न समाज का बंधन जाति की जंजीर, इस गुरुकुल में वेद और कर्मकांड ही सबकुछ
तरेत पाली स्थान में 163 सालों से संस्कृत व्याकरण, ज्योतिष, वेद और कर्मकांड की शिक्षा दी जा रही है। यहां को विद्यार्थियों को प्रथमा, मध्यमा, उपशास्त्री, शास्त्री और आचार्य की डिग्री दी जाती है।
कौशलेंद्र कुमार, पटना। जब बात स्मार्ट क्लास और ऑनलाइन एजुकेशन को प्राथमिकता देने की हो रही हो तो संस्कृत भाषा को कैसे बचाया जा सकता है? आज हर अभिभावक अपने बच्चे को कंप्यूटर में दक्ष बनाना चाहते हैं। बच्चे के जन्म से पहले ही गार्जियन उनको डॉक्टर और इंजीनियर बनाने की चाह रख लेते हैं। इस दौर में एक 'स्थान' (जिसे 'तरेत पाली स्थान' के नाम से जाना जाता है) ऐसा भी है जहां आज भी देववाणी यानि संस्कृत पल्लवित व पुष्पित हो रही है। 163 सालों से यहां पढ़ाई करने वाले बच्चों को संस्कृत के जरिए ही रोजगार के रास्ते बताए जा रहे हैं।
चार से 25 साल के लोगों को निश्शुल्क प्रवेश
1855 में संस्था की नींव स्वामी राजेन्द्राचार्य ने रखी थी। उनके बाद स्वामी वासुदेवाचार्य, स्वामी धरनीधराचार्य और वर्तमान में स्वामी सुदर्शनाचार्य जी की देखरेख में यह 'स्थान' देववाणी का प्रचार-प्रसार और संरक्षण कर रहा है। राजधानी से 21 किलोमीटर की दूरी पर स्थित नौबतपुर प्रखंड के तरेत पाली गांव में स्थापित केंद्र में संस्कृत की शिक्षा निश्शुल्क दी जाती है। यहां न तो समाज का बंधन है और न ही जाति की जंजीर। किसी भी जाति-समाज के बच्चे यहां संस्कृत व्याकरण, ज्योतिष, वेद और कर्मकांड की शिक्षा ग्रहण करते हैं। चार से लेकर 25 साल तक की उम्र के विद्यार्थियों को यहां प्रवेश दिया जाता है।
नामचीन लोगों ने शिक्षा के मंदिर में टेका माथा
यहां पढ़ाई कर लोग शिक्षा जगत के उच्च पदों पर आसीन हो चुके हैं। शिक्षक, प्रोफेसर, डॉक्टर से लेकर कुलपति तक की कुर्सी को सुशोभित कर चुके हैं। कई छात्र अव्वल दर्जे के ज्योतिष, कर्मकांड और वेद पुराण के विशेषज्ञ हुए हैं। यहां बिहार के प्रथम मुख्यमंत्री श्रीकृष्ण सिंह से लेकर अनुग्रह नारायण सिंह, महामाया प्रसाद, सत्येन्द्र नारायण सिंह, बिन्देश्वरी दुबे, रामलखन सिंह यादव और डॉ.अब्दुल कलाम सहित कई नामचीन शख्सियतें माथा टेक चुकी हैं। वैसे अब इस 'स्थान' पर शिक्षा ग्रहण करने मुफलिसी के शिकार बच्चे ही आते हैं। माता -पिता उन्हें यहां छोड़ जाते हैं।
सुबह 4 बजे भगवान की स्तुति से शुरू होती दिनचर्या
यहां विद्यार्थियों की दिनचर्या सुबह चार बजे भगवान की स्तुति से शुरू होती है। छह बजे तक पढ़ाई। इसके बाद संस्थागत कार्यों में विद्यार्थी हाथ बंटाते हैं। विद्यालय की साफ-सफाई, रसोई के लिए चावल, दाल और सब्जी की तैयारी के बाद सुबह आठ बजे नाश्ता करते हैं। फिर नौ से साढ़े दस बजे तक खुले आसमान के नीचे गुरु के सामने बैठकर शिक्षा ग्रहण करते हैं। उसके बाद 'स्थान' द्वारा संचालित संस्कृत स्कूल और महाविद्यालय में पढ़ाई। शाम आठ बजे भगवान की स्तुति और बालभोग के बाद रात दस बजे राजभोग यानि भगवान को लगाये गए प्रसाद को ग्रहण करने के बाद सोते हैं। इसके परिसर में ही राघवेन्द्र संस्कृत महाविद्यालय और एक किलोमीटर की दूरी पर श्री वासुदेवाचार्य संस्कृत उच्च विद्यालय है। विद्यार्थियों को प्रथमा, मध्यमा, उपशास्त्री, शास्त्री और आचार्य की डिग्री दी जाती है।
कर्मकांड, भिक्षाटन, गुरुदक्षिणा से होती है आमदनी
इस 'स्थान' के भारत के कांचीपुरम, तमिलनाडु, कन्या कुमारी, वैष्णव मठ बालाजी, नासिक, गुजरात, अयोध्या, वृंदावन, सहित अन्य राज्यों में 55 मठ हैं। तरेत पाली 'स्थान' के पास 66 एकड़ जमीन है। इसमें खेती की जाती है। इसके अलावा कर्मकांड, भिक्षाटन, गुरुदक्षिणा से आमदनी होती है। संस्था के संरक्षक स्वामी सुदर्शनाचार्य ने कहा कि यह भ्रम है कि केवल आधुनिक शिक्षा से ही रोजगार मिल सकता है। संस्कृत के माध्यम से सौ प्रतिशत रोजगार की गारंटी है। ज्योतिष, व्याकरण, कर्मकांड, वेद की शिक्षा ग्रहण करने वाले विद्यार्थी खाली नहीं बैठते।