दीपावली नजदीक आते ही तेज हुई कुम्हारों के चाक की रफ्तार
पूर्णिया दीपों का पर्व दीपावली नजदीक आते ही कुम्हारों के चाक की रफ्तार तेज हो गई है। हर दीपाव
पूर्णिया : दीपों का पर्व दीपावली नजदीक आते ही कुम्हारों के चाक की रफ्तार तेज हो गई है। हर दीपावली यह रफ्तार पकड़ती है और फिर धीरे-धीरे अगले दीपावली के इंतजार में ठंडा पड़ जाती है। अब फिर वो समय आ गया है जब कुम्हारों का पूरा परिवार दीया बनाने में जुट गए हैं। इस त्योहार अधिक बिक्री की उम्मीद लिए अन्य कामों को छोड़कर दीया बनाने में दिन रात एक कर दिया है। गीले चिकनी मिट्टंी को अपने हाथों की कला से चाक पर दीया का आकार दे रहे हैं और उसे आग में पकाकर अंतिम रूप देने का काम कर रहे हैं। इसमें घर के हर सदस्य किसी ना किसी प्रकार अपनी सहभागिता निभाने में जुट गए हैं। कुम्हार टोली में दीपावली आने से एक माह पहले से दीप बनाने का उत्साह जैसा माहौल हो गया है। कुम्हारों को कहां से मिट्टंी लाना है, उसकी कीमत क्या है, मिट्टंी को पानी में भिंगोना, फिर उसे गुथकर चाक पर अंतिम रूप देकर भट्ठी में पकाया जाता है।
कहने को तो मिट्टंी का बर्तन बनाना कुम्हारों का यह पुस्तैनी धंधा है और इसी जीवन यापन करते हैं। लेकिन आधुनिकता के दौर में दीपावली में रफ्तार पकड़ने वाला चाक साल में एक बार ही निकलता है। यह दीपावली में रोशनी फैलाकर फिर गुम हो जाता है। हरदा में दीया बनाने वाले कुम्हार रामदेव ने बताया कि समय के साथ मिट्टंी महंगी होती जा रही है। वे लोग कटिहार से मिट्टंी मंगाते हैं। पहले जो मिट्टंी छह सौ से आठ सौ रुपये टेलर मंगाते थे अब एक हजार से बारह सौ रुपये का मिलती है। उन्होंने बताया कि करीब 15 दिनों से मिट्टंी का दीया और खिलौना बना रहे हैं। बताया कि मांग के अनुरूप बाजार में रेट तय होता है। हालांकि कुछ सालों से लोग अब दीप की खरीदारी अधिक कर रहे हैं। बताया के सौ रुपये में दो दर्जन से लेकर 50 दीप थोक भाव में बेचने का काम करते हैं। अब लोग लाइट पर बल्ब जलाकर दीपावली मना लेते हैं लेकिन पारंपरिक तौर पर दीप से ही यह उत्सव मनाने की परंपरा है।