बिहार में बदले जाएंगे विश्वविद्यालय संचालन के अनुपयोगी कानून, राजभवन बनवाएगा अस्पताल व बाल भवन
बिहार के राज्यपाल लालजी टंडन ने उच्च शिक्षा में व्यापक परिवर्तन की कोशिश की है। साथ ही उन्होंने और भी कई काम किए हैं। दैनिक जागरण से बातचीत में उन्होंने क्या कहाजानिए यहां।
पटना [भारतीय बसंत कुमार]। बिहार के राज्यपाल लालजी टंडन ने अपने तीन सौ दिनों का कार्यकाल बुधवार को पूरा किया। इस छोटी अवधि में कुलाधिपति के रूप में उन्होंने यहां की उच्च शिक्षा में व्यापक परिवर्तन का प्रयास किया। जहां कुछ कठोर फैसले लिए, वहीं उच्च शिक्षा कैसे राष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा के मानक को पूरा करे इसकी चिंता की। बिहार की उच्च शिक्षा के परिदृश्य पर दैनिक जागरण के समाचार संपादक भारतीय बसंत कुमार से हुई उनकी बातचीत का अंश :-
प्रश्न: बिहार की उच्च शिक्षा की स्थिति को लेकर आप क्या सोचते हैं और कैसा परिवर्तन चाहते हैं?
उत्तर: हमने बिहार के शिक्षा जगत के मानकीकरण पर फोकस किया। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की अपेक्षा पूरी हो और यहां के सभी महाविद्यालय भी नैक की अहर्ता पूरी करें, इस पर पूरा जोर है। नैक प्रत्ययन को लेकर जिस प्रकार की पहल पहले होनी चाहिए, वह हुई नहीं। पहली बार राजभवन में भारतीय सामाजिक विज्ञान अनुसंधान परिषद के अध्यक्ष डॉ बीबी कुमार ने यूजीसी, रूसा और केंद्रीय एजेंसी से वित्तीय सहयोग कैसे प्राप्त हो इस पर कार्यशाला की। इसका असर दिख रहा है। नैक प्रत्ययन प्रक्रिया में शामिल होने वाले कॉलेजों की संख्या इस समय ढाई सौ से अधिक है। यूनिवर्सिटी इंफोर्मेशन मैनेजमेंट सिस्टम पहली बार धरातल पर दिखेगा।
प्रश्न: बिहार में उच्च शिक्षा का पाठ्यक्रम कई दशक पुराना है। इसके बदलाव पर आप क्या सोचते हैं? कामकाज में क्या परिवर्तन लाया जा रहा है?
उत्तर: इसपर अध्ययन किया जा रहा है। पाठ्यक्रम में भी सबके सुझाव से बदलाव लाया जाएगा और जो पुराने गैर जरूरी यूनिवर्सिटी कानून और अधिनियम हैं, उनको भी या तो खत्म करेंगे या उसमें जरूरी बदलाव बिना देरी किये लाएंगे। एक नई शुरुआत हमने की है। जो स्टाफ सेवानिवृत हो रहे हैं, उन्हें एक सप्ताह के अंदर पांच प्रकार के सेवांत लाभ की राशि मिल जाएगी। दो विश्वविद्यालयों ने इस दिशा में काम शुरू कर दिया है। शेष यूनिवर्सिटी में भी यह अनिवार्य रूप से लागू होगा।
प्रश्न: आपकी छवि सख्त कुलाधिपति की बनती जा रही है?
उत्तर: यह जरूरी था। मैंने तीन कुलपति का कम अंतराल में इस्तीफा लिया। मगध विश्वविद्यालय की लगातार शिकायत आ रही थी। जांच में चीजें सही मिली तो बिना देरी वहां के तत्कालीन कुलपति को हटाया गया। इसी तरह जो कुलपति राजभवन का टास्क पूरा नहीं किये, उन्हें पहले चेतावनी दी गई और जब लगा कि वे बेहतर प्रदर्शन नहीं कर पाएंगे तो उनसे मुक्ति पायी गई। मेरा व्यक्तिगत स्तर पर संदेश है कि जो कुलपति हैं, वे संपूर्ण विश्वविद्यालय के प्रति सीधे जिम्मेदार हैं।
मैं तो शैक्षिक पर्यावरण की शुद्धि की बात कहता हूं। जिंदगी के लिए जैसे ताजा और शुद्ध हवा में सांस लेना जरूरी है। वैसे ही राष्ट्र निर्माण के लिए जरूरी है कि अपनी भावी पीढ़ी को हम कैसे बेहतर माहौल में शिक्षा का अवसर दें। यही हमारी प्राथमिकता है। आपको यह सुखद लगेगा कि लगभग सारे विश्वविद्यालयों में दीक्षा समारोह हो गए। दो जगह बाकी है, जहां जल्द होगा। यह स्पष्ट निर्णय है कि हर विश्वविद्यालय अपना शैक्षिक कैलेंडर बनाए और उसका अक्षरश: पालन करे। नामांकन तय समय पर, परीक्षा तय समय पर फिर परीक्षा परिणाम और सर्टिफिकेट और दीक्षा समारोह पूर्व निर्धारित तय समय पर। यह टास्क सीधे कुलपतियों को दिया गया है।
प्रश्न: वोकेशनल कोर्स को लेकर जिस प्रकार की पहल होनी चाहिए, वह विश्वविद्यालय या कॉलेज स्तर पर नहीं दिखती?
उत्तर: इस पर काम होना बाकी है। दस माह यानी तीन सौ दिनों की पहली प्राथमिकता थी कि कैसे शैक्षिक अनुशासन बने। कैसे उच्च शिक्षा का स्तर राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय स्तर का हो। बिहार गौरवशाली प्रदेश है और यहां की माटी में अतीत का वह गौरव छुपा है, जिसे नालंदा और विक्रमशिला विश्वविद्यालय के रूप में जाना जाता है। मैं खुद भी नजीर पेश करने में यकीन रखता हूं। केवल वाणी में नहीं, कर्म में सक्रियता की चेष्टा करता हूं। राजभवन में भी व्यापक परिवर्तन लाया गया है। अभी कोशिश है कि ऐसी दीर्घा का निर्माण हो जहां बिहार की गौरवशाली पंरपरा और संस्कृति की झलक यहां आने वाले लोगों को दिखे।
प्रश्न: उच्च शिक्षा के स्तर पर संसाधनों की घोर कमी रही है?
उत्तर: इस स्थिति में व्यापक सुधार आया है। मैंने अपने कार्यकाल में पहले की स्थिति का आकलन किया। पुस्तकालय, शौचालय और प्रयोशाला के लिए राशि कॉलेजों को उपलब्ध करवा दी गई। सरकार ने हमेशा सहयोग किया है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार स्वयं उच्च शिक्षा की बेहतरी के लिए सोचते रहते हैं। राजभवन के किसी प्रस्ताव के लिए धन की कोई कमी नहीं हुई है।
मुझे शुरू में दो शिकायत गंभीर लगीं। पहली कि शिक्षक-कर्मचारियों को समय पर वेतन नहीं मिलता है और दूसरा कॉलेज में शिक्षक-छात्रों की अनुपस्थिति असंतोषजनक है। दोनों, शिकायत दूर हो गई है। वेतन नियमित हो गया है और उपस्थिति के लिए बायोमीट्रिक हाजिरी अनिवार्य कर दी गई है। कुछ एजेंडा लेकर बिहार आया था। मुझे खुशी है कि जैसा मैं सोचता गया, वैसा होता गया।
प्रश्न: आप बिहार को और क्या देना चाहते हैं?
उत्तर: मुझे बिहार से बहुत लगाव है। मैं उच्च शिक्षा की मजबूत नींव बनाना चाहता हूं। मैं यहां के छोटे-छोटे बच्चों से भी मिला हूं। बिहार में इस समय विभिन्न हिस्से में बच्चों की हो रही मौत से मन आहत है। एक विशेषज्ञ अस्पताल और बच्चों के लिए बाल भवन के निर्माण की प्रक्रिया अंतिम चरण में है।
प्रश्न: जीवन का कोई रोचक प्रसंग ?
उत्तर: मैं हर साल अपना जन्मदिन अलग-अलग तरीके से मनाता हूं। लखनऊ में एक बार मेरे मन में श्मशान घाट के सुंदरीकरण का विचार आया। मैंने तय किया कि श्मशान घाट पर ही अपना जन्मदिन मनाऊंगा। लोग जुटे और लोगों से मैंने कहा कि सबको एक दिन यहां ही आना है और देखिए कि कैसी गंदगी यहां पसरी है। मैंने कहा कि सबके सहयोग से इसे ठीक करना है। नतीजा यह निकला कि 26 लाख रुपये जुटे और वहां का कायापलट हो गया। मंत्री के रूप में यूपी के दूसरे जिलों में भी श्मशान का सुंदरीकरण यहां की प्रेरणा से हुआ।
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