मिशन 2019: CM नीतीश से सियासी जंग में चौतरफा अकेले पड़े उपेंद्र कुशवाहा
रालोसपा सुप्रीमो उपेंद्र कुशवाहा राजग में अकेले पड़ते दिख रहे हैं। लोकसभा चुनाव में सीट शेयरिंग के मुद्दे पर उनकी नहीं सुनी जा रही। पार्टी में भी वे कमजोर हुए हैं।
पटना [अरुण अशेष]। राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (रालोसपा) सुप्रीमो उपेंद्र कुशवाहा की राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) एवं महागठबंधन को लेकर दुविधा उनपर भारी पड़ रही है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से सियासी जंग में वे राजग में तो अकेले पड़ते दिख ही रहे हैं, अपनी पार्टी में भी उनकी हैसियत कमजोर हो रही है।
अपनी पार्टी में कमजोर पड़े कुशवाहा
कुशवाहा तीन सांसदों के साथ राजग में गए थे। एक सांसद अरुण कुमार आधे सफर में साथ छोड़ गए। दूसरे सांसद आरके शर्मा राजग छोड़ना नहीं चाहते हैं। संसदीय क्षेत्र की सामाजिक संरचना उनकी मजबूरी है। उनका क्षेत्र सीतामढ़ी है। यह राजद की परंपरागत सीट है।
विधानसभा की बात करें तो पार्टी के दो विधायक हैं और दोनों के रास्ते अलग होते दिख रहे हैं। दोनों ही नीतीश कुमार के संपर्क में बताए जा रहे हैं। पार्टी के राष्ट्रीय प्रधान महासचिव रामबिहारी सिंह भी राजग के पक्ष में हैं। ले देकर पूर्व सांसद नागमणि और दसई चौधरी को कुशवाहा के साथ कहा जा सकता है।
राजग में नहीं मिल रहा समर्थन
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से टकराव में कुशवाहा को राजग के घट दलों का साथ मिलता नहीं दिख रहा। कुशवाहा ने नीतीश पर खुद को 'नीच' कह अपमानित करने का आरोप लगाया है, लेकिन लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष चिराग पासवान तथा भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) नेता व बिहार के उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी ने नीतीश कुमार द्वारा ऐसी बात कहने के आरोप को खारिज कर दिया है।
इधर, इस मामले में अपनी शिकायत लेकर भाजपा सुप्रीमो अमित शाह से मिलने गए कुशवाहा को मुलाकात का समय नहीं मिला। इसके बाद कुशवाहा राजग के विरोधी खेमे के नेता शरद यादव से मिलकर पटना लौट आए। पटना में इसकी पुष्टि करते हुए कुशवाहा ने कहा कि अमित शाह से मिलने में वे नाकामयाब रहे।
शरद से मुलाकात पर जदयू व लोजपा को आपत्ति
शरद यादव से मुलाकात को लेकर भी कुशवाहा को राजग में जदयू व लोजपा का विरोध झेलना पड़ रहा है। जदयू के राष्ट्रीय महासचिव केसी त्यागी ने कहा है कि राजग की सरकार के किसी मंत्री का विपक्ष के नेता शरद यादव से मिलना आपत्तिजनक है। इसके पहले लोजपा की तरफ से चिराग पासवान भी इस मुलाकात पर आपत्ति जता चुके हैं। हालांकि, इन आपत्तियों को खारिज करते हुए कुशवाहा कहते हैं कि उन्हें कब, कहां और किससे मिलना है, तथा क्या बात करनी है, इसका हुनर उन्हें आता है।
अमित शाह से नहीं हो रहा मुलाकात, लग रहे कयास
वजह कुछ भी हो, कुशवाहा 10 दिनों से अमित शाह से मिलने का समय मांग रहे हैं, लेकिन मुलाकात नहीं हो पा रही है। नेताओं-कार्यकर्ताओं से मिलने में बेहद उदार माने जाने वाले अमित शाह से कुशवाहा की मुलाकात नहीं हो पाने के राजनीतिक अर्थ निकाले जा रहे हैं। रविवार की रात भी दोनों की मुलाकात तय थी, पर अमित शाह देर रात तक पार्टी की बैठक में व्यस्त रहे। लिहाजा मुलाकात नहीं हो सकी।
इसके पहले कुशवाहा ने लोजपा सुप्रीमो रामविलास पासवान से मुलाकात की थी। उम्मीद थी कि पासवान साथ देंगे, लेकिन सोमवार को पासवान के पुत्र चिराग पासवान ने नीतीश कुमार से मुलाकात कर नीतीश कुमार के समर्थन में बयान दे दिया।
सीट शेयरिंग के मुद्दे पर नाराज
लोकसभा चुनाव में सीट शेयरिंग के मुद्दे पर भी कुशवाहा नाराज हैं। अधिक सीटों को लेकर उनकी दबाव की रणनीति फेल होती दिख रही है। राजग में उन्हें 'सम्मानजनक' सीटें मिलती नहीं दिख रहीं।
नीतीश के सामने बेअसर हुईं ये खूबियां
बेशक आज की तारीख में उपेंद्र कुशवाहा अपनी बिरादरी के असरदार नेता हैं। न्यायपालिका में आरक्षण और शिक्षा में सुधार की मांगें उनकी ओर ओबीसी के नौजवानों को भी आकर्षित कर रही है। वे जिस गठबंधन में रहें, वोट प्रभावित कर सकते हैं। इस कारण विपक्षी महागठबंधन की उनपर नजर है। लेकिन ये खूबियां उन्हें राजग में नीतीश की बराबरी का दर्जा नहीं दिला पा रही हैं।
चुनना हो तो नीतीश को चुनेगी भाजपा
कुल मिलाकर कह सकते हैं कि कुशवाहा का राजग में बने रहना दूभर हो गया है। भाजपा की दुविधा भी कम नहीं है। अगर उसे नीतीश और उपेंद्र में किसी एक को चुनने का विकल्प दिया जाए तो पहला पलड़ा ही भारी रहेगा।