मिथिला के आगन में चमके छथि चाद यो, डाला में सजल मधुर पान मखान यो..
पूर्णिया। आश्रि्वन माह की पूर्णिमा को मिथिलाचल में आयोजित होने वाले लक्ष्मी पूजा के अवसर पर सुप्रसिद्ध
पूर्णिया। आश्रि्वन माह की पूर्णिमा को मिथिलाचल में आयोजित होने वाले लक्ष्मी पूजा के अवसर पर सुप्रसिद्ध कोजागरा पर्व रविवार रात्रि हर्षोल्लास के साथ मनाया गया। यह पर्व खासकर शादी के पहले साल नव विवाहित पुरुषों द्वारा मनाया जाता है। उनके यहा आज के दिन का माहौल उत्सव का बना रहता है। इसमें नव विवाहित पुरुष ससुराल द्वारा भेजे गए नये वस्त्र पहन चंदन, टीका, काजल लगाकर चौसर खेलता है तथा ससुराल से आए मखान, पान, नारियल, मिठाई, केला आदि को ग्रामीणों के बीच बाटता है। चौसर के इस खेल में नव विवाहित लड़के का साथ उसकी बहन देती है तथा विपक्ष में उनका साला एवं आस-पड़ोस की भाभियां होती हैं। इस खेल में विजय का महत्व महज हंसी मजाक तक सीमित रहता है तथा परिणाम परिवारिक व्यवस्था के तहत बहनों या भाभियों की संख्या पर निर्भर करता है। अगर परिवार में भाभियों की संख्या ज्यादा है तो नवविवाहित लड़कों की हार निश्चित है। इस अवसर पर महिलाओं द्वारा भक्ति गीत गाए जाते हैं तथा चौसर खेलते समय लड़के के भाभियों द्वारा गाए गए हास्य रस से ओतप्रोत गीत जुआ खेलो, जुआ खेलो रघुवर, आज बाजी लगा दो, जुआ पर रख दो मा, बहन, पीसी, खेलो पचीसी इत्यादि गीत गाए जाते हैं। मिथिलाचल की इस सुप्रसिद्ध पर्व नव विवाहित पुरुष के प्रथम साल उत्साहपूर्वक मनाने का समाजिक उद्देश्य यह है कि इसके माध्यम से यह संदेश दिया जाता है कि गृहस्थ जीवन में चौसर के खेल की तरह कभी हार कभी जीत होता है इससे घबराना नहीं चाहिए बल्कि जीवन को उत्साहपूर्वक मनाना चाहिए।