उत्तर भारत की अधिकांश नदियां आज प्रदूषित, नदियों को प्रदूषण मुक्त करने की राह
विडंबना यह कि हमारे चुनावी लोकतंत्र में प्रदूषण मुद्दा बन ही नहीं पाया है। लेकिन देश में पर्यावरण संबंधी योजनाओं को कैसे बनाया और लागू किया जाए इस पर गंभीरता से विचार करने का समय आ गया है।
प्रो. विजय कुमार सिंह। उत्तर भारत की अधिकांश नदियां आज प्रदूषित हैं। गंगा की धारा अविरल नहीं है, यमुना के तट औद्योगिक कचरों से भरे पड़े हैं, झारखंड में दामोदर नदी ने प्लास्टिक कचरे की चादर सी ओढ़ ली है और कावेरी नदी का पानी सिंचाई के लिए भी उपयुक्त नहीं रहा। गंगा नदी की दशा तो यह है कि हरिद्वार की विश्व प्रसिद्ध हरकी पैड़ी पर गंगाजल पीने के लायक नहीं है। गंगा भारत की सबसे पवित्र नदी है। लेकिन इसमें तमाम जगहों पर बांध बनाए जाने और बड़ी मात्र में निरंतर औद्योगिक कचरा गिराए जाने के कारण यह नदी आज दुनिया की सातवीं सर्वाधिक प्रदूषित नदियों में गिनी जाने लगी है।
अगर बात यमुना नदी की करें तो राजधानी दिल्ली, मथुरा और आगरा जैसी जगहों में यमुना मरणासन्न स्थिति में है। दिल्ली के गंदे पानी के नालों की वजह से वह पूर्ण रूप से एक गंदे नाले में तब्दील हो गई है। प्रदूषण के गंभीर स्तर के चलते यमुना में अधिकांश स्थलों पर आक्सीजन का स्तर सामान्य से बहुत कम रहने लगा है, जो नदी में रहने वाले जलीय जीवन के लिए गंभीर रूप से घातक है। आज जिस यमुना का जल हमें खुली आंखों से ही नाले के पानी जैसा नजर आता है, उसी को साफ करके दिल्ली की एक बड़ी आबादी को पेयजल के रूप में आपूर्ति की जाती है।
दुर्भाग्यपूर्ण यह है कि हम एक नदी की आवश्यकता को भूलते जा रहे हैं। हम उसे पानी के लिए एक स्रोत की तरह मानने लगे हैं। हम जब तक नदी के अस्तित्व को शहर के अस्तित्व के साथ नहीं जोड़ेंगे, सरकार व समाज ये नहीं समङोंगे कि जीवन में नदी का महत्व कितना है, तब तक बदलाव नहीं आएगा। जिन नदियों का जिक्र हमारे वैदिक ग्रंथों में है, उनको प्रदूषण मुक्त करना केवल सरकार की ही जिम्मेदारी नहीं है, यह हमारी जिम्मेदारी भी है। नदियां हमारी प्यास बुझाती हैं और जीवनदायिनी हैं। देश के सांस्कृतिक, सामाजिक और आर्थिक व्यवस्था का आधार ये नदियां ही हैं। नदियों को हम पूजते हैं। इसलिए नदियों को स्वच्छ रखना हमारी जिम्मेदारी है। भारत के हर क्षेत्र में नदियों की पूजा की जाती है। इसके बावजूद प्रदूषण से उनका पवित्र जल जहरीला हो रहा है। हालांकि हमें स्वयं जाकर नदियों को साफ करने की जरूरत नहीं पड़ेगी, अगर हम नदियों को प्रदूषित करना छोड़ दें, तो वे स्वयं को एक बरसात के मौसम में ही साफ कर लेंगी।
हमें यह समझने की जरूरत है कि नदी को पहले गंदा करें और फिर साफ करें, या नदी गंदी ही न होने दी जाए? कोई नाला कचरे को पहले ढोकर नदी तक लाए, हमारे संयंत्र फिर उसे साफ करें या कचरे का निस्तारण कचरे के मूल स्रोत पर ही किया जाए? सरकार को सिंगल यूज प्लास्टिक पर पूर्ण रूप से प्रतिबंध लगाना चाहिए, क्योंकि जो चीज एक बार प्रयोग के बाद कचरा बन जाए और प्रकृति में हजारों वर्षो तक जस का तस बना रहे उस पर तो रोक लगाना बहुत जरूरी है। उदाहरण के तौर पर चाय के लिए डिस्पोजेबल कप के बजाय मिट्टी के कप के प्रचलन को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। स्कूली पाठ्यक्रम में ‘पर्यावरण अनुकूल’ तकनीक और जीवनशैली को शामिल करने की जरूरत है, ताकि भविष्य में इस तरह की समस्याएं खड़ी न हों और प्रदूषण जैसे समस्याओं को नियंत्रित किया जा सके।
वर्तमान में भारत स्टार्टअप हब बना हुआ है। भारत सरकार को ऐसे स्टार्टअप के साथ हाथ मिलाकर काम करना चाहिए जो जैविक उपचार के माध्यम से प्रदूषण को नियंत्रित करने की दिशा में काम कर रहे हैं। एक राष्ट्र के रूप में भारत अगर नदियों को प्रदूषण से मुक्त करने की दिशा में गंभीर है, तो इसके लिए केंद्रीय नदी प्राधिकरण बनाया जाना चाहिए, क्योंकि अब तक नदियों को गंभीरतापूर्वक प्राथमिकता नहीं दी गई है।
[विभागाध्यक्ष, प्राचीन इतिहास, वीर कुंवर सिंह विवि, आरा, बिहार]