'वार' रूम लाइव : वोटिंग के बीच जैसे-जैसे दिन चढ़ा, बढ़ती गई बेचैनी
बिहार विधानसभा चुनाव के तय पांच में से आज पहले चरण का मतदान है। राजनीतिक दलों के तीन महीने की मेहनत अब कसौटी पर है। इरादे बनाकर चुनाव मैदान में कूदने वाले तमाम राजनीतिक दल जो कल तक मैदान में ताल ठोंक रहे थे, आज मॉनीटर की भूमिका में दिखे।
पटना [सुनील राज]। लोकतंत्र में बेहद आम दिखने वाले चेहरे आज खास हैं। उनकी चिंता हो रही है। फोन घनघना कर खैर मखदम पूछी जा रही है। 'पता करिए, अब तक घर से क्यों नहीं निकले'।
कोई थ्रेट तो नहीं? 'रिपोर्ट बताइये... कितने बजे की है, अभी तो साढ़े बारह बज गए हैं, ग्यारह बजे की रिपोर्ट मत बताइये, ऊपर भी सूचना भेजनी है। और हां... सूचनाओं के तो मानो पर निकल आए हों।
हर ओर से उड़ कर हेडक्वार्टर तक आ रही हैं। गूगल मैप, गूगल अर्थ, मोबाइल फोन, लैंड लाइन, पार्टी पर्यवेक्षक, कार्यकर्ता। सूचना पाने के तमाम हथियार आज प्रयोग में हैं। चूक की कोई गुंजाइश नहीं। ऐसे दृश्य हों भी क्यों न? आखिर लोकतंत्र के महापर्व में फैसला पाने का पहला मौका जो आ गया है।
बिहार विधानसभा चुनाव के तय पांच में से आज पहले चरण का मतदान है। राजनीतिक दलों के तीन महीने की मेहनत अब कसौटी पर है। इरादे बनाकर चुनाव मैदान में कूदने वाले तमाम राजनीतिक दल जो कल तक मैदान में ताल ठोंक रहे थे, आज मॉनीटर की भूमिका में दिखे, सूचनाएं लेते और उन पर मंथन करते।
तकरीबन 11.50 बजे। कांग्रेस मुख्यालय सदाकत आश्रम में वार रूम में छह सात की संख्या में जुटे लोग, जिलों में अपने लोगों को फोन लगाकर जानकारियां प्राप्त कर रहे हैं। बरबीघा बताइये? क्या पोजिशन?
सवाल का जवाब संतोष जनक है शायद, क्योंकि चेहरे का सुकून इस बात की तस्दीक कर रहा है। प्रवक्ता विनोद सिंह यादव कह रहे हैं गोविंदपुर फोन लगाइये, अध्यक्ष जी रिपोर्ट मांग रहे हैं।
जी, लगाया है, ङ्क्षरग जा रही है। बाहर अपने कक्ष में कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अशोक चौधरी हर पल सूचनाओं से अपडेट हो रहे हैं। उनकी बातों का आशय साफ है, हम ठीक हैं।
12.45 बजे, भाजपा कार्यालय में भाजपा के राष्ट्रीय संगठन मंत्री रामलाल जी ने चुनाव कंट्रोल रूम में मोर्चा संभाल लिया है। हर सीट का ब्योरा तलब हो रहा है। इस कमरे में डटी तीस वकीलों की फौज बता रही है, सर अभी, अभी भागलपुर में प्रत्याशी के एक वर्कर को बुरी तरह से मारा पीटा गया है।
एक पल के मौन के बाद निर्देश... चुनाव आयोग को तत्काल लिखित फैक्स मैसेज भेज दीजिए। यहां मोर्चा संभालने वाले एक नहीं कई नेता हैं। भाजपा कार्यालय में घुसते ही चुनाव प्रबंधन कमेटी के अध्यक्ष सूरज नंदन कुशवाहा लगातार फोन पर लगे हैं, हेलीकॉप्टर कितने बजे लैंड कर रहा है?
अब तक कोई दिक्कत? एक कमरे में राष्ट्रीय महामंत्री अनिल जैन, राष्ट्रीय सह महामंत्री सौदान सिंह, बिहारी भाजपा के प्रभारी भूपेंद्र यादव भी जुटे हैं। टीवी पर अलग-अलग चैनल से आती रिपोर्ट पर निगाहें और कान सक्रिय हैं।
बगल के कमरे में प्रोटोकॉल प्रभारी अरविंद कुमार सिंह के कमरे में लगे टीवी पर किसी भी बूथ पर होने वाली समस्या का लेखा-जोखा तैयार हो रहा है, जो यहां से निकल कर सीधा रामलाल के पास जाने वाला है। दावे यहां भी हैं। विकास के नाम पर भाजपा के पक्ष में जबरदस्त वोटिंग हो रही है।
1.35 बजे थोड़ा हटकर राजद कार्यालय में कार्यालय सचिव चंद्रेश्वर सिंह कुछ पुराने लोगों के साथ अपने कार्यालय कक्ष में एक लैंड लाइन फोन पर लगे हैं। मतदान से शायद संतुष्ट हैं। सीधा-सपाट जवाब बहुत बढिय़ा चल रहा है। अब तक कहीं से कोई गड़बड़ी की सूचना नहीं।
राजद कार्यालय के अंदर सामने पोर्टिको में कुछ कुर्सियां सजाई जा चुकी हैं। मतदान की इस जारी प्रक्रिया के बीच ही कई महत्वपूर्ण कार्य हैं, जिन्हें भी पूरा किया जाना है। आज राम मनोहर लोहिया की पुण्यतिथि है। टेबल पर तस्वीर सजा दी गई है और शायद कुछ देर में श्रद्धांजलि का कार्यक्रम भी शुरू हो जाए।
वीर चंद पटेल पथ की खासियत यह है कि इस सड़क पर तमाम राजनीतिक दलों के कार्यालय हैं। कम दूरी पर ही जनता दल यू का कार्यालय है। 1.55 बजे पार्टी के प्रवक्ता संजय सिंह अपनी कार की ओर लपके और कहीं निकल गए।
नीचे संजय गांधी और पार्टी के कुछ वर्कर टीवी के आगे कुछ गणित लगा रहे हैं। क्या बात है? मगर हमारा जवाब न मिलने पर फिर व्यस्त हो गए, अपने काम में। ऊपर के कक्ष में नवीन कुमार आर्य जिलों से प्रखंडों से उन विधानसभा क्षेत्र से सूचनाएं प्राप्त कर रहे हैं जहां चुनाव होने हैं।
बताने लगे, सब पीसफुल है। मामूली सी समस्याएं बताई गई हैं। कहीं अंधेरा है, कुछ देर के लिए कहीं ईवीएम खराब हो गई, कहीं प्रशासन कोई दिक्कत कर रहा है। आदि...आदि... आदि...। सूचनाएं कलेक्ट होंगी, तब शाम को अंतिम रूप से मुख्यमंत्री को भेजी जाएंगी।
बहरहाल दोपहर के ढाई बज चुके हैं। बाहर धूप अपनी रंगत बदल रही है, यह संकेत है समय भी बदल रहा है। चुनाव को युद्ध की तरह लडऩे वाले तमाम राजनीतिक दल भले ही अपनी-अपनी जीत के दावे करें पर हकीकत यह है कि असली लड़ाई जनता लड़ रही है।
अपने मन के कई संशयों का समाधान खुद कर रही है तब हाथ ईवीएम की ओर बढ़ा रहे हैं। अब देखना यह है कि आखिर जंग में किसका पताका फहराता है और किसकी काल के किसी खंड में गुम हो जाने वाली है।