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रिश्तों की डोर कमजोर होने से बिखर जाता है परिवार

पुरुषवादी सोच महिलाओं के लिए हानिकारक। काम की भागदौड़ में रिश्तों में कड़वाहट आ रही

By JagranEdited By: Published: Sun, 16 Sep 2018 10:05 PM (IST)Updated: Sun, 16 Sep 2018 10:05 PM (IST)
रिश्तों की डोर कमजोर होने से बिखर जाता है परिवार
रिश्तों की डोर कमजोर होने से बिखर जाता है परिवार

पुरुषवादी सोच महिलाओं के लिए हानिकारक काम की भागदौड़ में रिश्तों में कड़वाहट आ रही है। जिसके कारण घर-परिवार भी बिखर रहा है। लोग परिवार से अधिक काम को प्राथमिकता देने लगे हैं। पति के पास पर्याप्त समय नहीं रहने के कारण घर की महिलाएं अपने दर्द को अपने अंदर रख लेती हैं। जिसके कारण रिश्तों में कड़वाहट आने लगती है और परिवार टूट जाता है। पारिवारिक रिश्तों पर आधारित कुछ ऐसी ही कहानी कालिदास रंगालय के प्रेक्षागृह में रविवार को देखने को मिली। मौका था वरिष्ठ रंगकर्मी आरपी वर्मा तरुण की स्मृति में नाट्योत्सव तरुणोत्सव के समापन पर प्रांगण पटना की ओर से गुरु रवींद्र नाथ टैगोर की कहानी पर आधारित 'चारुलता' के मंचन का। वरिष्ठ रंगकर्मी सोमा चक्रवर्ती के निर्देशन में कलाकारों ने पुरुषवादी सोच के साथ महिलाओं की जीवन को बखूबी दिखाया।

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भूपति एक अखबार का मालिक है। उसकी सहायता उसका साला उमापति करता है। व्यस्त भूपति अपनी पत्‍‌नी चारुलता को समय नहीं दे पाता। जिसके कारण चारुलता परेशान होती है। भूपति अपने साले उमापति की पत्‍‌नी मंदा के भाई अमल को घर में चारुलता को पढ़ाने के लिए बुला लेता है। चारुलता और अमल की उम्र समान होती है। दोनों एक दूसरे की रचनाओं को पत्रिका में छपवाते हैं। इसके कारण चारुलता को खूब प्रशंसा मिलती है। चारुलता अमल को मन ही मन चाहती है। अमल को इस बात का आभास नहीं होता कि उसे चारुलता पसंद करती है। आखिरकार वही होता है जो होना रहता है। कुछ समय बाद अमल की शादी हो जाती है वह पढ़ाई के लिए विदेश चला जाता है। विदेश जाने के बाद अमल की कोई खोज खबर चारुलता को नहीं मिलती। अमल की चिंता में वो बीमार हो जाती है। जिसके कारण भूपति काफी परेशान रहता है। उधर भूपति का साला उमापति अखबार के हिसाब-किताब में हेर-फेर करता है। जिसके कारण भूपति को काफी नुकसान पहुंचता है और फिर अखबार बंद हो जाता है। काम बंद होने के कारण भूपति परेशान होता है। फिर एक दिन मैसूर से निकलने वाले अखबार में काम करने का प्रस्ताव आता है जो वह स्वीकार करता है। भूपति अपने पत्‍ि‌न चारुलता को मैसूर चलने की बात कहता है लेकिन वह पति के फैसले को ठुकरा देती है। और चारुलता अपने पति को कहती है कि मैं पुरुषों के निर्णय का गुलाम नहीं मुझे भी ना कहने का हक है। मंच पर कलाकारों ने अपनी प्रस्तुति से स्त्री-पुरुष संबंधों को बखूबी बयां किया। मंच पर सोमा चक्रवर्ती, गिरीश मोहन, अनिल वर्मा, अर्पिता घोष, संजय सिंह, अमिताभ रंजन, ओम प्रकाश, अतीश कुमार, आशुतोष कुमार, राजेश कुमार पांडेय आदि कलाकारों ने उम्दा प्रस्तुति की।


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