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चादर पर झूलते हुए दो हजार किमी का सफर, जानिए इन यात्रियों की जुबानी पूरी कहानी

करीब दो हजार किलोमीटर का सफर और वह भी बिना कंफर्म सीट के। बैठने की बात कौन करे, यहां खड़े होने की भी जगह नहीं है। लोग जान हथेली पर रखकर सफर करते हैं।

By Ravi RanjanEdited By: Published: Fri, 25 May 2018 10:40 AM (IST)Updated: Fri, 25 May 2018 10:15 PM (IST)
चादर पर झूलते हुए दो हजार किमी का सफर, जानिए इन यात्रियों की जुबानी पूरी कहानी
चादर पर झूलते हुए दो हजार किमी का सफर, जानिए इन यात्रियों की जुबानी पूरी कहानी

पटना [रविशंकर शुक्ला]। 1970 में रिलीज हुई सफर फिल्म में किशोर कुमार के गाए गीत... जिंदगी का सफर, है ये कैसा सफर? कोई समझा नहीं कोई जाना नहीं। सोनपुर रेलवे स्टेशन पर बुधवार की रात्रि खड़ी दरभंगा-अहमदाबाद जन साधारण एक्सप्रेस की बोगी के अंदर का दृश्य शायद जिंदगी के सफर की ही कहानी कह रहा था। जान जोखिम में डालकर 2014 किलोमीटर का यह सफर बिहार के लोग रोजी के लिए करते हैं। सफर की लाइव दास्तां कुछ ऐसी है।

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पूर्व मध्य रेलवे के सोनपुर मंडल मुख्यालय के सोनपुर स्टेशन पर रात्रि के 8.35 बजे हैं। हाजीपुर की ओर से प्लेटफार्म संख्या 3 पर ट्रेन आकर खड़ी हुई। बोगी पर लिखे शब्द, 'दीन दयालु कोचÓ। ट्रेन दरभंगा से अहमदाबाद को जाने वाली साप्ताहिक जन साधारण एक्सप्रेस है। प्रत्येक बुधवार को शाम 4.45 बजे दरभंगा से खुलकर शुक्रवार सुबह 9 बजे 2014 किमी का सफर तय कर अहमदाबाद पहुंचती है।

दो एसएलआर एवं 15 बोगी की ट्रेन में सभी सामान्य कोच। अचानक नजर बोगी के अंदर के दृश्य पर पड़ी। गेट के समीप चादर के चारों कोने को बांध झूला बना एक यात्री सो रहा है। ठसाठस बोगी में अंदर प्रवेश करने की कोशिश नाकाम रही। दोनों ओर के मुख्य गेट तक यात्री। खिड़की से झांककर देखा तो पूरी बोगी में यात्री चादर से लटकते दिखे। तस्वीर ले रहा था, उसी वक्त ट्रेन में सवार युवाओं ने कहा... साहब, यह दृश्य रेल मंत्री और प्रधानमंत्री जी को जरूर दिखाइये।

इसी बीच मुश्किल से दो मिनट के स्टापेज के बाद ट्रेन प्लेटफार्म से सरकने लगी। यह ट्रेन पूरे सिस्टम के लिए सवाल और जवाब है। हालांकि यह ट्रेन तो उदाहरण मात्र है। बिहार से दूसरे राज्यों को जाने वाली लगभग सभी ट्रेनों का यही हाल रहता है। खतरे के बीच हजारों यात्री रोज जान जोखिम में डाल पेट की आग बुझाने के लिए ऐसे सफर करने को विवश हैं। 


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