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धान रोपनी के गीतों से गूंजने लगे खेत

पूर्णिया। मानसून के प्रवेश करते ही किसानों की सक्रियता बढ़ गई है। धान के कटोरे के रूप

By JagranEdited By: Published: Thu, 12 Jul 2018 08:18 PM (IST)Updated: Thu, 12 Jul 2018 08:18 PM (IST)
धान रोपनी के गीतों से गूंजने लगे खेत
धान रोपनी के गीतों से गूंजने लगे खेत

पूर्णिया। मानसून के प्रवेश करते ही किसानों की सक्रियता बढ़ गई है। धान के कटोरे के रूप में शुमार पूर्णिया पूर्व प्रखंड के विभिन्न इलाकों में पानी से लबालब भरे खेतों में रोपनी करने वाली महिलाओं की मनुहारी गीत गूंजने लगे हैं। धान रोपनी करने वाली महिलाएं हंसी ठिठोली के साथ झूमझूम कर कजरी एवं चौहर गाते हुए धान की रोपनी में जुट गई हैं। चारों तरफ खेतों में रोपनी को लेकर किसान जुताई के साथ ही अन्य तैयारियों में जुट गए हैं। कहीं ट्रैक्टर तो कही हल-बैल से खेतों को रोपनी के लिए तैयार किया जा रहा है। चारों तरफ धान की रोपनी को लेकर उत्साह का वातावरण कायम है। बारिश का लंबे समय से इंतजार के बावजूद इंद्रदेव की कृपा किसानों पर कम ही हो रही है। जिसके लिए किसान पंपसेट का सहारा लेकर खेतों को तैयार कर रहे है। एक तरफ धान के बिचड़े को उखाड़कर खेतों तक पहुंचाने की कवायद हो रही है तो दूसरी तरफ रोपनहार सजे-सजाए खेतों में उत्साहित होकर रोपनी कर रही हैं।

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रोपनी के पहले होती है इष्टदेव की पूजा : धान की रोपनी के पहले किसानों में इष्टदेव की पूजा की परंपरा है। धान की प्रथम रोपनी के दिन पर्व त्योहार जैसा उत्साह कायम होता है। पूजा-अर्चना के बाद किसान रोपनी के पहले खेतों की पूजा करते हैं। तत्पश्चात रोपनहारों को पर्बी देकर रोपनी शुरू की जाती है। रोपनहारों के साथ ही पड़ोसियों को भी किसानों द्वारा मीठा भोजन अर्थात रसिया (गुड़ से बना खिचड़ी) का दावत दिया जाता है।

घरों के बदले खेतों में खूब गूंज रहे है सोहर और झूमर गीत :

कर्णप्रिय गीतों की आवाज से धान की रोपनी में खेत सुहाना लगने लगा है। शीतल पूरवा के बीच महिला रोपनहार मस्ती में झूमर, सोहर, लोरी, निर्गुण, सोंठी गीत गा-गाकर धान की रोपनी में में लग गए हैं। परंपरागत सोच के अनुसार गीत गाकर रोपनी करने से सबका मंगल होता हैं। दूसरा कारण यह भी माना जाता है कि दिन भर काम करने से थकान दूर करने एवं काम में मन लगाने के लिए गीत गा-गाकर रोपनी करते हैं।

क्या कहती हैं महिला रोपनहार : धान की रोपनी का काम तेजी से जारी है। महिला रोपनहार रधिया देवी ने बताया कि एक समय था जब खेत मालिक खेत में खड़ा रहते थे बैलों के गले में बंधी घुंघरू रुनझुन की आवाज हल जोतने के समय बजती थी और रोपनहार झूम-झूम के गीत गा-गाकर रोपनी करती थी। कभी-कभी पुरुष और महिला रोपनहारों के बीच गीत का दंगल खेतों में ही शुरू हो जाता था। फैसला खेत में खड़े मालिक करते थे। वहीं रोपनहार सुगिया देवी के कहा कि अब तो अधिकतर खेतों में हल बैल के बदले ट्रैक्टर खेत जोत रहे है और उस पर फूहड़ गीत बजाये जा रहे हैं। वहीं महिला रोपनहार रामवती देवी कहती है कि एक समय था जब हमलोग धान रोपने जाते थे तो किसान पहले हमलोगों के पैरों में पानी डालकर सम्मान के साथ खेतों पर लेकर जाते थे, लेकिन अब मशीनी युग में हमलोगों का सम्मान विलुप्त हो चुका है। वहीं रोपनहार कुसुमिया देवी कहती हैं कि बीते साल रोपनी में डेढ़ सौ रुपये भी मिल जाए तो वे लोग खुद को खुशनसीब मानतीं थीं। इस बार दो सौ रुपये भी आसानी से मिल रहे हैं। साथ ही काम भी रोजाना मिल रहा है।


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