्म, उपद्रव की हम जननी बन जाते हैं। इसलिए मनुष्य को यह बार बार जानना चाहिए की मृत्यु हमारी चोटी को पकड़ी हुई है। कब इसके गाल में चले जाएंगे, इसका कोई ठिकना नहीं है। जो जीवन में शांति चाहता है, वह कामना का त्याग करें।
कर्म करते हुए फल की कामना नही करना चाहिए। कर्म तो करना चाहिए, लेकिन फल रहित होकर करना चाहिए। इसमें आत्म शांति मिलेगी। यदि नहीं भी फल की कामना करेंगे और अच्छे कर्म करेंगे तो फल हमें ही प्राप्त होगा। कामना रहित हो यदि कर्म करते हैं तो उसमें बहुत आनंद आता है। उसमें टेंशन, अटेंशन की संभावना नही रहती है। कामना लेकर कोई काम करते हैं तो थोड़ा टेंशन, डिप्रेशन, शोक और कहीं भटकाव की संभावना बनी रहती है। बिना प्राण प्रतिष्ठा, बिना प्रतिष्ठित मूर्ति की पूजा करने से शोक होता है। शास्त्र में बताया गया है कि दुनिया में एक ही भगवान हैं शालिग्राम। इस भगवान का कभी प्राण प्रतिष्ठा नहीं की जाती है। बाकी जितने भी मनुष्य द्वारा मूर्ति की स्थापना की जाती है, उसकी प्राण प्रतिष्ठा की जाती है। यदि दो चार दिन भोग न लगे, तो फिर से प्राण प्रतिष्ठा कीजिए, नहीं तो बिना प्राण प्रतिष्ठा, बिना प्रतिष्ठित मूर्ति की पूजा करने से शोक व भय होता है। अनेक प्रकार के यश कृति का समापन होता है, अपयश होता है। अत: नहीं करना चाहिए। जो खंडित मूर्ति हो उसकी भी पूजा नहीं करनी चाहिए। अन्यथा भय, शोक, उपद्रव, अशांति होती है। ज्ञान महायज्ञ में आध्यात्म की सरिता में श्रद्धालु गोते लगा रहे हैं।