सत्ता संग्राम: जॉर्ज की कर्मभूमि रहे मुजफ्फरपुर में महामुकाबला के हालात
मुजफ्फरपुर लोक सभा क्षेत्र जॉर्ज फर्नांडिस की कर्मभूमि रही है। आगामी चुनाव में यहां महा मुकाबला के हालात बनते दिख रहे हैं। क्या है मामला, जानिए इस खबर में।
पटना [अरविंद शर्मा]। बिहार में मुजफ्फरपुर की सियासी अहमियत पटना से कम कभी नहीं रही। जॉर्ज फर्नांडिस ने 1977 में कांग्रेस विरोधी आग महाराष्ट्र से आकर यहीं से पूरे देशभर में लगाई थी। अबकी फिर महागठबंधनों के बीच मुजफ्फरपुर में महामुकाबला के हालात बन रहे हैं। चुनाव से पहले सबसे ज्यादा मारामारी और दावेदारी इस सीट को लेकर इसलिए भी है कि उत्तर बिहार के कई संसदीय क्षेत्रों की ओर सियासी हवाएं मुजफ्फरपुर से ही होकर गुजरती हैं। पटना... वाया मुजफ्फरपुर।
जातीय भावनाओं का उभार
जुब्बा सहनी को सम्मान देते हुए नदियों, नावों और नारों के सहारे भाजपा ने पिछली बार कैप्टन जयनारायण निषाद के पुत्र अजय निषाद के सहारे जंग जीती थी। अबकी भाजपा की नाव फिर मंझधार में है। जातीय भावनाओं के अतिशय उभार ने विजेता दल को सशंकित कर दिया है।
राजग में फ्रंट पर भाजपा
2014 से पहले के चुनावों में जॉर्ज फर्नांडिस और जयनारायण के बूते लगातार तीन बार जीतने वाले नीतीश कुमार की पार्टी जदयू को इस बार के मुकाबले से ज्यादा मतलब नहीं दिख रहा है। फ्रंट मोर्चा पर भाजपा है। गठबंधन के हालात में इसे भाजपा की झोली में जाना तय माना जा रहा है। उतना ही तय अजय की दावेदारी भी है। किंतु केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह के मुजफ्फरपुर में बढ़ते दौरे ने अजय को परेशान कर रखा है। नवादा के एमपी गिरिराज आखिर बार-बार मुजफ्फरपुर क्यों आ रहे हैं? सवाल तो है ही।
महागठबंधन में कांग्रेस की नजर सबसे गहरी
महागठबंधन में कांग्रेस की नजर सबसे गहरी है। पिछली बार कांग्रेस के टिकट पर पूर्व केंद्रीय मंत्री अखिलेश प्रसाद सिंह किस्मत आजमा चुके हैं। वैसे यहां से तीन बार जनता दल और एक बार राजद ने भी चुनाव जीता है, किंतु 1998 के बाद लालू प्रसाद ने प्रत्याशी बदलकर भी देख लिया। कामयाबी नहीं मिली।
हिन्दुस्तानी अवाम मोर्चा भी सक्रिय
जीतनराम मांझी की पार्टी हिन्दुस्तानी अवाम मोर्चा (हम) ने इसे भांप लिया है। यही कारण है कि अजित कुमार ने सक्रियता बढ़ा दी है। कांटी से तीन बार विधायक रह चुके अजित ने पूर्व केंद्रीय मंत्री एलपी शाही के लिए श्रद्धांजलि सभा का आयोजन किया था। कुछ अन्य कार्यक्रमों से उनकी सक्रियता दिख रही।
विजेंद्र चौधरी की भी दावेदारी
जदयू के टिकट पर पिछला चुनाव लड़ चुके विजेंद्र चौधरी की दावेदारी फिर भारी है। मुजफ्फरपुर सदर से कई बार विधायक रह चुके विजेंद्र अभी जदयू में हैं, लेकिन टिकट के लिए वह हर दायरे को लांघ सकते हैं। जदयू नहीं तो राजद या फिर कांग्रेस भी चलेगी। महागठबंधन के वोट समीकरण में विजेंद्र की भी लॉटरी लग सकती है।
कम नहीं मुकेश सहनी की चुनौती
राजनीतिक दलों की राह में निर्दलीय मुकेश सहनी की चुनौती भी कम नहीं है। फिलहाल इन्हें संतुष्ट करने की कोशिश दोनों ओर से जारी है। चर्चा है कि भाजपा भी इन्हें अपना सकती है। ऐसा हुआ तो अजय की मुश्किलों का कोई अंत नहीं होगा।
अतीत की राजनीति
आजादी की लड़ाई में रामदयालु सिंह, बाबा नरसिंह दास, महेश प्रसाद सिन्हा, विंध्येश्वरी प्रसाद वर्मा, मंजूर एजाजी, ठाकुर युगल किशोर और रामनंदन सिंह जैसे नेता सक्रिय थे। पहले चुनाव में तिरहुत शहरी क्षेत्र से विंध्येश्वरी प्रसाद वर्मा जीते थे। पूर्वी क्षेत्र से महेश प्रसाद सिन्हा और शिवनंदन पासवान, पश्चिमी सदर क्षेत्र से बृजनंदन शाही जीते थे। आजादी के बाद पहले संसदीय चुनाव में श्यामनंदन सहाय, दिग्विजय नारायण सिंह, नवल किशोर सिन्हा, ललितेश्वर प्रसाद शाही, जय नारायण निषाद और जॉर्ज फर्नांडिस जीतते रहे हैं।
2014 के महारथी और वोट
अजय निषाद : भाजपा : 469295
अखिलेश प्रसाद सिंह : कांग्रेस : 246873
विजेंद्र चौधरी : जदयू : 85146
अशोक कुमार झा : शिवसेना : 19945
विधानसभा क्षेत्र
गायघाट (राजद), बोचहां (निर्दलीय), कुढऩी (भाजपा), औराई (राजद), सकरा (राजद), मुजफ्फरपुर (भाजपा)