सीट बंटवारे के लिए अभी से बिछने लगी बिसात, तेज हुई बिहार की सियासी हलचल
चुनाव में अभी काफी समय बाकी है। लेकिन अभी से ही सीट बंटवारे के लिए बिसात बिछने लगी है। एनडीए के साथ-साथ महागठबंधन में भी आवाज उठने लगी है।
By Ravi RanjanEdited By: Published: Thu, 07 Jun 2018 09:51 PM (IST)Updated: Fri, 08 Jun 2018 11:45 PM (IST)
पटना [राज्य ब्यूरो]। लोकसभा चुनाव के मैदान में उतरने के पहले बिहार में सत्ता और विपक्ष के गठबंधनों में आपसी लड़ाई तेज हो रही है। पहले राजग में चेहरे को लेकर बयानबाजी शुरू हुई और अब कांग्रेस तथा राजद एक दूसरे को भांप रहे। एनडीए के घटक दल कुछ अधिक मुखर हैं। कारण एनडीए में अब जदयू भी है, जबकि पिछले लोकसभा चुनाव में इसमें भाजपा के अलावा केवल लोजपा और रालोसपा शामिल थी। जदयू को हिस्सेदारी देने के लिए इन तीनों दलों को अपनी एकाध सिटिंग सीटों की कुर्बानी देनी पड़ सकती है।
जदयू ने 2009 लोकसभा चुनाव में 20 सीटें जीती थीं, जबकि उसके सहयोगी दल भाजपा को 12 सीटें मिलीं थीं। एनडीए से बाहर होकर जदयू जब 2014 के लोकसभा चुनाव में अकेले मैदान में उतरा तो उसे केवल दो सीटों पर जीत मिली। 2009 में लोजपा यूपीए में थी, जो 2014 में एनडीए में आ गई। नई पार्टी के रूप में उभरी रालोसपा भी एनडीए का हिस्सा बनी और इसने शत-प्रतिशत 'स्ट्राइक रेटÓ दर्ज किया। जदयू अभी बिहार में बड़े भाई की भूमिका निभाना चाहता है। इस संबंध में पार्टी के प्रधान राष्ट्रीय महासचिव खुलकर बयान दे चुके हैं।
अपनी-अपनी दलील, अपने-अपने दांव
जदयू के प्रदेश प्रवक्ता डा. अजय आलोक जैसे नेता 2004 और 2009 के चुनाव की दुहाई दे रहे हैं। 2004 में जदयू 26 और भाजपा 14 सीटों पर चुनाव लड़ी थी, जबकि 2009 में जदयू-भाजपा ने 25:15 का फार्मूला तय किया था। मगर अभी स्थिति दूसरी है। भाजपा के पास 22 सिटिंग सीटें हैं, जबकि लोजपा और रालोसपा के हिस्से में क्रमश: छह और तीन हैं। जदयू की ओर से यह कहा जाना कि बिहार में एनडीए नीतीश कुमार के चेहरे का अधिक लाभ उठाए, इसे सीट बंटवारे में बड़ी हिस्सेदारी के लिए माहौल बनाने के रूप में देखा जा रहा है।
जदयू के आक्रामक रुख से साथी दल असहज
जदयू के ऐसे बयान ने एनडीए के अन्य घटक दलों को असहज कर दिया है। लोजपा संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष चिराग पासवान नीतीश कुमार के चेहरे का अधिक लाभ उठाने के तर्क से सहमत नहीं हैं, वहीं रालोसपा के कार्यकारी राष्ट्रीय अध्यक्ष नागमणि ने दावा किया है कि उनके दल का प्रदेश में बड़ा जनाधार है।
दूसरी ओर महागठबंधन में कांग्रेस, सीटों की संख्या पर कुछ बोलने की जगह पहले अपनी ताकत का अंदाजा लगाने की बात कर रही है। स्पष्ट है कि वह तालमेल में अधिक सीटों की दावेदारी के लिए ग्राउंड वर्क कर रही है। महागठबंधन में इस बार वाम दलों के भी शामिल होने की संभावना है। भाकपा ने अभी से तालमेल में छह सीटों पर दावेदारी करनी शुरू कर दी है।
जदयू ने 2009 लोकसभा चुनाव में 20 सीटें जीती थीं, जबकि उसके सहयोगी दल भाजपा को 12 सीटें मिलीं थीं। एनडीए से बाहर होकर जदयू जब 2014 के लोकसभा चुनाव में अकेले मैदान में उतरा तो उसे केवल दो सीटों पर जीत मिली। 2009 में लोजपा यूपीए में थी, जो 2014 में एनडीए में आ गई। नई पार्टी के रूप में उभरी रालोसपा भी एनडीए का हिस्सा बनी और इसने शत-प्रतिशत 'स्ट्राइक रेटÓ दर्ज किया। जदयू अभी बिहार में बड़े भाई की भूमिका निभाना चाहता है। इस संबंध में पार्टी के प्रधान राष्ट्रीय महासचिव खुलकर बयान दे चुके हैं।
अपनी-अपनी दलील, अपने-अपने दांव
जदयू के प्रदेश प्रवक्ता डा. अजय आलोक जैसे नेता 2004 और 2009 के चुनाव की दुहाई दे रहे हैं। 2004 में जदयू 26 और भाजपा 14 सीटों पर चुनाव लड़ी थी, जबकि 2009 में जदयू-भाजपा ने 25:15 का फार्मूला तय किया था। मगर अभी स्थिति दूसरी है। भाजपा के पास 22 सिटिंग सीटें हैं, जबकि लोजपा और रालोसपा के हिस्से में क्रमश: छह और तीन हैं। जदयू की ओर से यह कहा जाना कि बिहार में एनडीए नीतीश कुमार के चेहरे का अधिक लाभ उठाए, इसे सीट बंटवारे में बड़ी हिस्सेदारी के लिए माहौल बनाने के रूप में देखा जा रहा है।
जदयू के आक्रामक रुख से साथी दल असहज
जदयू के ऐसे बयान ने एनडीए के अन्य घटक दलों को असहज कर दिया है। लोजपा संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष चिराग पासवान नीतीश कुमार के चेहरे का अधिक लाभ उठाने के तर्क से सहमत नहीं हैं, वहीं रालोसपा के कार्यकारी राष्ट्रीय अध्यक्ष नागमणि ने दावा किया है कि उनके दल का प्रदेश में बड़ा जनाधार है।
दूसरी ओर महागठबंधन में कांग्रेस, सीटों की संख्या पर कुछ बोलने की जगह पहले अपनी ताकत का अंदाजा लगाने की बात कर रही है। स्पष्ट है कि वह तालमेल में अधिक सीटों की दावेदारी के लिए ग्राउंड वर्क कर रही है। महागठबंधन में इस बार वाम दलों के भी शामिल होने की संभावना है। भाकपा ने अभी से तालमेल में छह सीटों पर दावेदारी करनी शुरू कर दी है।
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