दहेज की कुप्रथा के खिलाफ अभियान क्यों? ...जानिए
नवरात्र में लड़कियों को देवी मानकर उनके पैर पूजते समाज की। दूसरी, दहेज के लिए ब्याहताओं को आग में झोंकते-जलाते समाज की। दोनों में स्वार्थ और अतिवाद दिखता है।
पटना [सद्गुरु शरण]। हमारे सामने दो तस्वीरें हैं। पहली, नवरात्र में लड़कियों को देवी मानकर उनके पैर पूजते समाज की। दूसरी, दहेज के लिए ब्याहताओं को आग में झोंकते-जलाते समाज की। दोनों में स्वार्थ और अतिवाद दिखता है।
यही हमारे समाज की विडंबना है कि हम स्त्री को उसके वास्तविक स्वरूप में स्वीकार नहीं करते। स्त्री का सबसे अहम रूप उसका जननी होना है। यह सृष्टि इसलिए है क्योंकि स्त्रियां हैं। वे नहीं होंगी, तो कुछ नहीं होगा। यह बात किसी को याद नहीं रहती।
इस बहस की जरूरत नहीं कि लड़की की शादी में उसके परिवार से दहेज लेने की कुप्रथा कब और किन परिस्थितियों में शुरू हुई। सिर्फ यह समझना जरूरी है कि दहेज प्रथा दुनिया के तमाम देशों में प्रचलित
निकृष्टतम कुप्रथाओं में एक है जिसमें लड़की की शादी के लिए परोक्ष रूप से लड़का खरीदा जाता है। हम सभ्यता और विकास के उस दौर में दाखिल हो चुके हैं जहां तमाम पशुओं-पक्षियों की प्रजातियों की खरीद-फरोख्त पर भी प्रतिबंध लग चुका है। इसके विपरीत 'दूल्हों की बिक्री' बदस्तूर जारी है।
लालच और लोलुपता की इंतिहा यह कि लड़के की पारिवारिक पृष्ठभूमि और कॅरियर के हिसाब से दहेज के रेट तय हैं। दहेज जुटाने के लिए मकान और खेत बेचने पड़ते हैं। जिंदगी भर की सारी बचत और प्रॉविडेंट फंड फूंक देना पड़ता है। कर्ज लेना पड़ता है।
इसके बावजूद दहेज-लोलुपों की जेब नहीं भरती तो बेटियां जिंदा जलाई जाती हैं।
जागरण का यह अभियान इसी कुप्रथा के खिलाफ है। सबको पता है कि भ्रूण हत्या की अहम वजह दहेज है।
जनसंख्या में स्त्री-पुरुष अनुपात डगमगा रहा है। दहेज दानव से डरकर कमजोर आत्मबल वाले मां-बाप कोख में ही बेटियों का कत्ल कर रहे। यह सब तब, जब बेटियां जीवन के हर क्षेत्र में पुरुषों के बराबर योगदान दे रही हैं। पाताल से अंतरिक्ष तक उनकी पहुंच है। अब वे युद्ध के अग्रिम मोर्चों पर भी तैनात की जा रही हैं।
शिक्षा, चिकित्सा, राजनीति, फैशन, उद्योग, खेल, कॉरपोरेट जगत, अभिनय और समाज सेवा में लड़कियां चमत्कारिक प्रदर्शन कर रही हैं, पर जैसे ही बात उनके विवाह की होती है, वे सिर्फ लड़की बनकर रह जाती हैं जिनके विवाह के लिए दहेज अनिवार्य है। यह अभियान इसी कलंक को मिटाने के लिए है।
मुुख्यमंत्री नीतीश कुमार की दहेज प्रथा के खिलाफ पहल देशभर में चर्चा और उत्सुकता का विषय बनी हुई है। दहेज का दानव अमर नहीं है। इसका संहार होना ही है। बहरहाल, बिहार गर्व करेगा कि इसके सामने डटकर खड़े होने का साहस इस मिट्टी ने जुटाया। जागरण को गर्व है कि इतिहास के उस अध्याय में दहेज प्रथा के खिलाफ झंडाबरदार के रूप में उसकी भूमिका भी रेखांकित होगी।
हमें यह झंडा उठाने का हौसला हमारे पाठकों की ताकत से मिला। हमें भरोसा है कि इसी ताकत के बल पर हम इस झंडे को कामयाबी की मंजिल पर फहराने में कामयाब होंगे।
जागरण के इस अभियान का आगाज मंगलवार को पूरे बिहार में एक साथ होगा। इसके लिए पटना सहित सभी शहरों, कस्बों, अनुमंडलों और प्रखंड मुख्यालयों में वाहन रैलियां, प्रभात फेरियां और शपथ के कार्यक्रम आयोजित होंगे।
पटना में प्रात: 8 बजे एसके पुरी पार्क के सामने वाहन रैली रवाना होगी और शहर के विभिन्न हिस्सों से गुजरकर 9 बजे गांधी मैदान पहुंचेगी। इस आयोजन में राज्य सरकार के कई मंत्री, शासन और जिला प्रशासन के अधिकारी, राजधानी के गणमान्य नागरिक, युवा, महिलाएं और विभिन्न क्षेत्रों के लोग शामिल होंगे।