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बिहारः पशुपति कुमार पारस ने लोजपा संगठन में किया बड़ा बदलाव, पूर्व विधायक को बनाया राष्ट्रीय उपाध्यक्ष

केंद्रीय खाद्य प्रसंस्करण मंत्री पशुपति कुमार पारस ने लोक जनशक्ति पार्टी संगठन में बड़ा बदलाव किया है। पूर्व विधायक सुनील पाण्डेय को पार्टी का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष मनोनीत किया। बता दें कि पशुपति पहले भी पार्टी में बदलाव कर चुके हैं।

By Akshay PandeyEdited By: Published: Mon, 02 Aug 2021 08:17 PM (IST)Updated: Mon, 02 Aug 2021 08:17 PM (IST)
बिहारः पशुपति कुमार पारस ने लोजपा संगठन में किया बड़ा बदलाव, पूर्व विधायक को बनाया राष्ट्रीय उपाध्यक्ष
केंद्रीय खाद्य प्रसंस्करण मंत्री पशुपति कुमार पारस। जागरण आर्काइव।

राज्य ब्यूरो, पटना : लोजपा (पारस) के अध्यक्ष व केंद्रीय खाद्य प्रसंस्करण मंत्री पशुपति कुमार पारस ने सोमवार को पूर्व विधायक सुनील पाण्डेय को पार्टी का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष मनोनीत किया। पूर्व विधायक अनिल चौधरी को किसान प्रकोष्ठ, सलाउद्दीन खान को अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ और रामजी सिंह को श्रम प्रकोष्ठ का राष्ट्रीय अध्यक्ष मनोनीत किया है। इन नेताओं के मनोनयन का स्वागत करते हुए पार्टी के  प्रधान महासचिव केशव सिंह, प्रवक्ता श्रवण अग्रवाल एवं महताब आलम, महिला प्रकोष्ठ की अध्यक्ष डा.स्मिता शर्मा, ललन चंद्रवंशी एवं राजेंद्र विश्वकर्मा ने बधाई दी है।

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बता दें कि लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) में टूट के बाद केंद्रीय खाद्य प्रसंस्करण मंत्री पशुपति कुमार पारस संगठन में बदलाव कर चुके हैं। हाल ही में उन्होंने सात प्रदेश अध्यक्षों की नियुक्ति की थी। उन्होंने अपने भतीजे और समस्तीपुर के सांसद प्रिंस राज को लोजपा का प्रदेश अध्यक्ष बनाया था। प्रिंस पार्टी में टूट से पहले भी लोजपा के बिहार अध्यक्ष रहे हैं। वहीं उत्तर प्रदेश में लोजपा की कमान ललित नारायण चौधरी को सौैंपी गई थी। झारखंड के विकास रंजन उर्फ पप्पू सिंह, महाराष्ट्र के रवि गरूड़, ओडिशा के वीरेन्द्र कुमार बैंग, त्रिपुरा के रूमकर और दादर नगर हवेली व दामन दीव के प्रदेश अध्यक्ष अमित नरेश राठी को बागडोर सौंपी थी। 

लोजपा में हुई थी टूट

बता दें कि हाल ही में लोजपा में बड़ी टूट हुई थी। पार्टी के छह सांसदों में से पांच ने हाजीपुर के सांसद पशुपति कुमार पारस को अपना नेता चुन लिया था। इसके बाद चिराग पासवान अकेले पड़ गए। उन्होंने पार्टी में टूट पर परिवार को दोषी बताया था। जबकि पशुपति ने कहा था कि चिराग के कार्यों से संगठन के लोग खुश नहीं थे। ऐसे में अगल होना ही बेहतर समझा। गौरतलब है कि 2020 के विधानसभा चुनाव में पार्टी ने मात्र एक सीट जीती थी। बेगूसराय से जीते एक मात्र विधायक ने बाद में जदयू में का दामन थाम लिया था। 


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