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Bihar Election 2020: क्या बिहार बदलेगा हिन्दी पट्टी राज्यों का चुनावी ट्रेंड, नीतीश के पास चौथी पारी का रिकॉर्ड बनाने का मौका

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के पास जहां गुजरात और ओडिशा के मौजूदा चुनावी इतिहास के अनुरूप इस सूची में तीसरे नंबर पर आने का मौका है। वहीं हिन्दी भाषी राज्यों के चार दशक के चुनावी इतिहास का ट्रेंड महागठबंधन की उम्मीद जगा रहा है।

By Arun Kumar SinghEdited By: Published: Mon, 26 Oct 2020 08:42 PM (IST)Updated: Mon, 26 Oct 2020 11:09 PM (IST)
Bihar Election 2020: क्या बिहार बदलेगा हिन्दी पट्टी राज्यों का चुनावी ट्रेंड, नीतीश के पास चौथी पारी का रिकॉर्ड बनाने का मौका
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार चुनावी रैली को संबोधित करते हुए।

नई दिल्ली, संजय मिश्र। राज्यों में सत्ता के ट्रेंड के हिसाब से बिहार का चुनाव इस बार बेहद दिलचस्प बन गया है। सूबे की सत्ता के लिए जारी संग्राम के बीच इसके रोचक होने की वजह हिन्दी भाषी राज्यों के बीते चार दशक के चुनावी नतीजे का पैटर्न है जिसमें लगातार चौथी बार का रिकॉर्ड नहीं रहा है। मौजूदा समय में देश में केवल दो राज्यों गुजरात और ओडिशा की सरकारों ने ही लगातार चार या अधिक बार सत्ता में वापसी की है।

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केवल दो राज्यों गुजरात और ओडिशा में ही है लगातार चार या अधिक बार जनादेश वाली सरकारें

चुनावी राजनीति की यह दिलचस्प पृष्ठभूमि जाहिर तौर पर बिहार में सत्ता के दावेदार दोनों गठबंधनों की सियासी धड़कनें बढ़ाने वाली हैं। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के पास जहां गुजरात और ओडिशा के मौजूदा चुनावी इतिहास के अनुरूप इस सूची में तीसरे नंबर पर आने का मौका है। वहीं हिन्दी भाषी राज्यों के चार दशक के चुनावी इतिहास का ट्रेंड महागठबंधन की उम्मीद जगा रहा है। मध्यप्रदेश में बेशक शिवराज सिंह चौहान भाजपा की चौथी सरकार चला रहे हैं मगर इसे चुनावी जनादेश नहीं मिला है। बिहार में नीतीश से पहले लालू-राबड़ी की राजद सरकार ने 1990 से 2005 तक लगातार तीन जीत हासिल की लेकिन चौथी पारी के जनादेश से वे बहुत पीछे रह गए। 

कई राज्यों में लगातार दूसरी बार नहीं मिला मौका 

देश की राजनीति की धारा तय करने वाले हिन्दी पट्टी के सबसे बड़े सूबे उत्तरप्रदेश में तो 1989 के बाद कोई राजनीतिक पार्टी लगातार दूसरी बार भी जनादेश हासिल नहीं कर पायी है। राजस्थान में तो 1989 के बाद से अब तक लगातार किसी को दूसरी पारी का जनादेश नसीब नहीं हुआ है।सन 2000 में राज्य बने उत्तराखंड में किसी पार्टी को अब तक लगातार दूसरी बार सत्ता नहीं मिली है। राजस्थान में 1993 में भाजपा के भैरो सिंह शेखावत को दूसरी बार मिले जनादेश के बाद कांग्रेस और भाजपा दोनों को लगातार दूसरी पारी नहीं मिली है। 

हिमाचल प्रदेश के विधानसभा चुनाव में भी 1990 के बाद लगातार दूसरी पारी का राजनीतिक पार्टियों का खाता खुला नहीं है। दिल्ली में शीला दीक्षित की कांग्रेस की सरकार ने 1998 से 2013 तक लगातार तीन बार जनादेश हासिल किए मगर अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी के उदय के साथ ही उनकी चौथी पारी की उम्मीद अस्त हो गई। चुनावी जनादेश के इस ट्रेंड के बीच मौजूदा दौर में सबसे लंबे समय से सत्ता में बने रहने का रिकार्ड गुजरात की भाजपा सरकार के नाम है। 

भाजपा गुजरात में बीते 22 सालों से सत्ता में है और उसे लगातार छह विधानसभा चुनावों में जनादेश मिला है। ओडिशा में बीजद सन 2000 से लगातार पांच चुनाव जीत कर सत्ता में कायम है और वर्तमान में लगातार सबसे अधिक समय तक मुख्यमंत्री बने रहने का रिकार्ड भी नवीन पटनायक के नाम ही है। वैसे सिक्किम में पवन कुमार चामलिंग को 1994 से 2019 तक लगातार पांच बार तो पश्चिम बंगाल में वाममोर्चा 1977 से 2011 तक लगातार सात बार चुनाव जीतकर कर सत्ता में वापसी करने का रिकार्ड बना चुके हैं। बंगाल की 34 साल के वामपंथी सरकार में ज्योति बसु ने बतौर मुख्यमंत्री लगातार पांच पारी खेली तो बुद्धदेव भट्टाचार्य ने दो पारी पूरी की। राज्यों में बीते चार दशकों कायह चुनावी इतिहास जाहिर तौर पर बिहार में सत्ता की दौड़ में शामिल गठबंधन के दोनों खेमों के लिए उम्मीद और चिंता दोनों का सबब है।


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