न सितारों की चमक न साहब की धमक, यहां अच्छे-अच्छों ने खाया है गच्चा
पटना के मतदाताओं को न तो सितारों की चमक चकाचौंध कर पाती है न साहब या शहजादी की धमक।
By Edited By: Published: Wed, 27 Mar 2019 01:54 AM (IST)Updated: Wed, 27 Mar 2019 08:38 AM (IST)
पटना, जेएनएन। पटना के मतदाताओं को न तो सितारों की चमक चकाचौंध कर पाती है, न साहब या शहजादी की धमक। यहां के मतदाताओं का मन-मिजाज मापने में इंद्र कुमार गुजराल, लालू प्रसाद और मीसा भारती जैसे राजनीतिज्ञों के साथ ही शेखर सुमन और कुणाल जैसे सितारों ने भी गच्चा खाया है। अलबत्ता बॉलीवुड के बिहारी बाबू शत्रुघ्न सिन्हा ने दो बार जरूर अपने अंदाज से विरोधियों को खामोश किया है।
यूं तो पटना से कई दिग्गजों ने अपने भाग्य आजमाए हैं। पर 1991 में इंद्र कुमार गुजराल का पटना से चुनाव लड़ना कई मायनों में ऐतिहासिक रहा है। तब लालू प्रसाद बिहार के मुख्यमंत्री थे। उन्होंने गुजराल को अपनी पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ाया था। चुनाव प्रचार में गुजराल को 'गुजर' बताते हुए लालू ने यादव जाति से करीब बताया था। तब लालू का यह स्टाइल बेहद चर्चित हुआ था। हालांकि 1991 का वह चुनाव काउंटरमेंड (रद) हो गया था।
मिजाज में है पटखनी देना
दोबारा हुए चुनाव में रामकृपाल यादव लालू की पार्टी जनता दल के उम्मीदवार बने और जीते थे। पटना के मतदाताओं का मिजाज ऐसा है कि वे किसी को भी पटखनी दे सकते हैं। कभी लालू प्रसाद के नाम पर उम्मीदवारों की जीत होती थी, लेकिन 2009 में पाटलिपुत्र लोकसभा क्षेत्र से ही लालू की लालटेन को मतदाताओं ने बुझा दिया। काफी करीब रहे रंजन यादव ने ही लालू को पटखनी दी। रंजन यादव को तब 2,69,298 वोट मिले थे और लालू प्रसाद को 2,45,757 वोट। लालू की बिटिया मीसा भारती को भी पाटलिपुत्र ने 2014 में रिजेक्ट कर दिया था। तब रामकृपाल यादव ने मीसा को पराजित किया था।
रामकृपाल को 3,83,262 वोट मिले थे और मीसा को 3,42,940 वोट। 40,322 वोटों से मीसा को हार का सामना करना पड़ा था। साहब और शहजादी के साथ ही सितारों का भी दिलचस्प मुकाबला पटना में हुआ है। भाजपा के शत्रुघ्न सिन्हा के सामने कांग्रेस ने एक बार बॉलीवुड स्टार शेखर सुमन को और एक बार भोजपुरी स्टार कुणाल सिंह को मैदान में उतारा। पर पटना साहिब के मतदाताओं ने शेखर और कुणाल दोनों ही सितारों को जमीन दिखा दी। 2009 में शत्रुघ्न सिन्हा को 3,16,529 वोट मिले थे और शेखर सुमन को 61308 वोट। शेखर सुमन से ज्यादा वोट तो राजद के प्रत्याशी रहे विजय कुमार को मिले। विजय को 1,49,779 वोट मिले थे। 2014 में शत्रुघ्न सिन्हा ने कुणाल को 2,65,805 वोटों से हराया। तब शत्रुघ्न सिन्हा को 4,85,905 वोट मिले थे और कुणाल को 2,20,100 वोट।
यूं तो पटना से कई दिग्गजों ने अपने भाग्य आजमाए हैं। पर 1991 में इंद्र कुमार गुजराल का पटना से चुनाव लड़ना कई मायनों में ऐतिहासिक रहा है। तब लालू प्रसाद बिहार के मुख्यमंत्री थे। उन्होंने गुजराल को अपनी पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ाया था। चुनाव प्रचार में गुजराल को 'गुजर' बताते हुए लालू ने यादव जाति से करीब बताया था। तब लालू का यह स्टाइल बेहद चर्चित हुआ था। हालांकि 1991 का वह चुनाव काउंटरमेंड (रद) हो गया था।
मिजाज में है पटखनी देना
दोबारा हुए चुनाव में रामकृपाल यादव लालू की पार्टी जनता दल के उम्मीदवार बने और जीते थे। पटना के मतदाताओं का मिजाज ऐसा है कि वे किसी को भी पटखनी दे सकते हैं। कभी लालू प्रसाद के नाम पर उम्मीदवारों की जीत होती थी, लेकिन 2009 में पाटलिपुत्र लोकसभा क्षेत्र से ही लालू की लालटेन को मतदाताओं ने बुझा दिया। काफी करीब रहे रंजन यादव ने ही लालू को पटखनी दी। रंजन यादव को तब 2,69,298 वोट मिले थे और लालू प्रसाद को 2,45,757 वोट। लालू की बिटिया मीसा भारती को भी पाटलिपुत्र ने 2014 में रिजेक्ट कर दिया था। तब रामकृपाल यादव ने मीसा को पराजित किया था।
रामकृपाल को 3,83,262 वोट मिले थे और मीसा को 3,42,940 वोट। 40,322 वोटों से मीसा को हार का सामना करना पड़ा था। साहब और शहजादी के साथ ही सितारों का भी दिलचस्प मुकाबला पटना में हुआ है। भाजपा के शत्रुघ्न सिन्हा के सामने कांग्रेस ने एक बार बॉलीवुड स्टार शेखर सुमन को और एक बार भोजपुरी स्टार कुणाल सिंह को मैदान में उतारा। पर पटना साहिब के मतदाताओं ने शेखर और कुणाल दोनों ही सितारों को जमीन दिखा दी। 2009 में शत्रुघ्न सिन्हा को 3,16,529 वोट मिले थे और शेखर सुमन को 61308 वोट। शेखर सुमन से ज्यादा वोट तो राजद के प्रत्याशी रहे विजय कुमार को मिले। विजय को 1,49,779 वोट मिले थे। 2014 में शत्रुघ्न सिन्हा ने कुणाल को 2,65,805 वोटों से हराया। तब शत्रुघ्न सिन्हा को 4,85,905 वोट मिले थे और कुणाल को 2,20,100 वोट।
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