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नौकरी से निवृत्ति के बाद भी सेवा को नहीं भूले, बेटियों को निशुल्क दे रहे शिक्षा

कर्म व सेवा जीवन पर्यंत किया जाता है। इसका नौकरी से कोई सरोकार नहीं है। इस उक्ति को चरितार्थ कर रहे हैं सेवानिवृत्त संस्कृत शिक्षक मुनमुन दूबे। श्रीशंकर उच्च माध्यमिक विद्यालय तकिया से 2013 में सेवानिवृत्त होने के बाद आज भी वे अपने सेवा धर्म को नहीं भूले हैं।

By JagranEdited By: Published: Wed, 10 Mar 2021 09:57 PM (IST)Updated: Wed, 10 Mar 2021 09:57 PM (IST)
नौकरी से निवृत्ति के बाद भी सेवा को नहीं भूले, बेटियों को निशुल्क दे रहे शिक्षा
नौकरी से निवृत्ति के बाद भी सेवा को नहीं भूले, बेटियों को निशुल्क दे रहे शिक्षा

जागरण संवाददाता, सासाराम : रोहतास। कर्म व सेवा जीवन पर्यंत किया जाता है। इसका नौकरी से कोई सरोकार नहीं है। इस उक्ति को चरितार्थ कर रहे हैं सेवानिवृत्त संस्कृत शिक्षक मुनमुन दूबे। श्रीशंकर उच्च माध्यमिक विद्यालय तकिया से 2013 में सेवानिवृत्त होने के बाद, आज भी वे अपने सेवा धर्म को नहीं भूले हैं। 70 वर्ष की उम्र में आज भी अपने आवास पर खासकर लड़कियों को हिदी व संस्कृत की शिक्षा निशुल्क दे रहे हैं। उनका मानन है कि हिदी व संस्कृत शिक्षा का आधार है, जिससे बच्चों को संस्कार व शिष्टाचार का ज्ञान मिलता है। रिटायर होने के बाद उन्होंने पांच वर्ष तक संविदा पर अंबेडकर आवासीय विद्यालय रामेश्वरगंज व पिछड़ा वर्ग प्लस टू स्कूल मोकर में सेवा दी। इसके बाद शहर के रामा रानी जैन बालिका उमावि में निशुल्क अध्यापन कार्य कर लड़कियों को संस्कृत व हिदी की शिक्षा दी। कोरोना महामारी के चलते वे गत छह माह से अपने आवास पर गुरुकुल पाठशाला लगा शिक्षा दान कर रहे हैं।

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मुनमुन दूबे की माने तो हिदी व संस्कृत शिक्षा का मूल आधार है। आज इससे लोग विमुख होते जा रो हैं। इसका दुष्प्रभाव प्रभाव भी देखने को मिल रहा है कि बच्चों का जितना शैक्षणिक विकास होना चाहिए, वह नहीं हो पा रहा है। बेटियों को इन दोनों विषयों की निशुल्क शिक्षा देते हैं। इसका मूल उद्देश्य है कि संस्कृत व संस्कृति को किसी तरह बचाया जा सके। श्री दूबे कहते हैं कि जिस लड़की को संस्कृत व हिदी की पढ़ाई करने की इच्छा है, वह गुरुकुल पाठशाला में आकर शिक्षा ग्रहण कर सकती हैं।


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