पप्पू किसी गठबंधन में गए तो फंस सकता है पेंच, बिगड़ सकती है किसी की भी हवा
राजनीतिक दृष्टिकोण से सीमांचल की दिशा काफी हद तक पूर्णिया से भी तय होती है। इस बार एक अलग सरगर्मी एनडीए को इलाके में बेचैन कर सकती है। पढ़ें पड़ताल करती रिपोर्ट...
पूर्णिया [संजय सिंह]। राजनीतिक दृष्टिकोण से सीमांचल की दिशा काफी हद तक पूर्णिया से भी तय होती है। इस बार एक अलग सरगर्मी एनडीए को इलाके में बेचैन कर सकती है। यदि सीमांचल के दो या कोई एक पप्पू भी किसी गठबंधन में गए, तो नए राजनीतिक समीकरण बनने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है।
इस बार एनडीए के बीच हुए सीटों के बंटवारे के अनुसार भाजपा-जदयू 17-17 सीटों पर चुनाव लड़ेगी। लोजपा को छह सीटें दी गई हैं। पूर्णिया के सांसद संतोष कुशवाहा जदयू से हैं। इससे पूर्व भाजपा के उदय सिंह उर्फ पप्पू सिंह यहां के चुनकर दिल्ली गए थे। 2009 में पप्पू सिंह को 3,62,952 वोट आए थे। दूसरे स्थान पर शांतिप्रिया रही थीं। उन्हें 1,76,725 वोट मिले थे। 2014 में जदयू के संतोष कुशवाहा ने 4,18,826 वोट लाकर जीत हासिल की थी। दूसरे स्थान पर उदय सिंह रहे थे। उन्हें 3,02, 157 वोट प्राप्त हुए थे।
इस बार यदि जदयू पूर्णिया सीट से अपनी दावेदारी वापस नहीं लेता है तो उदय सिंह विकल्प तलाशने का इशारा दे चुके हैं। सोशल मीडिया पर इस बात को लेकर बहस भी चल रही है। उदय सिंह इन दिनों दिल्ली में हैं और पार्टी के वरीय नेताओं से लगातार संपर्क में हैं। यदि वे इशारे के अनुसार विकल्प अपना लें तो पूर्णिया समेत सीमांचल में एनडीए की परेशानी बढ़ सकती है। 2014 के चुनाव में सीमांचल में बीजेपी का सूपड़ा साफ हो चुका है। 30 सितंबर, 2012 को वेदना रैली का आयोजन कर पप्पू सिंह पूर्व में भी बागी तेवर अपना चुके हैं।
उधर, मधेपुरा सांसद राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव की भी एनडीए से दूरी बढ़ती दिख रही है। इनकी पत्नी रंजीत रंजन कांग्रेस से सुपौल की सांसद हैं। इस कारण पप्पू यादव की खास पकड़ सीमांचल की राजनीति पर मानी जाती है। पूर्णिया में भी इनका मकान है। कोसी-सीमांचल इलाके से पप्पू यादव पांच बार सांसद चुने गए हैं और तीन बार इन्होंने पूर्णिया लोकसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया है। इसी साल अक्टूबर में उन्होंने बिहार के कांग्रेस प्रभारी शक्ति सिंह गोहिल से मुलाकात कर नई राजनीतिक चर्चाओं को विस्तार दे दिया था। कटिहार सांसद तारिक अनवर भी अब कांग्रेस में आ गए हैं। किशनगंज के दिवंगत सांसद असरारुल हक कांग्रेस में थे। अररिया में भी उपचुनाव का परिणाम राजद के खाते में गया है। अब पूर्णिया में यदि इसी तरह की खींचतान रही तो एनडीए के लिए परेशानी खड़ी हो सकती है।