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बेहद प्राचीन है भारत में भ्रष्टाचार का इतिहास, 12वीं सदी के शिलालेख में है जिक्र!

भ्रष्‍टाचार को आधुनिक रोग बताने वाले इस खबर को जरूर पढ़ लें। बिहार मेें मिले एक शिलालेख के अनुसार यहां प्राचीन काल से ही रिश्‍वतखोरी चली आ रही है।

By Amit AlokEdited By: Published: Wed, 25 Jul 2018 09:12 AM (IST)Updated: Thu, 26 Jul 2018 08:28 AM (IST)
बेहद प्राचीन है भारत में भ्रष्टाचार का इतिहास, 12वीं सदी के शिलालेख में है जिक्र!
बेहद प्राचीन है भारत में भ्रष्टाचार का इतिहास, 12वीं सदी के शिलालेख में है जिक्र!

रोहतास [प्रवीण दूबे]। केंद्र के बोफोर्स व 2जी से लेकर बिहार के चारा-अलकतरा व श्‍ाौचालय घोटाला तक के उदाहरण दे भ्रष्‍टाचार को आधुनिक समाज का रोग बताने वाले इस खबर को ठीक से पढ़ लें। हमारे देश में रिश्वतखोरी व भ्रष्‍टाचार का प्रचलन प्राचीन काल से ही चला आ रहा है। यह हमारा नहीं, प्राचीन शिलालेख का कहना है। बिहार के रोहतास से मिले ताराचंडी शिलालेख में रिश्वत की परंपरा का उल्लेख है।

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12वीं सदी के शिलालेख में चर्चा

विदित हो कि ताराचंडी देवी प्रतिमा के बगल में 12वीं सदी के खरवार वंशी राजा महानायक प्रतापधवलदेव ने अपने पुत्र शत्रुघ्न के माध्यम से एक बड़ा शिलालेख लिखवाया है, जो 212 सेमी लंबा व 38 सेमी चौड़ा है। शिलालेख में राजा के अधिकारियों को रिश्वत दे दो गांवों को प्राप्त कर लेने का वर्णन है। इसमें रिश्वत से लिए गए एक जाली ताम्रपत्र का वर्णन है। राजा का जाली हस्ताक्षर कर ताम्रपत्र भी जारी करा दिया गया था। हालांकि, राजा को इस बात की जानकारी होते ही जाली ताम्रपत्र को रद कर दिया था।

ताराचंडी शिलालेख 16 अप्रैल 1169 का है। इसमें प्रतापधवलदेव को जपिलापति कहा गया है। संस्कृत में लिखे इस शिलालेख में कहा गया है कि ऐश्वर्यशाली देव स्वरूप प्रताप धवल जिनकी कीर्ति चहुंओर फैली हुई है, अपने वंशजों से कहते हैं कलहंडी के समीप के गांव सुवर्णहल (वर्तमान शिवसागर प्रखंड का सोनहर गांव) के विप्रों द्वारा छद्मनाम से रिश्वत देकर शासक के बेइमान दासों से जो दोषपूर्ण ताम्रपत्र प्राप्त किया है, उसपर आसपास के लोगों का विश्वास करने का कोई आधार नहीं है।

जाली ताम्रपत्र को नहीं मानने का निर्देश

संवत 1229 में जपिलाधिपति महानायक प्रतापधवल देव अपने पुत्रों, पौत्रों आदि के अतिरिक्त अपने वंशजों से कहते हैं कि कान्यकुब्ज के सौभाग्यशाली महाराज विजयचंद्र के बेईमान दासों को घूस देकर उन्हें परलोकगमन संबंधी धार्मिक अनुष्ठान के प्रयोजन की जालसाजी से कलहंडी व बरैला गांवों को छद्म नाम से मिलने का ताम्रपत्र प्राप्त किया है। ऐसा सुवर्णहल के आमजनों से सुना गया है कि वे विप्र व्यभिचारी हैं। जमीन का एक टुकड़ा यहां तक कि सूई की नोक के बराबर भी उनके अधिकार में नहीं है। इनकी उपज से शुल्क प्राप्त करने का अधिकार तुम्हें है।

पटना संग्रहालय में है ताम्रपत्र

सांस्कृतिक धरोहरों के जानकार  डॉ. श्याम सुंदर तिवारी बताते हैं कि सोनहर से प्राप्त उक्त ताम्रपत्र पटना संग्रहालय में रखा गया है। इसमें वर्णित है कि उस समय के कन्नौज के राजा विजयचंद्र, जिनका शासन काशी तक था, ने दो विप्रों को बरैला व सोनहर गांवों को दान में दिया है, जिसका स्वामित्व उन्हें प्राप्त हो गया है। यह राज्यादेश ताम्रपत्र पर लिखा गया था। लेकिन, उस ताम्रपत्र को  प्रतापधवलदेव ने झूठा घोषित कर उन गांवों पर से अपना दावा छोडऩे से इनकार कर दिया।


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