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जज्‍बे को सलाम: ज्ञान के इस वटवृक्ष की छांव में पढ़ रहे सैकड़ों बच्चे

बिहार के पूर्णिया स्थित रेड लाइट एरिया के अंधेरे में एक चिराग रोशन है। यह चिराग हैं डॉ. उत्तिमा केसरी। ज्ञान के इस वटवृक्ष की छांव में सैकड़ों बच्चे पढ़ रहे हैं।

By Amit AlokEdited By: Published: Fri, 22 Jun 2018 08:32 AM (IST)Updated: Fri, 22 Jun 2018 10:57 PM (IST)
जज्‍बे को सलाम: ज्ञान के इस वटवृक्ष की छांव में पढ़ रहे सैकड़ों बच्चे
जज्‍बे को सलाम: ज्ञान के इस वटवृक्ष की छांव में पढ़ रहे सैकड़ों बच्चे

पूर्णिया [दीपक शरण]। बिहार स्थित पूर्णिया की रेड लाइट एरिया से बच्चों को शिक्षित करने की मुहिम का पौधा आज विशाल वटवृक्ष बन चुका है। उसकी छांव में सैकड़ों बच्चे शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। गरीब परिवार के बच्चों के बीच ज्ञान के इस पौधरोपण का श्रेय डॉ. उत्तिमा केसरी को जाता है। अध्ययन-अध्यापन के क्षेत्र में योगदान के लिए उन्हें राष्ट्रपति पुरस्कार से भी सम्मानित किया जा चुका है। वे लेखन भी करती हैं।

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डॉ. उत्तिमा ने बताया कि 2011 में बालिका शिक्षा उन्मुखीकरण के तहत प्रशिक्षण में उन लोगों को रेड लाइट एरिया में भी काम करने की सलाह दी गई। जब वे रेड लाइट एरिया में जाने की तैयारी कर रही थीं, तो आसपास के लोगों को आश्चर्य हुआ। पूछने लगे- एक महिला होकर आप वहां जाएंगी? बावजूद, उन्होंने अपने लक्ष्य की ओर कदम बढ़ा दिए। वहां वे महिलाओं को स्वास्थ्य-सुरक्षा के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी देती थीं।

इस बीच एक बच्ची को उन्होंने खुद की ओर टकटकी लगाए देखा तो पूछ बैठीं- बेटी पढ़ोगी? इसके बाद कुछ लड़के-लड़कियों को वहां से लाकर वह पढ़ाने लगीं। बाद में उन्होंने समाज के अन्य गरीब बच्चों को भी इस मुहिम से जोड़ लिया।

वे अब तक लगभग 500 बच्चों को शिक्षित कर स्कूल से जोड़ चुकी हैं। रेड लाइट एरिया की लड़कियों की पढ़ाई का खर्च भी खुद उठाती हैं। पांच मई, 2017 को उन्हें सर्वश्रेष्ठ शिक्षक के राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित किया गया। इसी साल वह सेवानिवृत्त भी हुईं।

साहित्य में भी है रुचि

डॉ. उत्तिमा केसरी ने पूर्णिया स्थित मीरगंज हाईस्कूल से स्कूली शिक्षा पूरी कर महिला कॉलेज, पूर्णिया से ही स्नातक किया। मिथिला विश्वविद्यालय से जगदीश चंद्र माथुर के नाटकों पर शोध कर उन्होंने पीएचडी किया। 'मुहिम के स्वर', 'बौर की गंध', 'तभी तो प्रेम ईश्वर के करीब है', आदि उनके कविता संग्रहों का भी प्रकाशन हो चुका है। वे कई बड़े पत्र-पत्रिकाओं में भी लिखती हैं।

रवि जाने लगा स्कूल

उत्तिमा केसरी मध्य विद्यालय, पूर्णिया में शिक्षिका थीं। स्कूल ड्रॉपआउट बच्चों पर पैनी नजर रखती थीं। एक बार चौथी कक्षा के छात्र रवि ने अचानक स्कूल आना बंद कर दिया। तब उत्तिमा माधोपाड़ा स्थित उसके घर पहुंचीं। पता चला कि उसके माता-पिता काम पर जाते हैं  और रवि घर की रखवाली करता है। उन्होंने रवि के माता-पिता को समझाकर उसकी पढ़ाई शुरू कराई।

स्कूलों में लड़कियों की संख्या बढ़ाने के लिए भी वे मुहिम चला रही हैं। उन्होंने महिलाओं की टोली बनाई है। यह टोली बच्चों को शिक्षा के लिए प्रेरित कर उनका स्कूल में नामांकन कराती है।


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