कोशी के स्टेशनों से बंद नहीं हो रही पलायन एक्सप्रेस
फोटो: -जिले में नौ साल से चल रही है योजना, -577.91 करोड़ अब तक हो चुके हैं खर्च, 2,35,53,514 मेन
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-जिले में नौ साल से चल रही है योजना,
-577.91 करोड़ अब तक हो चुके हैं खर्च, 2,35,53,514 मेनडेज का हुआ सृजन
कोट के लिए-
मनरेगा के तहत जिले में सड़क, बाध आदि बनवाये गये हैं। पर्यावरण की सुरक्षा के लिए पेड़ लगाये गये हैं। नौ सालों में मनरेगा के तहत जिले में 30 हजार से अधिक योजनाओं को जमीन पर उतारा गया है। 32 लाख से अधिक लोगों को रोजगार मुहैया कराया गया है। मनरेगा और कारगर बनाने के उपाय किए जा रहे हैं कि ताकि शत-प्रतिशत मजदूरों को काम उपलब्ध कराकर उन्हें पलायन से रोका जा सके।
राम शंकर, उपविकास आयुक्त, पूर्णिया
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मनोज कुमार,जासं,
पूर्णिया: जिले में मनरेगा का सफर अभी नौ वषरें का है। इस दौरान मनरेगा विकास और अनियमितता का एकसाथ प्रतिमान बना। नौ सालों में जिले में मनरेगा के तहत 577.91 करोड़ से अधिक राशि खर्च की जा चुकी है जिससे करीब 32,64,281 मजदूरों को काम मुहैया कराया गया। लेकिन मजदूरों को घर में ही काम उपलब्ध कराने की जिस मंशा से इस योजना की शुरूआत की गई, वह अभी भी अधूरी है। विशेषकर सीमाचल क्षेत्र से आज भी बड़ी संख्या में रोजगार के लिए मजदूरों का पलायन जारी है। पूर्णिया, अररिया, किशनगंज, कटिहार आदि जिलों से दिल्ली व अन्य प्रदेशों को जाने वाली लंबी दूरी की ट्रेनों पर लदे-ठूंसे मजदूरों की संख्या इस बात की तसदीक करता है।
बताते चलें कि गाव के हालात बदलने और लोगों के लिए रोजगार के अधिक से अधिक अवसर प्रदान करने के उद्देश्य से सरकार ने फरवरी 2006 को इस महत्वाकाक्षी योजना की शुरूआत की थी। जिले में वित्तीय वर्ष 2009-10 से इस योजना की शुरूआत की गई। सरकार इस योजना को दुनिया का सबसे बेहतरीन महात्वाकाक्षी सामाजिक सुरक्षा और जनरोजगार कार्यक्रम बताती है। विश्व बैंक ने भी वर्ष 14 के वर्ल्ड डेवलपमेंट रिपोर्ट में मनरेगा को ग्रामीण विकास का सबसे उत्कृष्ट उदाहरण बताया था। लेकिन आगे चलकर यह योजना भ्रष्टाचार और विवादों में घिरती गई। इस वजह से केंद्र की इस योजना में प्रदेश का बजट लगातार घटता गया। जिले की बात करें तो इसके तहत अब तक नौ वषरें में 32,64,281 मजदूरों को 2,35,33,514 दिनों का रोजगार उपलब्ध कराया गया है। इसमें 100 दिनों तक रोजगार पाने वालों की संख्या 24,074 है।
मनरेगा के तहत जिले में ग्रामीण क्षेत्रों में विकास के कई काम हुए हैं। दुरूह ग्रामीण क्षेत्रों में सड़कें बनीं हैं तो पर्यावरण के लिए पौधरोपण भी हुआ है। करीब 30 हजार योजनाएं मनरेगा के तहत अब तक जिले में कार्यान्वित हुई हैं। बावजूद इस योजना का असली उद्देश्य आज भी पूरा नहीं हो पाया है। मजदूरों में शिक्षा और जागरूकता के अभाव के कारण आज भी इस योजना का पूर्ण लाभ असली हकदारों तक नहीं पहुंच पाता है। योजना में व्याप्त भ्रष्टाचार और अनियमितता के कारण इस योजना से सभी बेरोजगार नहीं जुड़ पाये हैं जिस कारण रोजगार के लिए बड़ी संख्या में लोग दूसरे प्रदेशों में आज भी पलायन कर रहे हैं। सीमांचल के जिलों से गुजरने वाली लंबी दूरी की ट्रेन सीमांचल एक्सप्रेस, आम्रपाली एक्सप्रेस, गरीब रथ आदि पर मजदूरों की बड़ी खेप जाते हुए देखा जा सकता है। पूर्णिया जंक्शन पर सीमांचल एक्सप्रेस ट्रेन पकड़ने आए बायसी के मो. जुबेर, मो इकबाल, शमसेर आलम आदि ने बताया कि महानंदा में उनकी जमीन कट गई जिस कारण अब उनके पास रोजगार का कोई साधन नहीं है, इसलिए काम की तलाश में दिल्ली जा रहे हैं। वहीं कोलकाता के लिए ट्रेन पकड़ने आए बनमनखी के रूपेश ऋषि, दिनेश महलदार आदि ने बताया कि मनरेगा में इतनी कम मजदूरी दी जाती है कि उससे परिवार का गुजारा नहीं होता है। साथ ही सभी दिन काम भी नहीं मिलता है। इसलिए लेदर फैक्ट्री में काम करने जा रहे हैं। जो भी हो मनरेगा कोशी के स्टेशनों से अभी बंद नहीं हो रही पलायन एक्सप्रेस।