इन युवाओं ने चीर डाला पहाड़ का सीना, हौसले से बनाई 4 किमी लंबी सड़क
कैमूर जिले में वनवासियों ने अपने मेहनत और लगने से पहाड़ का सीना चीरकर 4 किलोमीटर लंबी सड़क का निर्माण किया है। इससे घंटों का सफर मिनटों में पूरा होने लगा है।
रोहतास [ब्रजेश पाठक]। खम ठोंक ठेलता है जब नर, पर्वत के जाते पांव उखड़। मानव जब जोर लगाता है, पत्थर पानी बन जाता है। राष्ट्रकवि दिनकर की इन पंक्तियों को कुछ इसी अंदाज में चरितार्थ कर दिखाया है कैमूर पहाड़ी पर स्थित चेनारी प्रखंड के औरइयां व भड़कुड़ा के ग्रामीणों ने। इंसानी हौसलों की यह बेजोड़ कहानी फिल्मी नहीं, अक्षरश: हकीकत है।
कैमूर पहाड़ी पर बसे इन गांवों तक जाने के लिए न तो सड़क है न ही बुनियादी सुविधाएं। लगभग चार किलोमीटर की दूरी पर स्थित प्रखंड मुख्यालय आने के लिए 40 किलोमीटर पहाड़ी रास्ता तय करना पड़ता था। पीढिय़ां सरकार व जनप्रतिनिधियों से गुहार लगाते-लगाते गुजर गईं।
जब किसी ने नहीं सुनी तो इन गांवों के उत्साही युवाओं ने माउंटेन मैन दशरथ मांझी से प्रेरणा लेकर चार किलोमीटर तक कैमूर पहाड़ी का सीना चीर सड़क बना डाली। अब गांव से प्रखंड मुख्यालय की दूरी महज चार किलोमीटर ही तय करनी पड़ रही है।
सड़क बन जाने के बाद गांव में ट्रैक्टर, बाइक सहित अन्य गाडिय़ां भी पहुंचने लगी हैं। ग्रामीणों का कहना है कि इससे न केवल बाजार की दूरी कम हुई है बल्कि बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ के साथ सुशिक्षित समाज का निर्माण भी होगा।
खुद की मेहनत से बनाई राह
सदियों से पहाड़ी पर बसे ये गांव लगभग एक दशक तक दस्युओं की शरणस्थली और बाद में नक्सलियों का अभेद्य ठिकाना बने रहे। यहां के वनवासी पीढिय़ों से घोर असुविधा के बीच रह रहे हैं। एक अदद सड़क के अभाव में उन्हें चार किलोमीटर की दूरी तय करने के लिए 40 किलोमीटर का चक्कर लगाना पड़ता था।
सड़क बनाने की राह में वन्य जीव आश्रयणी के नाम पर वन विभाग बड़ा रोड़ा बनकर खड़ा था। ग्रामीण, नेताओं व अधिकारियों के दरवाजे खटखटा कर थक चुके थे। जब कहीं भी सुनवाई नहीं हुई तो लोगों ने खुद भगीरथ बन पहाड़ काट कर सड़क बनाने की ठान ली।
फौलादी इरादों के साथ लड़ रहे वनवासी
नक्सल प्रभावित कैमूर पहाडी के युवा-बुजुर्ग अपने फौलादी इरादों के साथ पिछले एक माह से दिन रात कैमूर पहाड़ी के पत्थरों से लड़ रहे हैं। कुल्हाड़ी, कुदाल, छेनी, हथौड़ा सहित अन्य परंपरागत औजारों से लैस ये वनवासी भले ही सरकार व प्रशासन से विनय कर हार चुके हैं, लेकिन अब वे जिंदगी की जंग खुद की बदौलत जीत रहे हैं।
दर्जन भर गांवों के लिए नहीं है सड़क
कैमूर पहाडी के दर्जनों ऐसे गांव हैं, जिन्हें आजतक सड़क नसीब नहीं हो पाई है। सरकारें आईं-गईं, चुनाव के पहले वादे भी किए गए पर हरबार वादाखिलाफी हुई। अंतत: औरईयां, भुड़कुड़ा, उरदगा, चपरा, कुशुम्हा आदि गांवों के लोग पहाड़ को काट कर खुद सड़क बना डाली। ग्रामीणों का कहना है कि रास्ते के अभाव में उनके गांव के युवक-युवतियों के हाथ भी पीले नहीं हो पा रहे हैं। मैदानी क्षेत्र के लोग यहां रिश्ता बनाने से हिचकते हैं।
कहते हैं ग्रामीण
औरइयां निवासी संतू यादव, काशी कहार, प्रमोद महतो आदि का कहना है कि पहले चेनारी प्रखंड मुख्यालय जाने के लिए नकटी, भवनवा भोखरवा, गोरिया होते हुए 40 किलोमीटर घूम कर जाना पड़ता था। समुद्र तल से डेढ़ हजार फीट ऊंचाई पर बसे इन गांवों के ग्रामीण कई किलो का बोझ सिर पर लेकर ऊबड़-खाबड़ पथरीली राह से गांव पहुंचते थे। रोगी को खाट पर नीचे लाना पड़ता था। इलाज के अभाव में कई मरीजों की जान रास्ते में ही चली जाती है। अब रास्ता बनने के बाद इन मुसीबतों से छुटकारा मिलने की उम्मीद जग गई है।
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डर के साये में बन रहा रास्ता
ग्रामीण सुक्कन मांझी, रीपू खरवार, पवितरी देवी, संतेसर सहित अन्य ने कहा कि भोजन-पानी की चिंता किए बिना कई गांवों के युवा दिनरात अपनी किस्मत बदलने में लगे हैं। विडंबना यह कि एक तरफ जीने मरने की जद्दोजहद है तो दूसरी ओर वन विभाग का डर। विभाग वन संपदा को नुकसान पहुंचाने का आरोप लगाकर मुकदमा करने की धमकी दी जाती है। फिर भी मुंह अंधेरे से लेकर देर शाम तक कर्तव्य पथ पर लोग आगे बढ़ते जा रहे हैं। गया के दशरथ मांझी के बाद रोहतास के इन दशरथ मांझियो के हौसले ने पहाड़ की कठोरता को बौना साबित कर दिया है।
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पहाड़ पर बसे औरइयां, भुड़कुड़ा सहित आधा दर्जन गांवों के युवा, वृद्ध, महिलाओं ने पहाड़ का सीना चीर सड़क का निर्माण किया है । उनके जज्बे को मैं सलाम करता हूं। दशरथ मांझी के बताए रास्ते पर चल यहां के लोग अपनी तकदीर अपने हाथों लिख रहे हैं। कोई भी कानून मानव अधिकार से ऊपर नहीं हो सकता। उन्होंने भावी पीढ़ी का भविष्य बनाने के लिए यह कदम उठाया है। उनके जज्बे को मैं ही नहीं सभी सलाम कर रहे हैं।
ललन पासवान
विधायक, चेनारी विधान सभा
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