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जीवछ माता मंदिर में उमड़ रहा आस्था का जनसैलाब

पूर्णिया। प्रखंड स्थित जीवछ माता मंदिर में आस्था का जनसैलाब उमड़ रहा है। सोमवार को माता के दर्शन

By JagranEdited By: Published: Mon, 15 Apr 2019 08:09 PM (IST)Updated: Tue, 16 Apr 2019 06:20 AM (IST)
जीवछ माता मंदिर में उमड़ रहा आस्था का जनसैलाब
जीवछ माता मंदिर में उमड़ रहा आस्था का जनसैलाब

पूर्णिया। प्रखंड स्थित जीवछ माता मंदिर में आस्था का जनसैलाब उमड़ रहा है। सोमवार को माता के दर्शन के लिए यहा श्रद्धालुओं के हुजूम लगा रहा। इसके साथ ही मनोवाछित फल पाने, मनोकामना पूरी होने वाले हजारों श्रद्धालु पूरी आस्था और विश्वास के साथ मा की दर्शन व पूजा-पाठ किए। पुत्रदायिनी मा जीवछ के रूप में प्रसिद्ध यहा हर साल मा की विशेष पूजा-अर्चना की परंपरा युगों से चली आ रही है। मान्यता है कि शक्ति रूपी मा भगवती की पिंड स्वरूप में यहा पूजा होती है। मान्यता है कि यहां पूजा करने से संतान की प्राप्ति होती है। इस दिन को सिरवा पूजा भी कहा जाता है। इस शक्तिपीठ के बारे में लोगों की मान्यता है कि संतान प्राप्ति की इच्छा से मंदिर से सटे कुंड में स्नान-ध्यान कर सच्चे मन से संतान प्राप्ति की कामना करने पर मा उसकी सुनी कोख को अवश्य भर देती हैं। संतान की प्राप्ति होने पर पुन: इसी मौके पर श्रद्धालु आते हैं और गाजे-बाजे के साथ मा के चरणों में शिशु नवाते हैं। यह मंदिर इस क्षेत्र का अत्यंत अनूठा मंदिर है। तीन दिनों तक भक्तों की भीड़ लगी रहती है। लोगों को इस शक्तिपीठ को लेकर गहरी आस्था है। ऐसा कहा जाता है कि राजा गंगा जो निसंतान थे वे शक्ति के बड़े ही उपासक थे। एक दिन मा जीवछ उसके भक्ति से प्रसन्न होकर स्वप्न में कहा कि उक्त जल कुंड में स्नान करने के लिए पत्‍‌नी के साथ डुबकी लगाएं एवं इस क्रम में उसके हाथ में जो भी द्रव्य मिलता है उसको लेकर मा की पूजा-अर्चना की एवं संतान प्राप्ति का ध्यान करें। जिससे उन्हें संतान की प्राप्ति होगी। मान्यता है कि वह सिरवा का दिन था। ऐसा करने पर राजा को सुंदर कन्या की प्राप्ति हुई थी। तब से लोगों की ऐसी धारणा बनी हुई है। संतान प्राप्ति के लिए हर साल हजारों की संख्या में दंपती यहा पहुंचते हैं एवं मा जीवछ की पूजा-अर्चना करते हैं। जिन्हें संतान की प्राप्ति होती है वे अपनी संतान के साथ यहा आकर अपने संतान का मुंडन करवाते हैं। बदले में पान, फूल, मिठाई के साथ पाठी का चढ़ावा दिया जाता है। यह परंपरा युगों-युगों से पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही है।

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