पंचायत चुनाव : यहां कुर्सी की चाहत में लेते सात फेरे, खूब उठतीं डोलियां...
शायद आप विश्वास न करें, लेकिन नेपाल व बांग्लादेश की सीमा पर बसे पूर्णिया प्रमंडल की यह बड़ी सच्चाई है। यहां कुर्सी की चाहत में सात फेरे लिये जाते हैं। खासकर त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव में चुनावी शादी की रफ्तार कुछ ज्यादा ही तेज हो जाती है।
कटिहार [नंदन कुमार झा]। शायद आप विश्वास न करें, लेकिन नेपाल व बांग्लादेश की सीमा पर बसे पूर्णिया प्रमंडल की यह बड़ी सच्चाई है। यहां कुर्सी की चाहत में सात फेरे लिये जाते हैं। खासकर त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव में चुनावी शादी की रफ्तार कुछ ज्यादा ही तेज हो जाती है।
अनुसूचित जाति अथवा अनुसूचित जनजाति के लिए सीट आरक्षित होने पर सामान्य अथवा पिछड़ा वर्ग में आने वाले लोग ऐसी शादियां रचाते हैं और फिर नव दुल्हन को मैदान में उतार कुर्सी हासिल करने की कोशिश करते हैं।
विवाह की आड़ में सत्ता का खेल
अन्तरजातीय विवाह के नाम पर सत्ता का यह खेल खेला जाता है। सन 2006 व 2011 में हुए पंचायत चुनाव में ऐसी डेढ़ दर्जन प्रतिनिधि निर्वाचित होने में भी सफल रहीं थीं। चुनावी शादी का यह चलन कटिहार के मनिहारी व बारसोई अनुमंडल, पूर्णिया के धमदाहा व बायसी अनुमंडल, अररिया के फारबिसगंज व किशनगंज जिले में कुछ ज्यादा ही है। यहां तक गत विस चुनाव में कटिहार जिले से एक ऐसी प्रत्याशी मैदान में थीं, जिनके पति की जाति विलीन थी।
कटिहार जिले के मनिहारी में दो पंसस, एक मुखिया भी इसी आधार पर निर्वाचित हुईं थीं। उनके पति पूर्व से पंचायत प्रतिनिधि थे। आरक्षण में सीट बदलने पर उन्होंने आरक्षित वर्ग की महिला से शादी रचायी और फिर नवविवाहित पत्नी को चुनाव मैदान में उतार दिया।
नामांकन को ले दुल्हनों की लगती कतार
यही कारण है कि त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव में यहां नामांकन के लिए नव दुल्हनों की भी अच्छी खासी कतार रहती है। इन दुल्हनों के पति दूसरे वर्ग से होते हैं, जबकि पत्नी उस वर्ग की, जिसके लिए उनका पंचायत अथवा पंसस का क्षेत्र आरक्षित होता है।
इस बार भी उठेंगी कई डोलियां
पंचायत चुनाव 2016 में आरक्षण व्यवस्था के तहत सीट में व्यापक बदलाव हुआ है। उसके मद्देनजर अभी से कुछ शादी की तैयारी हो चुकी है। नामांकन से पूर्व इस बार भी दो दर्जन से अधिक डोलियां उठने की पूरी संभावना है।
हो जाते हैं छद्म तलाक
कानूनी पचड़े से बचने के लिए पूर्व प्रतिनिधि अगर पूर्व से शादी-शुदा होते हैं तो वे छद्म तलाक भी ले लेते हैं। यह तलाक कानूनी रुप में होता है, लेकिन जमीन पर सबकुछ सामान्य रहता है। पूर्व की पत्नियां चाहकर भी इसका विरोध नहीं कर पाती हैं।
ये हैं प्रावधान...
पिता के जाति के आधार पर ही किसी की जाति तय होती है। ऐसे में लड़की जिस जाति की होती है, उसे उस जाति का आरक्षण का लाभ मिलता है। पति के दूसरी जाति का रहने से कोई फर्क नहीं पड़ता है। ऐसे में पत्नी के निर्वाचित होने पर सत्ता स्वभाविक तौर पर पति के हाथ आ जाती है।