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शर्म घूंघट के भीतर नहीं, 'इज्जतघर' जरूरी है, जानिए हकीकत बिहार की

स्वच्छ भारत मिशन, स्वच्छता अभियान की बात करें तो केंद्र सरकार की पहल और बिहार सरकार का काम शौचालयों के निर्माण के लिए सराहनीय है, लेकिन गांव में आज भी इसके लिए जागरूकता जरू्री है।

By Kajal KumariEdited By: Published: Wed, 11 Apr 2018 08:48 PM (IST)Updated: Fri, 13 Apr 2018 08:13 AM (IST)
शर्म घूंघट के भीतर नहीं, 'इज्जतघर' जरूरी है, जानिए हकीकत बिहार की
शर्म घूंघट के भीतर नहीं, 'इज्जतघर' जरूरी है, जानिए हकीकत बिहार की

पटना [काजल]। बिहार में चंपारण सत्याग्रह के सौ वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में बिहार सरकार की तरफ से चलाए गए कार्यक्रम का समापन करने पीएम मोदी मोतिहारी पहुंचे और सत्याग्रह से स्वच्छाग्रह कार्यक्रम के तहत लोगों से स्वच्छता को अपने जीवन में उतारने की अपील की। साथ ही पीएम ने बिहार में चल रहे स्वच्छता मिशन की भी सराहना की।

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पीएम मोदी ने खूब की बिहार की तारीफ

वहीं पीएम मोदी ने स्वच्छ भारत अभियान से देश में महिलाओं की जिंदगी में आये बदलाव का जिक्र किया और साथ ही एक शौचालय बनने के मायने भी बताए। इसके साथ ही पीएम मोदी ने बिहार वासियों की इच्छाशक्ति की भी तारीफ की।

पीएम ने कहा कि पिछले एक हफ्ते में बिहार में 8 लाख 50 हजार से ज्यादा शौचालयों का निर्माण किया गया है। ये गति और प्रगति कम नहीं है। मैं बिहार के लोगों को, प्रत्येक स्वच्छाग्रही को और राज्य सरकार को इसके लिए बहुत-बहुत बधाई देता हूं।

जमीनी हकीकत है कुछ और....

लेकिन जमीनी हकीकत की बात करें तो आज भी बिहार के गांवों में शौच के लिए महिलाओं का खेत में जाना आम बात है। शौच आने पर रात के अंधेरे का इंतजार करना और सुबह की पहली किरण के फूटने से पहले अपनी नित्य क्रिया कर्म से निवृत होना उन दुल्हनों के लिए कष्टकारक होता है जो घूंघट में रात के अंधेरे में शौच के लिए अपनी बड़ी बुजु्र्ग के साथ चलने का इंतजार करती हैं।

घूंघट ओढ़कर खेत के लिए जाना, सड़क पर बैठना, शर्मनाक

रात में सड़क के किनारे या खेतों की आड़ पर एक लाइन से शौच के लिए बैठीं महिलाएं घूंघट ओढ़कर बैठी रहती हैं, खासकर कोई बड़ी गाड़ी की लाइट उनपर पड़ती है तो या तो वो उठकर खड़ी हो जाती हैं या मुंह ढ़ंककर बैठी ही रहती हैं। ये किसी भी विकसित समाज के लिए कितने शर्म की बात है।

ये तो हो गई बहुओं की बातें, लेकिन अगर हम बेटियों की बात करें तो आए दिन शौच के लिए खेत में गईं बच्चियों के साथ दुष्कर्म और उसके बाद उनकी हत्या कर दी जाती है। आए दिन होने वाली ये घटनाएं बिहार में घर में शौचालय नहीं होने की वजह से हो रही हैं।

यदि सोचकर देखें तो लगता है कि दिन के 14-15 घंटे बिना शौचालय की सुविधा के रहना कितना तकलीफ़देह हो सकता है। मधुबनी जिले के कमलपुर गांव की रहने वाली राजो देवी ने बताया कि हम तो शौच के लिए खेत में या सड़क के किनारे चले जाते थे, लेकिन बहुओं को एेसा करते देखना अच्छा नहीं लगता है।

महिलाओं की परेशानी कोई नहीं समझता

उन्होंने कहा कि पुरुष तो शौच के लिए कहीं भी जा सकते हैं, दिक़्क़त सिर्फ़ महिलाओं की है। एक मुश्किल यह भी है कि महिलाओं की इस दिक़्क़त को समझने वाले कम हैं। शौचालय बनाने में 10,000 रुपए का ख़र्च आता है। मेरे सिर्फ़ चार बच्चे हैं तो मैंने बना लिया। ज़्यादातर लोगों के 6-8 बच्चे हैं, तो उनके पास इतने पैसे नहीं।”

दहेज में नहीं देते बेटी के लिए शौचालय बनाने का खर्च

इस गांव में घरों में टेलीविज़न, डिश की छतरियां और जगह-जगह मोटर साइकिल और गाड़ियां खड़ी दिखती हैं। गांववाले ख़ुद बताते हैं कि सुख-सुविधा के ये साधन ज़्यादातर दहेज में आए हैं। लेकिन दहेज में कोई बेटी के लिए शौचालय बनवाने का ख़र्च नहीं देता। घरों में आराम के साधन ख़रीदे जाते हैं, पर शौचालय पर ख़र्च नहीं किया जाता है।

शर्म और संकोच के चलते, यहां महिलाएं तड़के सुबह और देर शाम ही खेत जाती हैं, मानो यह समय उनके लिए आरक्षित हो। आज भी गांव में एक साथ दर्जनों के समूह में लड़कियां और महिलाएं, हाथ में पानी की बोतल लिए खेतों की तरफ़ जाती मिल जाएंगी। इसकी एक बड़ी वजह ये है कि अकेली पाकर मनचले शौच कर रही लड़कियों से छेड़खानी करते हैं, समूह में रहने से इन्हें मौका नहीं मिलता।

बेटियां-बहुएं कह रहीं-जहां शौचालय नहीं, वहां जाना नहीं

लेकिन परिस्थितियां बदली हैं, आज बेटियां उस घर में शादी करने से मनाही कर रही हैं जिस घर में शौचालय नहीं हैे। बहुएं ससुराल छोड़कर इस जिद पर मायके चली जा रही हैं कि जबतक ससुराल में शौचालय नहीं बनेगा, वापस नहीं आऊंगी। लोगों के बीच स्वच्छता और शौचालय को लेकर जागरूकता आई है, लोग शौचालय की जरूरत को धीरे-धीरे समझ रहे हैं। लेकिन अभी लोगों की मानसिकता में और बदलाव लाने की जरूरत है।

स्वच्छ भारत अभियान के तहत 80 % घरों में बन गया शौचालय

खुले में शौच की समस्या से मुक्ति के लिये स्वच्छ भारत अभियान के तहत चल रहे प्रयासों के फलस्वरूप 80 प्रतिशत ग्रामीण परिवारों को घर में ही शौचालय की सुविधा मुहैया करा दी गयी है। पेयजल एवं स्वच्छता मंत्रालय के आधिकारिक आंकड़ों में उत्तर प्रदेश, बिहार और उड़ीसा को छोड़कर अधिकांश राज्यों के ग्रामीण इलाकों को खुले में शौच की समस्या से मुक्ति दिलाने का दावा किया गया है। 

पेयजल एवं स्वच्छता राज्यमंत्री रमेश चंदप्पा जिगाजिनगी ने राज्यसभा में इस सप्ताह एक सवाल के लिखित जवाब में बताया कि देश भर में 79.59 प्रतिशत ग्रामीण परिवारों को घर में शौचालय की सुविधा मुहैया हो चुकी है।

शौचालय निर्माण में सबसे निचले पायदान पर है बिहार 

मंत्रालय का दावा है कि इस साल 26 मार्च तक देश में कुल 16.22 करोड़ ग्रामीण परिवारों में से 12.91 करोड़ परिवारों को इस सुविधा से जोड़ दिया गया है। इस मामले में पीछे चल रहे राज्यों में बिहार के 54.70 प्रतिशत ग्रामीण परिवार, उड़ीसा के 49.51 प्रतिशत और उत्तर प्रदेश के 41.32 प्रतिशत ग्रामीण परिवार घर में शौचालय की सुविधा से दूर हैं।

जबकि गुजरात, छत्तीसगढ़, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश और केरल सहित 13 राज्यों के शत प्रतिशत ग्रामीण इलाके खुले में शौच की समस्या से मुक्त होने का सरकार के आंकड़ों में दावा किया गया है।

उल्लेखनीय है कि स्वच्छ भारत अभियान की शुरुआत के समय अक्टूबर 2014 में ग्रामीण इलाकों में खुले में शौच करने वालों की संख्या 55 करोड़ थी जो अब यह आंकड़ा 20 करोड़ रह गयी है। अब तक देश के तीन लाख 44 हजार गांव और 360 जिले खुले में शौच से पूरी तरह मुक्त हो चुके हैं।

गोपालगंज ने सौ घंटे में बने 11,244 शौचालय 

वहीं, बिहार के कई जिले ओडीएफ घोषित होने वाले हैं, जिसमें रोहतास जिला सबसे आगे है। तो वहीं गोपालगंज में भी स्वच्छता कार्यक्रम के तहत चलाए गए विशेष अभियान के दौरान सौ घंटे में 11,244 शौचालयों का निर्माण किया गया जो नया रिकॉर्ड है।

जिले के 13 प्रखंडों में इस अभियान के दौरान 12 पंचायतों तथा 236 वार्ड को ओडीएफ घोषित किया गया। इस अभियान के दौरान तीन हजार राज मिस्त्री तथा पांच हजार मजदूरों को लगाया गया था।

रूनकी देवी ने शौचालय के लिए बेच दिया मंगलसूत्र-झुमका

48 वर्षीय रुनकी देवी राजधानी पटना के नजदीकी वरुना गांव की रहने वाली हैं। उनके घर में शौचालय न हाेने से उन्हें भी अन्य महिलाओं की तरह असहज स्थिति का सामना करना पड़ रहा था। वे अक्सर पति परसुराम पासवान से कहती कि घर में शौचालय बनवा लेना चाहिए, लेकिन परसुराम ने उनकी बात पर ध्यान नहीं दिया।

रुनकी देवी ने इस योजना के तहत अपने स्तर पर ही घर में शौचालय बनवाने का फैसला किया। इसके लिए उन्होंने पहले अपना मंगलसूत्र बेचा, लेकिन इससे उन्हें सिर्फ 9,000 रुपए ही मिले। जबकि जरूरत इससे कुछ ज्यादा पैसों की थी। इसलिए उन्हें बिना किसी अफ़सोस के अपने सोने के झुमके भी बेच दिए। इस तरह उन्हें 4,000 रुपए और हासिल हो गए और इन पैसों की मदद से उन्होंने घर में एक बेहतर शौचालय बनवा लिया।


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