आखिर सवर्ण आरक्षण का पहला लाभ किस दल को मिलेगा, जानिए
केंद्र सरकार गरीब सवर्णों को दस फीसद आरक्षण का लाभ देगी। इससे गरीब सवर्णों को तो बाद में फायदा होगा। लेकिन बात ये है कि किस दल को इससे ज्यादा फायदा होगा?
पटना [अरुण अशेष]। केंद्र सरकार गरीब सवर्णों को सरकारी सेवाओं और शैक्षणिक संस्थानों में 10 फीसदी आरक्षण देने जा रही है। इस खबर के असर की चर्चा हो रही है। चर्चा के केंद्र में यह विषय नहीं है कि आरक्षण कैसे लागू होगा और इसका लाभ कितनी आबादी को मिलेगा?
विषय यह है कि एनडीए को चुनाव में कितना लाभ मिलेगा? अगर मंडलवादी धारा की पार्टियों ने इसका समर्थन किया तो उन्हें पहले से आरक्षण का लाभ ले रहे समूहों की नाराजगी का किस हद तक शिकार होना पड़ेगा? विरोध किया तो आरक्षित समूह के लोगों की उनके पक्ष में गोलबंदी किस स्तर तक हो पाएगी?
असल में राज्य की राजनीति में आरक्षण, वोटों की गोलबंदी का अहम कारक रहा है। जिन लोगों ने मंडल का दौर देखा है, उन्हें याद होगा कि आरक्षण की घोषणा होने के बाद लाभुक पक्ष ने कोई प्रतिक्रिया जाहिर नहीं की थी। उनके लिए सामान्य घटना थी। लेकिन, जब विरोध की शुरुआत हुई तो अचानक माहौल बदल गया।
पिछड़ों को लगा कि उन्हें कुछ खास मिलने जा रहा है, जिसका संपन्न लोग विरोध कर रहे हैं। बस, गोलबंदी हो गई। यह आज भी वोट का सबसे बड़ा माध्यम बना हुआ है। समय के साथ बदलाव आया। सरकारी नौकरियां हर साल कम हो रही हैं। डोनेशन के बल पर अच्छे शिक्षण संस्थानों में दाखिला हो रहा है।
फर्क यह पड़ा है कि सामान्य शैक्षणिक परीक्षा से लेकर यूपीएससी तक की प्रतियोगिता में आरक्षित वर्ग के बच्चे टॉप कर रहे हैं। कुल मिलाकर शिक्षा और सेवाओं का आरक्षण राजनीतिक दलों की तरह उसका लाभ उठानेवाले समूह की नई पीढ़ी के लोगों को आकर्षित नहीं कर रहा है।
फिर भी इसके आकर्षण को पूरी तरह खारिज नहीं किया जा सकता है। आज से पहले भी गरीबी के आधार पर आरक्षण देने के प्रयास किए गए थे। लेकिन, संवैधानिक प्रावधानों के चलते संभव नहीं हो पाया था। ये प्रावधान आज भी कायम हैं। इनके चौखट से निकलने के बाद ही सवर्णों को आरक्षण मिल सकता है।
बहरहाल, बिहार के संदर्भ में देखें तो आरक्षण का प्रथम लाभ लेने की प्रक्रिया शुरू हो गई है। मुख्य विपक्षी दल राजद ने कहा है कि वह सरकार के फैसले का अध्ययन करेगा। उसकी प्रारंभिक टिप्पणी है-अगर 15 फीसदी आबादी के लिए 10 फीसदी आरक्षण तो क्यों नहीं शेष 85 फीसदी आबादी के लिए 90 फीसदी आरक्षण का प्रावधान कर दिया जाए।
यह प्रतिक्रिया आरक्षण के प्रस्तावित प्रावधान के राजनीतिक नफा नुकसान के आकलन की ओर इशारा करती है। पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी की प्रतिक्रिया परिमार्जित है। लेकिन, वह भी सवर्णों के साथ एससी के आरक्षण का दायरा बढ़ाने की मांग कर रहे हैं। बेशक यह राजद का सवाल है। लेकिन, आरक्षण का चुनावी नफा-नुकसान इसके जवाब पर निर्भर है। सही जवाब देने वाला ही नफा में रहेगा।
जाहिर है, जवाब से सबको संतुष्ट करने की जिम्मेवारी एनडीए की है। संयोग से एनडीए के तीनों घटक दलों का नेतृत्व आरक्षित समूह से आने वाले लोगों के हाथ में ही है। ये सब आर्थिक आधार पर आरक्षण के पक्षधर भी रहे हैं। ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि नौकरियों और शिक्षण संस्थानों में आरक्षण का पहला लाभ किस राजनीतिक दल को मिलेगा।
कहा-भाजपा और लोजपा ने..
-आरक्षण की नई व्यवस्था के लिए केंद्र सरकार और खासकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बधाई के हकदार हैं। एससी-एसटी का 22 फीसदी और ओबीसी का 27 फीसदी आरक्षण जारी रखते हुए उन्होंने गरीब सवर्णों को आरक्षण देकर ऐतिहासिक काम किया है।
नित्यानंद राय, प्रदेश अध्यक्ष, भाजपा, बिहार
-लोजपा के घोषणा पत्र में सवर्णों को 15 फीसद आरक्षण का वादा किया गया है। हम केंद्र सरकार के फैसले के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और लोजपा अध्यक्ष रामविलास पासवान को बधाई देते हैं।
-पशुपति कुमार पारस, अध्यक्ष, लोजपा, बिहार