शिवभक्तों के लिए बाजार में आए 50 हजार तक के 'सेवड़ाफुली कांवड़', जानिए
श्रावणी मेला आरंभ है। श्रद्धालु कांवड़ लेकर भगवान भोलनाथ को जल अर्पण करने निकल रहे हैं। पटना के बाजार में सेवड़ाफुली बांस से बने कांवड़ हर साल की तरह इस साल भी छा गए हैं।
पटना [जेएनएन]। सावन साेमवार से आरंभ है। श्रद्धालु कांवड़ लेकर भगवान भोलेनाथ के दर्शन को निकल पड़े हैं। शिव मंदिरों में जलार्पण के लिए कांवडि़ए जल को कांवड़ में रखकर निकलते हैं। ये कांवड़ भी तरह-तरह के होते हैं। ऐसा ही एक कांवड़ है सेवड़ाफुली बांस से बना कांवड़। हर साल की तरह इस साल भी ये बाजार में छा गए हैं। पटना में इनकी कीमत 50 हजार रुपये तक है।
पटना के संतोष झा देवघर जाकर भगवान भोले शंकर को जल अर्पित करने वाले हैं। न्यू मार्केट में वे कांवड़ की गुणवत्ता परख रहे हैं। वे सेवड़ाफुली कांवर की मांग करते हैं। विक्रेता पीतल की शिव प्रतिमा, त्रिशूल व जलपात्र लगे कांवड़ को दिखाता है। बताता है कि सामान्य बांस की फट्ठी पर ये नहीं लग सकते, एक मिनट में फट्ठी फट जाएगी। अधिक मूल्य की बाबत विक्रेता तर्क देता है कि पीतल के सजावटी आइटम का लोड लेने वाली फट्ठी के लिए बांस बाहर से मंगाने पड़ते हैं।
सेवाड़ाफुली की फट्ठियां लचकदार
पश्चिम बंगाल के सेवड़ाफुली के बांस से ही कांवड़ की फट्ठियां तैयार होती हैं। यहां के बांस की फट्ठियां लचकदार होने के साथ ही ठोस भी होती है। बांस को काटने के साथ ही कई दिनों तक पानी में डुबो कर रखा जाता है। इसके बाद फट्ठियां तैयार होती हैं। पटना के कांवड़ विक्रेता एक सप्ताह पहले ही वहां जाकर थोक में इसकी खरीदारी कर लाते हैं।
कारीगरों का हुनर भी अव्वल
सेवड़ाफुली की फट्ठियों का जितना महत्व है, पटना के कारीगरों का हुनर उससे रत्ती भर भी कम नहीं। तभी तो पटनिया कांवड़ की पहचान सौंदर्य और सजावट में एक ब्रांड के रूप में है। यहां तैयार कांवड़ की पहचान बिहार के साथ ही झारखंड और ओडिशा में भी है।
ये हैं खासियत
न्यू मार्केट के सबसे पुराने कांवड़ कारीगर चुन्नू प्रसाद चंद्रवंशी कहते हैं कि 35 वर्षों से कांवड़ सजा रहा हूं। शिवभक्तों को ये सबसे ज्यादा पसंद है। फिनिशिंग मूल वजह है। घंटियां लगेंगी तो समान दूरी पर। त्रिशूल, जलपात्र सहित अन्य सजावटी आइटम भी इस तरह से कसे जाएंगे कि लगेगा कि मशीन से कांवड़ तैयार की गई है। फट्ठी पर मखमल चढ़ा चमकीले धागे से कसना भी खास कला है। यहां की सजावट की अलग ही शैली है।
जैसी सजावट, वैसी कीमत
कांवड़ विक्रेता विनोद कुमार के अनुसार सामान्य कांवड़ तो ढाई-तीन सौ रुपये में भी उपलब्ध है। इनमें पीतल की जगह प्लास्टिक के सर्प, बिच्छू, त्रिशूल जैसे सजावटी आइटम लगे हैं, जो कोलकाता से आ रहे हैं। कुछ घंटियां ही सिर्फ पीतल की हैं। उसके बाद शिवभक्त जैसा आर्डर देते हैं, उसी अनुरूप सजावट की जाती है।
बांस की फट्ठी वाली कांवड़ अधिकतम 40 हजार रुपये तक भी है। इसमें पीतल का शिवलिंग लगा है। एक शिवलिंग की कीमत 15 हजार रुपये है। कांवड़ के दोनों छोर पर लगाने पर इसी की कीमत 30 हजार रुपये हो जाती है। बाकी सजावट के साथ यह 40 से 50 हजार रुपये में तक में बिकेगी। सब कुछ पीतल का होगा। ऐसे पीतल आइटम मुरादाबाद से आते हैं।
कांवड़ के साथ रोशनी भी
रास्ते में टार्च की जरूरत नहीं। कांवड़ में फूल, पत्ती, त्रिशूल, जलपात्र, शिव प्रतिमा, घंटियां तो लगाई ही जा रही हैं। इसमें चाइनीज बल्ब या एलईडी बल्ब भी लगा दिया जाता है। मकसद यह कि जहां अंधेरा हो भक्तों को कांवड़ से ही रोशनी भी मिल जाए।