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पीआरडी क्वार्टर में अब भी है वो आईना जिसमें रेणु सवारते थे अपनी जुल्फें, सहेजकर रखा है कोट और कुर्ता

राजेंद्र नगर का इलाका आदोलनकारियों और साहित्यकारों का गढ़ माना जाता है। पीआरडी क्वाटर में जहां मशहूर साहित्यकार फणीश््वर नाथ रेणु रहते थे आज भी कायम है। उनके हर साजो सामान सही ढंग आज भी रखे हुए है।

By JagranEdited By: Published: Sat, 17 Mar 2018 05:18 PM (IST)Updated: Sat, 17 Mar 2018 05:18 PM (IST)
पीआरडी क्वार्टर में अब भी है वो आईना जिसमें रेणु सवारते थे अपनी जुल्फें, सहेजकर रखा है कोट और कुर्ता
पीआरडी क्वार्टर में अब भी है वो आईना जिसमें रेणु सवारते थे अपनी जुल्फें, सहेजकर रखा है कोट और कुर्ता

पटना [प्रभात रंजन]। राजेंद्र नगर का इलाका आदोलनकारियों और साहित्यकारों का गढ़ माना जाता है। गोलबर से सटे गोल मार्केट के पास पीआरडी क्वार्टर के ब्लॉक नबर दो के 30वें फ्लैट में आज भी साहित्यकार फणीश्वर नाथ रेणु से जुड़ी निशानिया मौजूद हैं। रेणु ने अपने प्रवास के दौरान इसी आवास से साहित्य को गति प्रदान की और दिनकर, रामवचन राय, अज्ञेय और जयप्रकाश नारायण जैसे व्यक्तित्व के साथ सानिध्य भी बनाए रखा।

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क्वार्टर के आगे लगे हरे-भरे पेड़-पौधे इसकी खूबसूरती में चार चाद लगाते हैं। सफेद रंग से की गई पुताई रेणु की सादगी को बया करती है। इसी भवन में रेणु ने पत्नी लतिका रेणु के साथ अपने जीवन के सघर्षो को जीया है। आज भले ही रेणु हमारे बीच नहीं हैं मगर भवन में उपलब्ध स्मृतिया आज भी उनके होने का एहसास दिलातीं हैं।

पटना में रहकर करते रहे साहित्य की सेवा

भवन के अंदर जाते ही रेणु का सक्षिप्त परिचय लिखा हुआ दिखाई देता है। बिहार के पूर्णिया जिले के औराही ¨हगना गाव में चार मार्च 1921 में जन्म लेने वाले रेणु सुखी-सपन्न घर से तालुक रखते थे। पिता शिलानाथ मडल का व्यक्तित्व रेणु के ऊपर खूब चढ़ा। पिता किसान होने के साथ स्वराज आदोलन के प्रमुख भी रहे। अररिया हाई स्कूल से प्रारंभिक शिक्षा के बाद मैट्रिक नेपाल के विराटनगर आदर्श विद्यालय से कोईराला परिवार में रहकर पूरी की। इंटर काशी ¨हदु विवि से 1942 में करने के बाद स्वतत्रता सग्राम में कूद पड़े। मैला आचल आचलिक उपन्यास से अपनी पहचान बनाने वाले रेणु लोकतत्र रक्षी साहित्य मच की स्थापना करने के बाद पटना में रहकर साहित्य की सेवा करते रहे। भवन की दीवार पर स्वामी विवेकानद, रामकृष्ण परमहंस आदि की तस्वीर के साथ रेणु का चित्र भी परिजनों के साथ दर्शाया गया है। बरामदे में जय प्रकाश नारायण, आकाशवाणी साहित्य समारोह में साहित्यकारों के साथ ली गई तस्वीर के साथ अज्ञेय, रामवचन राय के साथ तस्वीर टंगी है।

फर्नीचर और पुराने कपड़े दिलाते हैं रेणु की याद

भवन के कमरे में रेणु जिस टेबल और कुर्सी पर बैठकर अपनी रचनाएं लिखते थें वो आज भी सुरक्षित हैं। रेणु की बेटी नवनीता सिन्हा बताती हैं कि रात में पिता हमेशा हल्का भोजन करते थे, क्योंकि पूरी रात टेबल और कुर्सी पर बैठकर काम करना होता था। सिन्हा बताती हैं, पिता खाने में मौसमी सब्जी के साथ नॉन वेज भी खाते थे। रात भर लिखते रहने के बाद कुर्सी पर ही टिक कर सो जाते थे। रात में देर तक जगने के बाद सुबह थोड़ा लेट से उठते थे। मा उनके लिए समय से खाना बनाकर रख देती थी। भवन की आलमारी में आज भी कुर्ता, कमीज और कोट सहेज कर रखे हैं।

रेणु की रचनाओं के साथ रखी है घड़ी

भवन के अंदर अलमारी में रेणु द्वारा रचित तीसरी कसम, मैला आचल, रेणु की रचनावाली, जुलूस, कितने चौराहे, आदिम रात्रि की महक के साथ बिहार विधान परिषद सदस्य परिचय आदि रखे हैं। पुरानी घड़ी और अशोक स्तभ आवास में रेणु के होने का एहसास दिलाते हैं।

साहित्यकारों का लगता था जमावड़ा

रेणु की बेटी नवनीता सिन्हा अपनी धुंधली यादों पर प्रकाश डालते हुए बताती हैं, पिता जी ने गाव से पटना आने पर इसी भवन को अपना ठिकाना बनाया था। शादी के कुछ समय बाद मैं भी पटना आ गई थी। पिता को देखने के लिए आया-जाया करती रही। आने-जाने के दौरान देखती कि घर में बड़े-बड़े साहित्यकारों का जमावड़ा लगा रहता था। रामधारी सिह दिनकर पिताजी के अच्छे मित्र हुआ करते थे। पिता श्रृंगार प्रेमी थे उनके लबे बाल उनका आकर्षण था। भवन के बरामदे में लगे दर्पण के सामने खड़े होकर अपने लबे बालों पर कंघी किया करते थे। दिनकर जी मजाक कर बोला करते थे कि रेणु कल के लिए भी कुछ छोड़ दो। भवन में दिनकर के साथ ओम प्रकाश पाडेय, बाबू लाल मधुकर, नृपेंद्र नाथ गुप्त आदि साहित्यकारों का जमावड़ा लगता था।

नवनीता सिन्हा कहती हैं कि मेरी शादी 1975 में पिताजी ने ही पटना में कराई थी। शादी के दो साल बाद यानि 1977 में लबी बीमारी के कारण पिता का देहात हो गया। नवनीता बताती हैं कि रेणु से जुड़ी शेष स्मृतियों को उनके गाव में बने सग्रहालय में सुरक्षित रखा गया है। जहा पर रेणु पर शोध करने वाले शोधार्थी व अन्य बुद्धिजीवी लोगों का आना-जाना लगा रहता है। पटना स्थित भवन में रेणु के परिवार आज भी स्मृतियों को सहेजने में लगा है। आज भी उनके कई चाहने वाले यहां पहुंच ही जाते है।


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