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बिहार MLC चुनाव: नीतीश, सुशील मोदी व राबड़ी समेत 11 का निर्विरोध निर्वाचन तय

बिहार एमएलसी चुनाव की नामांकन प्रक्रिया समाप्‍त हो चुकी है। इसके बाद अब मुख्‍यमंत्री नीतीश कुमार व उपमुख्‍यमंत्री सुशील मोदी सहित 11 प्रत्‍याशियों का निर्विरोध निर्वाचन तय है।

By Amit AlokEdited By: Published: Tue, 17 Apr 2018 09:12 AM (IST)Updated: Tue, 17 Apr 2018 09:50 PM (IST)
बिहार MLC चुनाव: नीतीश, सुशील मोदी व राबड़ी समेत 11 का निर्विरोध निर्वाचन तय
बिहार MLC चुनाव: नीतीश, सुशील मोदी व राबड़ी समेत 11 का निर्विरोध निर्वाचन तय

पटना [राज्य ब्यूरो]। बिहार विधान परिषद की खाली हो रही 11 सीटों के लिए नामांकन के आखिरी दिन सोमवार को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी, स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडेय एवं कांग्रेस के प्रेमचंद मिश्रा समेत सात उम्मीदवारों ने पर्चे भरे। कोई अतिरिक्त प्रत्याशी नहीं आया। इसलिए सभी का निर्विरोध निर्वाचन तय है। 17 अप्रैल को स्क्रूटनी एवं 19 को नाम वापस लेने की आखिरी तारीख के बाद जीत की औपचारिक घोषणा भी कर दी जाएगी। परिषद में नीतीश, सुशील एवं राबड़ी की तीसरी पारी तथा मंगल की दूसरी पारी होगी।

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इन्होंने किया है नामांकन

जदयू ने नीतीश के अलावा रामेश्वर महतो एवं खालिद अनवर को प्रत्याशी बनाया है। भाजपा ने सुशील मोदी एवं मंगल के अलावा पूर्व केंद्रीय मंत्री संजय पासवान को मौका दिया है। राजद की ओर से पहले ही पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी, प्रदेश अध्यक्ष रामचंद्र पूर्वे एवं सैयद खुर्शीद मोहसिन ने पर्चे भर दिए हैं, जबकि चौथे प्रत्याशी के रूप में राजद ने हम प्रमुख जीतन राम मांझी के पुत्र संतोष सुमन को समर्थन दिया है।

नीतीश-सुशील पहली बार 2006 में बने थे एमएलसी

2005 के विधानसभा चुनाव में राजद सरकार के पतन के बाद नीतीश कुमार और सुशील मोदी पहली बार 2006 में विधान परिषद के सदस्य बने थे। इसके पहले दोनों लोकसभा सदस्य थे। बिहार में राजग की सरकार बनने के बाद दोनों एक साथ मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री बनाए गए थे, जिसके बाद लोकसभा सदस्यता से इस्तीफा देकर विधान परिषद में निर्वाचित हुए थे।

विधान परिषद में राबडी की तीसरी पारी

पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी की यह तीसरी पारी है और लगातार दूसरी। राबड़ी पहली बार 1998 में परिषद की सदस्य तब बनी थीं, जब चारा घोटाले में लालू प्रसाद को 1997 में मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा था। उस वक्त राबड़ी किसी भी सदन की सदस्य नहीं थीं। मुख्यमंत्री बनने के बाद परिषद का सदस्य बनना जरूरी हो गया था।

चौथी बार उच्च सदन में जाएंगे पूर्वे

रामचंद्र पूर्वे की यह चौथी पारी है। पहली बार उन्हें कर्पूरी ठाकुर ने लोकदल से 1986 में परिषद का सदस्य बनवाया था। उसके बाद पूर्वे 1992 और 1998 में भी पार्षद चुने गए थे।

सात को पहली बार मिलेगा मौका

भाजपा प्रत्याशी डॉ. संजय पासवान समेत सात सदस्यों को पहली बार विधान परिषद में जाने का मौका मिलने जा रहा है। वैसे संजय पासवान एमपी और केंद्रीय मंत्री भी रह चुके हैं, किंतु पिछले 14 वर्षों से वह किसी भी सदन के सदस्य नहीं हैं। संजय 1999 में नवादा से भाजपा के टिकट पर एमपी चुने गए थे। 2004 के संसदीय चुनाव में पराजय के बाद 2009 में भी भाजपा ने उन्हें विधानसभा उपचुनाव में मौका दिया था, लेकिन उसमें भी हार के बाद दोबारा मौका नहीं मिला। अबकी विधान परिषद का वह पहली बार प्रतिनिधित्व करेंगे। कांग्र्रेस के प्रेमचंद मिश्रा को भी पहली बार किसी सदन का सदस्य बनाया जा रहा है। इसी तरह जदयू के रामेश्वर महतो एवं खालिद अनवर तथा राजद के सैयद खुर्शीद मोहसिन एवं हम के संतोष सुमन भी पहली बार किसी सदन का मुंह देखेंगे। परिषद में हम की पहली इंट्री होगी। अभी उसका एक भी सदस्य नहीं है।

परिषद में इनकी पारी खत्म

विधान परिषद की खाली हो रही सीटों में सिर्फ चार सदस्यों को ही दोबारा मौका मिला है। भाजपा के सत्येंद्र नारायण सिंह का पहले ही निधन हो गया है, जबकि दल-बदल अधिनियम के दायरे में आए जदयू के नरेंद्र सिंह की सदस्यता पहले ही खाली हो गई थी। इस तरह पांच अन्य सदस्यों की पारी छह मई के बाद खत्म हो जाएगी। इनमें जदयू के संजय सिंह, उपेंद्र प्रसाद, चंदेश्वर चंद्रवंशी एवं राजकिशोर कुशवाहा एवं भाजपा के लालबाबू प्रसाद शामिल हैं।


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