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बिहार बजट 2018-19: 'सुशील बजट' में मोदी की छाया और नीतीश का विजन

लोकप्रिय वोटबैंक नुस्खों के बजाय नीतीश सरकार ने गांवों की ओर विकास की धारा मोड़ी है। मिशन 2019 के दबाव से मुक्त रहकर विकास के रोडमैप पर सरकार आगे बढ़ रही है।

By Ravi RanjanEdited By: Published: Wed, 28 Feb 2018 08:51 AM (IST)Updated: Wed, 28 Feb 2018 10:25 PM (IST)
बिहार बजट 2018-19: 'सुशील बजट' में मोदी की छाया और नीतीश का विजन
बिहार बजट 2018-19: 'सुशील बजट' में मोदी की छाया और नीतीश का विजन

पटना [सद्गुरु शरण]। उत्तर प्रदेश के पिछले विधानसभा चुनाव में मतदाताओं ने साफ संदेश दिया था कि वे जाति आधारित वोटबैंक पॉलिटिक्स से आजिज आ चुके हैं। अब उन्हें अपने परिवार के लिए सहूलियतें और सूबे के लिए विकास चाहिए। संयोग है कि इस सोच में पीएम नरेंद्र मोदी और सीएम नीतीश कुमार बहुत करीब खड़े नजर आते हैं। वित्तमंत्री सुशील मोदी का बजट इस बात का शंखनाद है कि बिहार की राजग सरकार विकास, खासकर ग्रामीण विकास को ही मिशन-2019 का 'ब्रह्मास्त्र' बनाएगी।

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यह विकास दर में राष्ट्रीय औसत पार कर जाने से मिली हिम्मत हो सकती है या फिर इसी महीने पहली तारीख को संसद में पेश केंद्र सरकार के बजट से मिली प्रेरणा, कि बिहार सरकार के बजट में मिशन-2019 की चुनौती का दबाव गायब है।

वित्तमंत्री सुशील मोदी के बजट में वोटबैंक को खाद-पानी देने के बजाय राज्य के दीर्घकालीन विकास और गांव-गरीब-किसान की चिंता झलकती है। सरकार ने अपने संसाधन शिक्षा, ग्रामीण विकास और इंफ्रास्ट्रक्चर को समर्पित किए और विकास के रोडमैप पर आगे बढऩा जारी रखा। कह सकते हैं कि यह बजट प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की सोच का बेहतरीन समन्वय है।

स्वाभाविक रूप से कयास लगाए जा रहे थे कि राज्य सरकार अगले साल प्रस्तावित लोकसभा चुनाव को ध्यान में रखकर इस बजट में खास सामाजिक वर्गों (वोटबैंक पॉलिटिक्स के संदर्भ में) के लिए तोहफे लुटाएगी, पर आश्चर्यजनक ढंग से बजट में ऐसा कुछ नहीं है। इसके विपरीत बजट में शिक्षा क्षेत्र की पूर्व निर्धारित प्राथमिकता के अलावा ग्रामीण विकास पर भरपूर ध्यान दिया गया है। ग्रामीण विकास पीएम मोदी और सीएम नीतीश कुमार की घोषित प्राथमिकता रहा है।

सियासी नजरिए से देखा जाए तो राजग सरकार ने किसी खास जाति या क्षेत्र के बजाय समग्र रूप से ग्रामीण आबादी को रिझाने का प्रयास किया है। यह प्रयोग उत्तर प्रदेश के पिछले विधानसभा चुनाव में 'चमत्कार' कर चुका है जब उज्ज्वला और जनधन खाता जैसी योजनाओं के प्रभाव से ग्रामीण अंचलों में वोटबैंक के परंपरागत समीकरण ध्वस्त हो गए थे और भाजपा को अभूतपूर्व कामयाबी मिली थी। इस बजट के जरिए राजग बिहार में भी इसी दिशा में आगे बढ़ता दिख रहा है।

शिक्षा पिछले साल भी नीतीश सरकार की सर्वोच्च प्राथमिकता थी और इस बार भी। शिक्षा क्षेत्र के लिए सर्वाधिक खजाना खोलकर सरकार ने साफ कर दिया कि बिहार को शिक्षा के स्वर्णिम युग में वापस लाने की बात सिर्फ जुमलेबाजी नहीं है।

शिक्षा की प्राथमिकता पर प्रतिबद्ध रहना इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि पिछले दो वर्षों में शिक्षा एवं परीक्षा प्रणाली की बदहाली के लिए राज्य की खासी फजीहत हुई। उम्मीद की जानी चाहिए कि सरकार की प्रतिबद्धता के नतीजे इस साल धरातल पर दिखेंगे। इंफ्रास्ट्रक्चर विकास पर बजट में खासा जोर दिया गया है। इसे विकास को लेकर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के विजन से जोड़कर देखा जा रहा है।

बजट में जिस तरह नए शिक्षा, चिकित्सा और प्रशिक्षण संस्थानों के लिए धन आवंटन किया गया है, उससे एक नये बिहार की परिकल्पना में युवाओं पर भरोसा दिखता है। नीतीश कुमार के सात निश्चय इस बार भी बजट की प्राथमिकता हैं। इसके जरिए मुख्यमंत्री ने संदेश दिया है कि गठबंधन बदलने के बावजूद वह अपनी सोच पर अडिग हैं और वह सोच है, जाति, धर्म, क्षेत्र की परवाह छोड़कर पूरे बिहार का विकास।


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