शिक्षिका की मदद से छात्रा के मन से निकला डर
पूर्णिया। बाल यौन शोषण की शिकार बच्चों के लिए ऐसी घटना किसी आपदा से कम नहीं होती है। मनोविश्लेषक डॉ.
पूर्णिया। बाल यौन शोषण की शिकार बच्चों के लिए ऐसी घटना किसी आपदा से कम नहीं होती है। मनोविश्लेषक डॉ. राजेश भारती के मुताबिक बाल मन काफी कोमल होता है। इस तरह की घटना से उबरने के लिए उन्हे घरेलू माहौल और काउसि¨लग की जरूरत होती है। स्कूल और समाज के रुख पर भी निर्भर करता है।
बेटी ने स्कूल जाना कर दिया था बंद
जब नित्य स्कूल जाने वाली बेटी स्कूल नहीं जा रही थी और चुप रहने लगी तो मां को संदेह हुआ क्या बात है। मां के काफी जतन करने के बाद भी बेटी ने कुछ नहीं बताया और ना ही स्कूल जाने के लिए तैयार हुई। मां काफी डर गई उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि अब क्या करे। मां को लगा जरूर स्कूल में ही कोई बात हुई है क्योंकि तीन दिन पहले स्कूल से आने के बाद से वह चुप रह रही है। मां ने स्कूल जाकर कारण तलाश करने का फैसला किया। माता-पिता दोनों स्कूल पहुंचे और बेटी के क्लास टीचर से बात की। स्कूल की शिक्षिका ने उसकी एक सहेली से एकांत में पूछा कि उसके बारे में कोई जानकारी है। सहेली ने बताया कि हां वह बोल रही थी कि दसवीं का एक छात्र बराबर उसे परेशान करता है। सहेली को उस छात्र का नाम नहीं पता था। शिक्षिका माता-पिता के साथ घर पहुंचे और पीड़ित छात्रा से बात की। उसके बाद उस छात्र का नाम सामने आया। शिक्षिका ने इसकी शिकायत प्राचार्य से की और आरोपित छात्र पर समुचित कार्रवाई की गई।
छात्रा को सामान्य करने की थी जिम्मेदारी
परिवार के लिए छात्रा के मन से डर निकालना सबसे बड़ी चुनौती थी। इस मामले में शिक्षिका ने बड़ी भूमिका निभाई। जिस शिक्षिका ने इस मामले को डील किया, वह मास्टर ट्रेनर है। वह छात्र और छात्राओं के शोषण को डील करने के लिए शिक्षक और शिक्षिका को प्रशिक्षित करती है। यह मामला उसके स्कूल का ही था। उक्त छात्र को स्कूल से निष्कासित करने की सूचना छात्रा को दी गई। फिर कई राउंड काउंसि¨लग की गई। घरेलू माहौल बेहतर रखने के लिए माता-पिता ने भी काफी सहयोग किया।
संवेदनशीलता के साथ मामले को किया गया डील
मामले को काफी संवेदनशीलता के साथ डील किया गया। स्कूल में इस मामले की बहुत चर्चा नहीं हुई। प्रधानाचार्य और शिक्षिका ने मिलकर मामले को डील किया। कक्षा की छात्र और छात्राओं को तैयार किया गया। स्कूल से लौटने के बाद पीड़ित छात्रा के साथ कोई इस मुद्दे पर बातचीत नहीं करेगा। सभी पहले की तरह की उसके साथ खेलेंगे और ध्यान रखेंगे।
महीने भर बाद छात्रा लौटी स्कूल
हालांकि माता-पिता छात्रा को स्कूल भेजने के पक्ष में नहीं थे। वह अन्य स्कूल में नामांकन करवाना चाहते थे। शिक्षिका के समझाने के बाद माता-पिता उसी स्कूल में छात्रा को वापस भेजने को तैयार हुए। पंद्रह दिनों बाद छात्रा वापस स्कूल जाने लगी। शिक्षिका ने स्कूल में उस छात्रा को किसी तरह की परेशानी या कमेंट का सामना नहीं करना पड़े इसके लिए पहले से ही तैयारी कर रखी थी। बच्ची धीरे-धीरे सामान्य हुई। दरअसल माता-पिता से अधिक स्कूल की शिक्षिका की भूमिका ने बच्चे को सहज बनाने में बड़ा योगदान दिया।