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अंधेरे में जी रहे दूसरों के घरों को रोशन करने वाले

पूर्णिया। मिट्टी के दीपों से जग को जगमगाने वाले कुम्हार जाति के लोगों की स्थिति चिंताजनक है। बिजल

By JagranEdited By: Published: Mon, 05 Nov 2018 07:27 PM (IST)Updated: Mon, 05 Nov 2018 07:27 PM (IST)
अंधेरे में जी रहे दूसरों के घरों को रोशन करने वाले
अंधेरे में जी रहे दूसरों के घरों को रोशन करने वाले

पूर्णिया। मिट्टी के दीपों से जग को जगमगाने वाले कुम्हार जाति के लोगों की स्थिति चिंताजनक है। बिजली की चमचमाती रोशनी की चकाचौंध में इस जाति के लोगों की जिंदगी में अंधेरा छाया हुआ है। आम दिनों की कौन कहे दीपावली के मौके पर भी उनके परिवार में खुशिया नहीं दिखती। फलस्वरूप इस बिरादरी के लोग अपने परंपरागत पेशे को छोड़कर अन्य धंधे को अपनाने लगे हैं। इनके परिवारों की आर्थिक दशा काफी कमजोर है। सुखसेना, मोहनिया चकला, पिपरा पंचायत के वार्ड 03 तथा वार्ड 08, मधुवन पंचायत के वार्ड 01 स्थित वृन्दावन टोला, मंदिर टोला, रसदमपुर, वेलाचाद, सहुरिया सुभाय मिलिक, तेतराही, चादपुर भंगहा के वार्ड 13 स्थित चादपुर, महाराजगंज 01 के चकमका सहित कई अन्य गावों में छिटपुट जगहों पर कम जनसंख्या में रहने वाले ये लोग पुश्तैनी धंधे से जुड़े हुए हैं। खास बात यह कि नई पीढ़ी की सोच धीरे-धीरे बदल रही है। सहुरिया के राजेश कुमार, वृन्दावन टोला मधुबन के पवन कुमार, सुखासन के बालो पंडित, रामदेव पंडित, सुरेन पंडित सहित कई अन्य लोगों की शिकायत है कि किसी भी सरकार ने उन लोगों की कभी चिंता नहीं की। आर्थिक विपन्नता के कारण इस बिरादरी के अधिकाश लोगों में शिक्षा का अभाव है। मोहनिया चकला एवं चादपुर में रहनेवाले इस बिरादरी के कुछ लोगों ने बताया कि सरकार द्वारा आवास योजना के तहत गरीबों के घर बनाए जाने लगे, खपड़े की बिक्री नहीं के बराबर हो गई है। इन धंधों पर आश्रित रहने वाले गरीब परिवारों को पेट भरना मुश्किल हो गया है। बताया गया कि इस धंधे के बल पर परिवार चलाना मुश्किल हो गया था, इसीलिए इसे छोड़कर मजदूरी कर वे लोग अपने परिवार व बच्चों का पेट भर लेते हैं। इन परिवारों के युवा पीढ़ी रिक्शा, टेम्पो, ठेला चलाकर शहरों में मजदूरी करते हैं। समय समय-समय पर वे दिल्ली, पंजाब एवं हरियाणा जैसे राज्यों में जाकर अर्थ उपार्जन करते रहते हैं। पलथु पंडित, नारायण पंडित, शमिता देवी, भोगीलाल सहित कई अन्य लोगों की सोच है कि अब उनका पुश्तैनी धंधा दो जून की रोटी मुहैया कराने में सक्षम नहीं रहा। इसलिए इससे अब धीरे-धीरे तौबा कर लेना ही बेहतर रहेगा।

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