भगवान बुद्ध के उपदेशों के प्रसार को तिब्बती पांडुलिपियों का हिंदी में होगा अनुवाद
तिब्बत से राहुल सांकृत्यायन 1929 से 1938 के बीच कई दुर्लभ पांडुलिपियां लाए थे। पांडुलिपियों में भगवान बुद्ध के वचन के साथ तंत्र दर्शन व पूजा विधि का वर्णन है। सुवर्ण प्रभास सूत्र ग्रंथ का सारानाथ के विद्वान तिब्बती भाषा से हिंदी में अनुवाद करेंगे।
पटना, जागरण संवाददाता। पटना म्यूजियम परिसर में बने बिहार रिसर्च सोसाइटी दुर्लभ पांडुलिपियों के सरंक्षण व संवर्द्धन को लेकर जानी जाती रही है। रिसर्च सेंटर राहुल सांकृत्यायन द्वारा तिब्बत से लाई कई दुर्लभ पांडुलिपियोंं का सरंक्षण और संवद्र्धन की दिशा में काम करने में लगी हैं।
2019 से हो रहा संरक्षण कार्य
बिहार रिसर्च सोसाइटी के प्रभारी डॉ. शिव कुमार मिश्र की मानें तो राहुल सांकृत्यायन ने 1929 से लेकर 1938 तक चार बार तिब्बत की यात्रा पूरी की थी। हर बार यात्रा के दौरान वे खच्चर पर लादकर तिब्बत से पांडुलिपियां लाकर रिसर्च सोसाइटी में रखते थे। राहुल सांकृत्यायन द्वारा लाए गए पांडुलिपियों की संख्या 10हजार के आसपास होगी। जिसमें भगवान बुद्ध के वचन से लेकर कई पुराने ग्रंथ है। पांडुलिपियों के सरंक्षण को लेकर राष्ट्रीय सांस्कृतिक संपदा सरंक्षण अनुसंधानशाला लखनऊ (एनआरएलसी)और बिहार रिसर्च सोसाइटी व म्यूजियम की ओर से एग्रीमेंट के तहत काम किया जा रहा है। पांडुलिपियों के सरंक्षण का काम वर्ष 2019 से जारी है। जिसमें कई पांडुलिपियों का सरंक्षण का कार्य पूरा किया गया है।
पांडुलिपियों पर सोने व चांदी का प्रयोग कर उकेरे गए शब्द
रिसर्च सोसाइटी के प्रभारी डॉ. शिवकुमार मिश्र की मानें तो 'सुवर्ण प्रभास सूत्र' छठी-सप्तमी शताब्दी में संस्कृत भाषा में प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय के ब्राह्मणों द्वारा ताड़ पत्रों पर लिखा गया था। ये ब्राह्मण बौद्ध धर्म के प्रचार-प्रसार को लेकर तिब्बत की यात्रा की थी। कुछ समय बाद तिब्बत के पंडितों ने इसे तिब्बती भाषा में अनुवाद कराया। ताड़ पत्र वाले पांडुलिपियों नष्ट होने के बाद तिब्बत के लोगों ने हैंडमेड पेपर के कुछ पृष्ठों पर सोने व चांदी के पानी से शब्दों को उकेरा गया है। जिसे राहुल सांकृत्यायन ने तिब्बत से अपने देश लेकर आए थे।
सारनाथ के विद्वान करेंगे अनुवाद
रिसर्च सोसाइटी के प्रभारी की मानें तो इन पांडुलिपियों का सरंक्षण करने के साथ तिब्बती अध्ययन संस्थान सारनाथ के विद्वानों की ओर से इसका अनुवाद तिब्बती भाषा से हिंदी में अनुवाद हो रहा है। पांडुलिपियों का डिजिटल कॉपी संस्थान को भेज दिया गया है। जिसका अनुवाद शीघ्र पूरा होने के साथ लोगों के बीच भगवान बुद्ध के उपदेशों का प्रचार-प्रसार किया जाएगा। वहीं दूसरी ओर छह सौ वर्ष पूर्व लिखी गई ' पद्मसंभव' भी है। यह ग्रंथ प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय के बौद्ध विद्वान द्वारा लिखी गई थी। जिसका तिब्बती भाषा में हुआ जिसे ङ्क्षहदी में किया जाएगा। रिसर्च सोसाइटी के प्रभारी की मानें तो तिब्बती भाषा में भगवान बुद्ध के विचारों से जुड़े आठ सौ से अधिक पांडुलिपि होने के साथ 24 सौ ग्रंथ पर तिब्बती विद्वानों के भगवान बुद्ध के मूल दर्शन के साथ तंत्र व पूजन विधि के बारे में बताया गया है।