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संशोधित : किनारे आने से पहले ही डूब जाती है जल संचय अभियान की कश्ती

जिले में जल संरक्षण की नीतियों को अमलीजामा पहनाने की कश्तियां अक्सर किनारे तक आते-आते डूब जाया करती हैं। अब बढ़ती गर्मी व गिरते भूजल स्तर को देखते हुए बारिश के पानी को सहेजे जाने की जरूरत महसूस होने लगी है। प्राकृतिक जलस्त्रोतों के साथ-साथ कृत्रिम जलाशयों की अहमियत अब लोगों की समझ में आने लगी है। विशेषज्ञ से लेकर अधिकारी तक इस बात को स्वीकार कर रहे हैं कि मानसून की शुरुआत में पर्याप्त बारिश होने के बावजूद उसका दीर्घकालीन उपयोग नहीं हो पा रहा है। जिससे इस तरह की स्थिति उत्पन्न हो गई है। जिले के दक्षिणी क्षेत्र में सिचाई के लिए नहर से पानी नहीं मिलने की समस्या आम हो गई है।

By JagranEdited By: Published: Thu, 28 May 2020 08:08 PM (IST)Updated: Fri, 29 May 2020 07:44 AM (IST)
संशोधित : किनारे आने से पहले ही डूब जाती है जल संचय अभियान की कश्ती
संशोधित : किनारे आने से पहले ही डूब जाती है जल संचय अभियान की कश्ती

जिले में जल संरक्षण की नीतियों को अमलीजामा पहनाने की कश्तियां अक्सर किनारे तक आते-आते डूब जाया करती हैं। अब बढ़ती गर्मी व गिरते भूजल स्तर को देखते हुए बारिश के पानी को सहेजे जाने की जरूरत महसूस होने लगी है। प्राकृतिक जलस्त्रोतों के साथ-साथ कृत्रिम जलाशयों की अहमियत अब लोगों की समझ में आने लगी है। विशेषज्ञ से लेकर अधिकारी तक इस बात को स्वीकार कर रहे हैं कि मानसून की शुरुआत में पर्याप्त बारिश होने के बावजूद उसका दीर्घकालीन उपयोग नहीं हो पा रहा है। जिससे इस तरह की स्थिति उत्पन्न हो गई है। जिले के दक्षिणी क्षेत्र में सिचाई के लिए नहर से पानी नहीं मिलने की समस्या आम हो गई है। हर साल गर्मी आते ही शुरू हो जाती है चर्चा :

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हर वर्ष की तरह इस बार भी गर्मी के दस्तक देने के साथ ही जल संचय पर चर्चा शुरू हो गई है। मार्च के अंतिम सप्ताह से शुरू हुई चर्चा अमूमन जुलाई-अगस्त तक चलती है, लेकिन अधिकतर कवायद सिर्फ फाइलों में ही उलझकर रह जाती है। गत वर्ष भूमि व जल संरक्षण विभाग द्वारा जलसंचय के लिए प्राकृतिक जलस्त्रोतों के पुनरूद्धार व नए जलस्त्रोत के निर्माण की कवायद शुरू की गई थी। लेकिन अबतक बारिश के पानी का संचय करने की दिशा में चलाई जा रही प्रभावकारी योजनाएं आधी-अधूरी ही धरातल पर उतर पाई है। दुर्गावती जलाशय वितरणी नहीं बनने से परेशानी :

दुर्गावती जलाशय परियोजना से जुड़ी वितरणी का निर्माण नहीं होने से जिले के सासाराम, तिलौथू, रोहतास, चेनारी व शिवसागर प्रखंड क्षेत्र का दक्षिणी हिस्से में सूखे जैसे हालात हैं। सैकड़ों गांवों के किसान अब भी बारिश के भरोसे खेती को मजबूर हैं। नहर से पानी नहीं मिलने के चलते वे 71 रुपये प्रति लीटर की दर से डीजल खरीद कर धान का बिचड़ा डालने के लिए खेत की तैयारी में लगे हैं। किसान उपेंद्र सिंह, विद्यासागर तिवारी, जयनाथ प्रसाद समेत अन्य ने कहा कि यदि पहले की तरह बधार में ताल पोखर होते तो आज यह नौबत नहीं आती। जलसंरक्षण के लिए काम कर रहे संगठन भी फिसड्डी :

वर्तमान समय में पूरे जिले में जल संरक्षण की अधिकतर योजनाएं जैसे-तैसे संचालित हो रही हैं। जल संरक्षण के नाम पर काम करने का ढिढोरा पीटने वाले स्वयंसेवी संगठनों का काम भी धरातल पर नहीं दिख रहा है। हालांकि जिला प्रशासन ने भूगर्भ जलस्तर बरकरार रखने को ले दो वर्ष पूर्व हर विद्यालय व आंगनबाड़ी केंद्रों में सोख्ता निर्माण कराने को ले अभियान चलाया था, लेकिन हाल के दिनों में यह भी कमजोर पड़ गया है। ले देकर भमि संरक्षण विभाग द्वारा पहाड़ी क्षेत्र में चलाई जा रही आहर, तटबंध, चेकडैम व तालाबों का निर्माण कार्य ही चल रहा है। कहते हैं अधिकारी:

जिले में जल संरक्षण को ले कई योजनाएं चल रही हैं। पहड़ी क्षेत्रों में चेकडैम, तालाब, आहर आदि निर्माण का कार्य भी हुआ है। इससे न सिर्फ जरूरत के वक्त लोगों को पानी की उपलब्धता होगी, बल्कि भूमिगत जलस्तर भी बरकरार रहेगा।

लालजी प्रसाद चौधरी, भूमि संरक्षण पदाधिकारी


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