Bihar Assembly Election 2020 : बिहार में बेवजह नहीं है बड़े दलों की बेफिक्री और छोटे की बेचैनी
बड़े दलों की बेफिक्री और छोटे की बेचैनी बेवजह नहीं है। दोनों तरह के दलों को पता है अकेले लडऩे पर सरकार बनाने की बात तो दूर बड़े कहे जाने वाले कई नेता अपनी सीट भी नहीं बचा सकेंगे।
पटना, अरुण अशेष। बिहार में बड़े दलों की बेफिक्री और छोटे दलों की बेचैनी बेवजह नहीं है। दोनों तरह के दलों को पता है कि अकेले लडऩे पर सरकार बनाने की बात तो दूर बड़े कहे जाने वाले कई नेताओं की अपनी सीट भी नहीं बच पाएगी। यह अनुमान नहीं है। पिछले कई चुनावों का रिकॉर्ड है। बिना गठबंधन के चुनाव लडऩे का खराब तजुरबा सभी दलों को है। जदयू की पूर्ववर्ती समता पार्टी और भाजपा का गठबंधन सबसे पुराना है। इन दोनों की कामयाबी का बड़ा श्रेय गठबंधन को ही जाता है।
चेहरा से उठा मुद्दा तो मिला जवाब
लोजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष चिराग पासवान कह गए कि विधानसभा चुनाव किसके चेहरे पर लड़ा जाएगा, यह भाजपा तय करेगी। राजनीति से जुड़े लोग चिराग के बयान में कुछ गूढ़ तत्व की खोज ही कर रहे थे कि गृह मंत्री अमित शाह ने चेहरा बता दिया- नीतीश कुमार। इसके जरिए चिराग को भी संदेश दे दिया गया कि एनडीए में रहना है तो इसी चेहरे पर चुनाव लडऩा होगा। जदयू ने तो आधिकारिक तौर पर चिराग के बयान की नोटिस भी नहीं ली।
कह दिया जाता है समय पर बात होगी
इसी तरह, हिंदुस्तानी अवामी मोर्चा के अध्यक्ष जीतनराम मांझी, रालोसपा अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा और कांग्रेस के कुछ नेता अप्रत्यक्ष रूप से राजद पर हमला बोल कर यह बताने की कोशिश करते हैं कि हमें कम न आंका जाए। राजद खामोश रह कर इन दलों को बता देता है कि समय आने पर ही बात होगी।
1990 के बाद अनिवार्य हो गया गठबंधन
2015 के विधानसभा चुनाव में भाजपा और जदयू अलग-अलग चुनाव लड़े। दोनों ने दूसरे दलों के साथ गठबंधन बनाया था। विधानसभा की तरह लोकसभा चुनाव में भी किसी दल को कामयाबी नहीं मिली है। गठबंधन की यह राजनीति छिटपुट ढंग से पहले भी चलती रही है, लेकिन 1990 के बाद यह सत्ता के लिए यह अनिवार्य हो गया है। लिहाजा, चुनाव से पहले अधिक सीट हासिल करने के लिए उछल कूद खूब चलेगा, मगर आखिरी समय में सबको एक साथ आना है।
अकेले का हश्र सब देख रहे हैं
- यह सिर्फ अवधारणा है कि 1995 के विधानसभा चुनाव में जनता दल के नेता की हैसियत से लालू प्रसाद को अकेले बहुमत मिल गया। एकीकृत बिहार की 324 विधानसभा सीटों में जनता दल के 264 उम्मीदवार थे। बाकी सीटें भाकपा, माकपा, मार्क्सवादी समन्वय समिति और झामुमो को दी गई थी। गठबंधन में जनता दल को 167 सीटें मिली थी।
- समता पार्टी का स्थापना के समय ही अकेले चुनाव लडऩे का खराब अनुभव हो चुका है। 310 सीटों पर लडऩे के बाद उसे सिर्फ सात सीटों पर कामयाबी मिल पाई थी।
- 2000 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस 323 सीटों पर लड़ी। सिर्फ 23 उम्मीदवार जीत पाए थे। कांग्रेस 1990 और 1995 का विधानसभा चुनाव अकेले लड़ी थी। 2005 अक्टूबर के विधानसभा चुनाव में लोजपा अकेले मैदान में गई। 203 उम्मीदवार खड़े किए। सिर्फ 10 की जीत हुई।