Bihar News: सात मोर्चों की रिपोर्ट से बिहार भाजपा में बढ़ी बेचैनी, केंद्रीय नेतृत्व को किया गया खबरदार
Bihar Politics सात मोर्चों द्वारा अपनी रिपोर्ट बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व को सौंप दी गई है। रिपोर्ट के मुताबिक प्रदेश इकाई के पार्टी नेता जमीनी स्तर पर कार्यकर्ता और जनता से कटे हुए हैं। रिपोर्ट के बाद संगठन के ढीले पेच को कसने की तैयारी की जाएगी।
रमण शुक्ला, पटना। भाजपा के सात मोर्चा की राष्ट्रीय कार्यसमिति की संयुक्त बैठक 30 और 31 जुलाई को पटना में हुई थी। उससे पहले राष्ट्रीय नेतृत्व ने मोर्चा के पदाधिकारियों को क्षेत्र भ्रमण कर बिहार में पार्टी की स्थिति के आकलन की जिम्मेदारी सौंपी थी। केंद्रीय नेतृत्व को उनके द्वारा सौंपी गई रिपोर्ट का निष्कर्ष यह है कि बिहार में लगातार सत्ता में रही भाजपा संगठन के लिहाज से जनता ही नहीं, अपितु कार्यकर्ताओं से भी कट गई है। जमीनी स्तर पर पार्टी की स्थिति अपेक्षा के अनुरूप नहीं। जनाधार के लिए यह नुकसानदेह हो सकता है और बिना जनाधार अपने बूते सत्ता में आने का संकल्प सपना ही रह जाएगा। राज्य में गठबंधन की बदली स्थिति के बाद केंद्रीय नेतृत्व ने प्रदेश इकाई को चेता दिया है। अब संगठन के ढीले पेच कसने की कवायद शुरू होगी और जमीनी स्तर पर पार्टी की सक्रियता भी बढ़ेगी। इस रिपोर्ट ने केंद्रीय नेतृत्व को खबरदार कर दिया है।
11 बिन्दुओं पर लिया गया फीड बैक
प्रदेश के दो सौ विधानसभा क्षेत्रों में पदाधिकारियों को भेज कर भाजपा ने 11 बिंदुओं पर फीड बैक लिया था। विधानसभा क्षेत्रों में रात्रि विश्राम व ग्राम भ्रमण के दौरान ग्रामीणों से बातचीत कर रिपोर्ट तैयार हुई। ऐसा पहली बार हुआ। पहली बार ही मोर्चा की कार्यसमिति की संयुक्त बैठक भी हुई। इसके जरिए भाजपा की मंशा बिहार में शक्ति प्रदर्शन की थी। इसी कारण रोड-शो भी हुआ, लेकिन क्षेत्र भ्रमण करने वाले मोर्चा पदाधिकारियों ने पाया कि गांव-देहात में पार्टी के प्रति एक बेरुखी-सी है। जमीनी स्तर के कार्यकर्ताओं और जनता से पार्टी पदाधिकारियों का संवाद नहीं हो रहा। इसके अलावा मन टटोलने के भाजपा के उत्साह पर जीविका दीदियों से भी बुझी हुई प्रतिक्रिया मिली थी। नीतीश कुमार के उपकार से आगे बढ़ी इन जीविका दीदियों के बीच सेंधमारी इतना सहज नहीं, जैसा कि नेतृत्व के स्तर पर सोच लिया गया है। इन सारे तथ्यों को समेटती हुई रिपोर्ट राष्ट्रीय संगठन महामंत्री बीएल संतोष को सौंपी जा चुकी है।
कार्यकर्ताओं और जनता से जुड़ाव पर सवाल
अब संभव है कि भाजपा इस रिपोर्ट के आधार पर संगठन को निचले स्तर तक ले जाने का प्रयास करे। संगठन की शुरुआती कड़ी पन्ना प्रमुख हैं, जिनके सहारे पार्टी ने पिछले चुनावों में अच्छा प्रदर्शन किया। हालांकि, इस प्रदर्शन का पहला और आखिरी आधार प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का चेहरा रहा। भाजपा की यह विशेषता प्रकारांतर से बिहार इकाई में लोकप्रिय नेतृत्व के अभाव का संकेत भी है। इसका बड़ा कारण लंबे समय से सत्ता में छोटे भाई की भूमिका है। आश्चर्यजनक यह कि इस मुहावरे को भी भाजपा ने स्वयं गढ़ा। सत्ता के इस सीमित सुख में पार्टी नेता इतना अभिभूत हो गए कि निचले स्तर पर कार्यकर्ताओं और जनता से निकट का जुड़ाव ही नहीं रहा। काडर आधारित पार्टी के लिए यह स्थिति संतोषप्रद नहीं है। इसका बड़ा कारण प्रदेश नेतृत्व की योग्यता और क्षमता भी है।
15 सौ नेताओं ने क्षेत्र भ्रमण कर तैयार की रिपोर्ट
भाजपा के सात राष्ट्रीय मोर्चों (किसान, महिला, युवा, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, पिछड़ा वर्ग और अल्पसंख्यक मोर्चा) से जुड़े 15 सौ नेताओं ने दो दिनों तक गांवों में प्रवास किया था। प्रति मोर्चा 30 से 35 विधानसभा क्षेत्रों में स्थिति आकलन की जिम्मेदारी दी गई थी। संबंधित विधानसभा क्षेत्र के सभी मंडलों के मोर्चा पदाधिकारियों के साथ क्षेत्र भ्रमण करने वाले नेताओं ने बैठक की। केंद्र प्रायोजित योजनाओं के लाभार्थियों, त्रिस्तरीय पंचायतों और नगर निकायों के जन-प्रतिनिधियों से संपर्क किया था। सामाजिक संवाद और प्रभावी मतदाताओं से संपर्क भी किया था। सबने यही कहा कि भाजपा तो अच्छी है, लेकिन जनता व कार्यकर्ताओं से उसके छोटे-बड़े नेता मिलते-जुलते नहीं।