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इन बिहारी दिग्गजों ने संसद पहुंचने का बनाया रिकॉर्ड, जानिए कौन-कौन हैं वो

संसद पहुंचने वाले बिहारी दिग्गजों में जॉर्ज फर्नांडिस रामविलास पासवान के साथ ही लालू यादव-नीतीश कुमार के साथ ही कई राजनेताओं ने रिकॉर्ड बनाया है। जानिए इनके बारे में...

By Kajal KumariEdited By: Published: Fri, 10 May 2019 10:42 AM (IST)Updated: Sat, 11 May 2019 09:54 AM (IST)
इन बिहारी दिग्गजों ने संसद पहुंचने का बनाया रिकॉर्ड, जानिए कौन-कौन हैं वो
इन बिहारी दिग्गजों ने संसद पहुंचने का बनाया रिकॉर्ड, जानिए कौन-कौन हैं वो

पटना, जेएनएन। संसद में बिहार की सर्वोत्तम उपलब्धि नौ बार सांसद चुने जाने वाले जार्ज और रामविलास तक सिमट जाती है। फख्र महज इतना कि ये दोनों देश के उन नौ सांसदों में शुमार हैं, जिनमें कई राज्यों से एक भी प्रतिनिधि नहीं। संसद में बार-बार पहुंचने वाले बिहारी दिग्गजों के बारे में बता रहे हैं विकाश चन्द्र पाण्डेय

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रामविलास पासवान

रामविलास पासवान 1974 में संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के टिकट पर बिहार विधानसभा के लिए चुने गए। राजग और संप्रग की सरकारों में वे कई मंत्रालयों में कैबिनेट मंत्री रहे। हाजीपुर (सुरक्षित) संसदीय क्षेत्र को इस बार वे अनुज पशुपति कुमार पारस के हवाले कर दिए हैं, जहां से सर्वाधिक मतों से जीत के दो रिकार्ड उनके नाम दर्ज हैं।

आपातकाल के बाद 1977 में वे पहली बार लोकसभा के लिए रिकार्ड मतों के अंतर से विजयी रहे। बाद में अपना ही रिकार्ड ध्वस्त करते हुए नया कीर्तिमान बनाए। तकरीबन 42 वर्षों तक वे संसद में हाजीपुर का प्रतिनिधित्व किए।

जार्ज फर्नांडिस

रेल हड़ताल से राजनीति के क्षितिज पर उभरे जार्ज फर्नांडिस कर्नाटक में मंगलोर के मूल निवासी थे। वे बिहार आए, तो यही के होकर रह गए, तन- मन से। धन कभी जोड़ा नहीं। समता पार्टी के संस्थापक जार्ज जनता दल के प्रमुख सदस्यों में शामिल रहे। वीपी सिंह और अटल बिहारी वाजपेयीकी सरकार में संचार, उद्योग, रेल और रक्षा मंत्रालय का कामकाज संभालने का अनुभव रहा।

1967 में वे पहली बार चौथी लोकसभा के लिए चुने गए। 2004 में आखिरी बार 14वीं लोकसभा के लिए। 2009 में मुजफ्फरपुर से वे अपना आखिरी चुनाव हार गए।

जगजीवन राम

बाबू जगजीवन राम 1952 से 1986 तक वे लगातार सांसद रहे। 1946 में जवाहर लाल नेहरू की अंतरिम सरकार में सबसे कम उम्र के मंत्री रहे। ओहदा श्रम मंत्री का रहा था। 1952 में संचार मंत्री बने। उसके बाद कृषि, रक्षा और रेल मंत्रालय की जिम्मेदारी मिली। 23 मार्च, 1977 से 22 अगस्त, 1979 तक वे देश के उप प्रधानमंत्री रहे।

सन् 1977 में आपातकाल के दौरान वे कांग्रेस से अलग हो गए। ‘कांग्रेस फॉर डेमोक्रेसी’ नामक पार्टी का गठन किया। जनता सरकार केसाथ रहे। 1980 में ‘कांग्रेस (जे)’ का गठन किया।

शरद यादव

शरद यादव मध्य प्रदेश में होशंगाबाद जिलान्तर्गत अखमऊ गांव के मूल निवासी हैं। 1974 में वे पहली बार जबलपुर से सांसद चुने गए। उसी क्षेत्र से दोबारा 1977 में विजयी रहे। 1989में वे उत्तर प्रदेश के बदायूं से विजयी रहे। उत्तर प्रदेश की अमेठी में वे चुनाव हार गए। उसके बाद मधेपुरा उनका कर्मक्षेत्र हो गया।

पिछली बार संसद पहुंचने की उनकी हसरत पर राजद के राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव ने पानी फेर दिया था। इस बार भी शरद मधेपुरा के मैदान में रहे, लेकिन पार्टी बदलकर। अब वे उसी राजद के साथ हैं, जिसके खिलाफ कभी झंडाबरदार रहे थे।

नीतीश कुमार

बतौर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का यह पांचवां कार्यकाल है। विधानसभा के लिए वे पहली बार 1985 में विजयी रहे थे। उसी साल वे पहली बार लोकसभा के लिए भी चुने गए। उसके बाद लोकसभा चुनाव में लगातार छह जीत उनके नाम दर्ज हैं। इस दौरान उनका संसदीय क्षेत्र बाढ़ और नालंदा रहा।

भागवत झा आजाद

भागवत झा आजाद बिहार के 18वें मुख्यमंत्री (14 फरवरी, 1988 से 10 मार्च, 1989 तक) रहे। उससे पहले वे लोकसभा में भागलपुर का प्रतिनिधित्व करते रहे। केंद्र के कई मंत्रालयों में उन्होंने बतौर मंत्री जिम्मेदारियों का निर्वहन किया। क्रिकेटर से राजनीतिज्ञ बने कीर्ति आजाद उनके पुत्र हैं।

सत्येंद्र नारायण सिन्हा

सत्येंद्र नारायण सिन्हा 11 मार्च से छह दिसंबर, 1989 तक राज्य के 20वें मुख्यमंत्री रहे। लोकसभा के लिए वे कांग्रेस, कांग्रेस (ओ) और जनता पार्टी के टिकट पर औरंगाबाद से छह बार चुने गए। उनके पुत्र निखिल कुमार के अलावा पुत्रवधु श्यामा सिंह भी औरंगाबाद से सांसद रहीं।

लालू प्रसाद

भ्रष्टाचार के आरोपों ने लालू यादव की संसदीय यात्रा पर विराम लगा दिया। 15वीं लोकसभा का कार्यकाल पूरा होने से पहले ही उन्हें संसद की सदस्यता गंवानी पड़ी। सारण, मधेपुरा और पाटलिपुत्र से वे जीतते-हारते रहे हैं। वे 28 साल की उम्र में पहली बार सांसद चुने गए थे। नालंदा संसदीय क्षेत्र में उन्होंने इस रिकार्ड की आखिरी जीत दर्ज कराई थी।

छठे अवसर के लिए छह दावेदार

लालू प्रसाद भी एक नजीर बन सकते थे, लेकिन चारा घोटाले ने उन्हें मुकाबले के लायक ही नहीं रखा। फिलहाल उनकी गैरमौजूदगी में सारा दारोमदार डॉ. रघुवंश प्रसाद सिंह पर है, जो लालू की तरह ही पांचवां चुनाव जीतकर 15वीं लोकसभा में पहुंचे थे। रघुवंश एक बार फिर वैशाली में दांव आजमा रहे, जहां पिछली बार वे गच्चा खा गए थे।

इस बार अगर वे विजयी हुए तो लगातार छह बार जीतने वाले सांसदों की सूची में शामिल हो जाएंगे, लेकिन बिहार के लिए यह रिकार्ड कोई नया नहीं होगा। राधामोहन सिंह, मीरा कुमार, तारिक अनवर, देवेंद्र प्रसाद यादव, राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव की स्थिति भी कुछ ऐसी ही है।

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