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World Athletics Day: बालू पर नंगे पैर दौड़ एक खिलाड़ी बना ओलंपियन, 40 साल से बिहार की झोली खाली

40 साल से बिहार एक अदद ओलंपियन एथलीट की तलाश में है। राज्य से खिलाड़ी कई हुए पर शिवनाथ सिंह जैसा कोई नहीं। पढ़ें विश्व एथलेटिक्स दिवस पर ये विशेष स्टोरी।

By Akshay PandeyEdited By: Published: Thu, 07 May 2020 07:51 AM (IST)Updated: Thu, 07 May 2020 07:51 AM (IST)
World Athletics Day: बालू पर नंगे पैर दौड़ एक खिलाड़ी बना ओलंपियन, 40 साल से बिहार की झोली खाली
World Athletics Day: बालू पर नंगे पैर दौड़ एक खिलाड़ी बना ओलंपियन, 40 साल से बिहार की झोली खाली

अरुण सिंह, पटना। लगताार दो ओलंपिक (1976 मांट्रियल और 1980 मास्को) में बिहार के शिवनाथ सिंह ने भारत का प्रतिनिधित्व किया। तबसे 40 साल गुजर गए पर राज्य को दूसरा शिवनाथ नहीं मिल सका। हालांकि इस दौरान प्रेमचंद सिंह, चाल्र्स ब्रोमियो, राजेंद्र सिंह, केश्वर साहू, अर्चना बारा ने उम्मीद जगाई पर वे शिवनाथ के करीब नहीं पहुंच सके। वर्तमान में सैफ में भाग ले चुकीं सुगंधा समेत अंजनी कुमारी, सुदामा ने जूनियर स्तर पर बढिय़ा प्रदर्शन किया, लेकिन एशियाड और ओलंपिक के सफर में उन्हेंं कड़ी मशक्कत करनी होगी।

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इंफ्रास्ट्रक्चर का अभाव 

एकीकृत बिहार में एथलेटिक्स की गतिविधियां जमशेदपुर और रांची में होती थीं। इंफ्रास्ट्रक्चर और प्रशिक्षण केंद्र भी इन्हीं दोनों जगहों पर सिमटा था। एथलीटों को टाटा का संरक्षण था, जिससे विभाजन के बाद जो अच्छे खिलाड़ी थे, वे वहीं रह गए। जो बच गए वे संसाधन और प्रशिक्षण के अभाव से जूझ रहे हैं।

जहां सिंथेटिक ट्रैक, वहां प्रशिक्षण केंद्र गायब 

घास पर दौड़ रहे इन एथलीटों को एथलेटिक्स के लिए सबसे जरूरी सिंथेटिक्स ट्रैक का दर्शन शेष बिहार में 14 साल बाद हुआ, लेकिन उसका पूरा लाभ वे नहीं उठा पा रहे हैं। पहले बीएमपी-5 स्थित मिथिलेश स्टेडियम में ट्रैक बिछाई गई, जो खास एथलीटों तक सिमट कर रह गया। उसके बाद पाटलिपुत्र खेल परिसर में बिछी ट्रैक भी उनके उद्देश्यों की पूॢत नहीं कर रहा। एथलीटों को पास बनाने, शुल्क लगने और लगातार अन्य खेलों के आयोजन होने से परेशानी हो रही है। सबसे मजेदार बात यह है कि दोनों जगह बिछी सिंथेटिक ट्रैक के पास प्रशिक्षण केंद्र नहीं है। दूसरी ओर, भागलपुर समेत कुछ जगहों पर सरकार ने प्रशिक्षण केंद्र खोले तो वहां सिंथेटिक ट्रैक गायब है।

खेल पदाधिकारी की भूमिका में प्रशिक्षक

2007 में बहाल राज्य सरकार के पास मात्र दो स्थायी प्रशिक्षक राजेंद्र कुमार और शमीम अंसारी नियुक्ति के बाद से प्रभारी जिला खेल पदाधिकारी की भूमिका में हैं। कामचलाऊ व्यवस्था के तहत प्रशिक्षण केंद्रों पर अनुबंधित प्रशिक्षक बहाल हैं। दो कमरों और एक छोटे से मैदान में सिमटे केंद्र में आवास, भोजन और खेलने की व्यवस्था है।

तराशकर हीरा बनाने की जरूरत 

इन अभावों के बाद भी इन केंद्रों में मीनू सोरेन, ग्लोरिया टुड्डू, पार्वती सोरेन और जमुई, भभुआ, सारण के सुदूर क्षेत्रों में सुदामा, अंजनी, रौशन जैसे दर्जनों शिवनाथ पड़े हैं, जिन्हेंं तराशने वाले जौहरी (प्रशिक्षक) की जरूरत है।

सेना में भर्ती की तैयारी कर रहे थे शिवनाथ

बिहार के पहले अर्जुन पुरस्कार विजेता ओलंपियन एथलीट शिवनाथ सिंह का जन्म बक्सर के मंझरिया गांव में हुआ था। गांव के नजदीक गंगा नदी के किनारे बालू पर शिवनाथ नंगे पांव दौड़ कर सेना में भर्ती की तैयारी कर रहे थे। पांच हजार मीटर दौड़ में दो एशियन चैंपियनशिप में चार रजत पदक जीतने के बाद 1974 में तेहरान एशियाड में उन्होंने एक कदम आगे बढ़कर स्वर्ण पर कब्जा जमाया और उसके बाद ओलंपिक का सुहाना सफर भी तय किया। मांट्रियल ओलंपिक में मैराथन में उन्हेंं 11वां स्थान मिला। उनके नाम मैराथन का भारतीय रिकॉर्ड भी है, जिसे कोई नहीं तोड़ सका है। बिहार सरकार की ओर से उन्हेंं मरणोपरांत लाइफटाइम एचीवमेंट अवॉर्ड मिला।

इनसे है उम्मीद...

टोक्यो ओलंपिक के लिए पटियाला में लगे भारतीय कैंप में चयनित बिहार की एकमात्र एथलीट हूं। अपने राज्य में महिलाओं के लिए भी अलग से एथलेटिक्स सेंटर खुले। खिलाडिय़ों के लिए बहाली प्रक्रिया फिर से शुरू हो।

अंजनी कुमारी, नेशनल जेवलिन थ्रो में स्वर्ण पदक विजेता

एथलेटिक्स सभी खेलों की जननी है, लेकिन हमारे प्रदेश में इसकी स्थिति अच्छी नहीं है। कुशल प्रशिक्षकों की कमी है, जिससे खिलाड़ी आगे नहीं बढ़ पाते।

-अंजू कुमारी, एशियन मास्टर्स एथलेटिक्स में तीन स्वर्ण विजेता

लॉकडाउन के बाद हमारा प्रयास रहेगा कि संघ के साथ मिलकर खिलाडिय़ों को ट्रेनिंग दिलाने की व्यवस्था कराएं। फिलहाल एथलीट पटियाला के तर्ज पर पहले घास और बालू पर दौडऩे का अभ्यास करते हैं। इसके बाद सिंथेटिक ट्रैक पर दौडऩे से उनके घायल होने की संभावना बेहद कम होती है।

-डॉ. संजय सिन्हा, निदेशक, खेल विभाग

राज्य के  एथलीटों ने अभाव के बावजूद अपनी प्रतिभा और परिश्रम के बल पर गहरी छाप छोड़ी है। जल्द कार्य योजना तैयार कर खेल प्रतिभाओं को सुविधा प्रदान की जाए, ताकि एशियाड और ओलंपिक स्तर पर हम अपनी पहुच बना सके।

-अभिषेक कुमार, वरीय एनआइएस एथलेटिक्स कोच

जिलों में अंतरराष्ट्रीय स्तर का 400 मीटर का एथलेटिक्स ट्रैक होना जरूरी है। उन्हें खेल उपकरण के साथ अन्य सुविधाएं दी जाएं। तब जाकर विश्व एथलेटिक्स डे की प्रमाणिकता सही साबित होगी।

-शम्स तौहिद, बिहार एथलेटिक्स संघ के तकनीकी समिति के अध्यक्ष


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