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ट्रेन हादसा: पटरी के कलेजे से लिपटी अभागी बोगी... सैल्यूट टु सहदेई, बिहजादी और बलुअर

अलसाई सुबह पौ फटने का इंतजार कर रही थी, तभी निस्तब्धता को तोड़ती जोरदार आवाज ने सबको चौंकाया। गांव की सुबह थी। गांव शहर से पहले जागता है। जो नहीं जगे थे, उन्‍हें हादसे न जगाया।

By Rajesh ThakurEdited By: Published: Sun, 03 Feb 2019 10:12 PM (IST)Updated: Mon, 04 Feb 2019 10:48 PM (IST)
ट्रेन हादसा: पटरी के कलेजे से लिपटी अभागी बोगी... सैल्यूट टु सहदेई, बिहजादी और बलुअर
ट्रेन हादसा: पटरी के कलेजे से लिपटी अभागी बोगी... सैल्यूट टु सहदेई, बिहजादी और बलुअर

पटना/सहदेई बुजुर्ग [भारतीय बसंत कुमार]। अलसाई सुबह पौ फटने का इंतजार कर रही थी, तभी निस्तब्धता को तोड़ती जोरदार आवाज ने सबको चौंकाया। गांव की सुबह थी। 'गांव' शहर से पहले जागता है। जो नहीं जगे थे, उन्हें सीमांचल एक्सप्रेस के हादसे के शोर ने जगाया। सहदेई बुजुर्ग स्टेशन की रेल पटरी पर पसरी चीख पड़ोस के गांवों की तंद्रा तोड़ चुकी थी। रेल डब्बों की हर गली, हर दरवाजे से चीख-कराहों से कोहराम मचा था। लेकिन, वह सहदेई, बिहजादी और बलुअर के लोगों का हौसला था कि एनडीआरएफ या अन्य सहायता आने के पहले ही लगभग सारे यात्रियों को सुरक्षित निकाल लिया गया। सहायता का 90 परसेंट काम इन गावों के युवाओं ने अपने बूते किया। सैल्यूट है इन्हें, इन या ऐसे गांवों के जज्बे को। 

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एक सीढ़ी निकली तो सीढि़यों की कड़ी दौड़ पड़ी 

बाधा के रोड़ों से लड़ता, जुगाड़ जुटाता इन गांवों का आदमी दूसरों की मदद के लिए बदहवास था। वह जागो मिस्त्री था, न मालूम बिजली वाला या बढ़ई वाला। शाश्वत सीढ़ी के हकदार इस आदमी के घर से जब पहली सीढ़ी निकली तो सीढिय़ों की कड़ी दौड़ पड़ी। यह पता नहीं चला कि रेल यात्रियों ने एसी डब्बा का शीशा तोड़ा या कि गांव वालों ने। जिसने भी तोड़ा? मौत के पंजे में फंसे, दम साधे असहाय यात्रियों की मदद की पहली खिड़की यहीं से खुली। फारबिसगंज के गोपाल जोशी कुंभ स्नान के लिए जा रहे थे। बताते हैं कि किसी को कुछ एहसास नहीं हुआ, जो हुआ एकदम से एकबारगी हो गया। 

बस यहां हर कोई इंसान था 

इस पूरे हादसे में ऊपर वाले का शुक्र तो है ही। पटरी के कलेजे से लिपटी एसी बोगी मानो रेल यात्रियों की जान बचा लेने की जद्दोजहद का सबूत दे रही थी। इतना बड़ा हादसा पर जान-माल का सीमित नुकसान। सबके लिए राहत की बात थी। एस-10 बोगी में सफर कर रहे मोहम्मद नैयर जोगबनी के हैं, इनके साथ सहरसा के मिथिलेश कुमार और बरसोई के शराफत हुसैन... इन जैसे कई इंसान। बस इंसान। न कोई हिंदू न मुसलमान। सब एक-दूसरे को मदद करते। बच जाने की खुशी घर वालों से साझा करते हुए। बची जिंदगी में ही नहीं, अलविदा हो चुकी जान का भी किस्सा कुछ ऐसा ही था। सुदर्शन दास, इल्वा देवी की लाश के साथ ही चिरनिद्रा में सोई सायदा खातून या फिर सुदर्शन की लाश के साथ मिट्टी की गोद में हमेशा के लिए सो गए समशुद्दीन या कि अंसार आलम। सब पर रेलवे की सफेद चादर। उधर, सरायधनेस की मस्जिद में अजान और इधर सहदेई के दुर्गा मंदिर में बची जिंदगी के इकबाल के लिए किसी ने घंटी बजाई। दुख बंटता भी है, यहां साफ दिख रहा था।

दिखा बिहारीपन का जज्‍बा

एसी बोगी से आखिरी आदमी के रूप में एक डॉक्टर साहब को निकाला गया। पैर में चोट और खौफ से वे बेहोश हो चुके थे। यह बिहारीपन का जज्बा भी था कि जो जैसे सुना दौड़ पड़ा। बिहजादी के गोपाल सिंह बताते हैं कि बोगी में दस मोबाइल बिखरे पड़े थे। चुन-चुन कर सबको लौटाया। एक आदमी की नगदी पड़ी थी, सहेज कर उसको दिया। सहदेई के उपेंद्र राय जैसे लोग अपने किशोर बेटे के साथ भाग-दौड़ लगातार करते रहे। एक वक्त ऐसा आया, जब सात बजे के करीब पुलिस ने मीडिया वालों को क्षतिग्रस्त डब्बे से दूर कर दिया। वहां जुटे हजारों लोगों की भीड़ ने यह समझा कि डब्बे के अंदर और लाशें पड़ी हैं, उन्हें निकालने और छुपाने के लिए मीडिया वालों को हटाया जा रहा है। फिर क्या था, भीड़ तन गई और पुलिस की तमाम रोक के बाद भी लोग डब्बे के अंदर चले गए। जब उन्हें तस्दीक हो गया कि अब केाई अंदर नहीं फंसा है, तब सब की सांस में सांस आई।

 विराट हृदय था

एक महिला सरबतिया देवी बलुआ की थी। पुलिस और भीड़ की जिद को देखकर रोने लगी। उसका अपना कोई नहीं था जो अंदर फंसा हो, पर विराट हृदय था जो पर पीड़ा से कातर हो उठा था- हे दईया कि करै छै लोग... जल्दी जे फंसल हय उनका निकालअ... वह रोने लगी थी। आज हाजीपुर में एम्बुलेंस वालों की हड़ताल थी, लेकिन अपने पेट से ज्यादा चिंता दूसरों की करने वाला बिहारी मन बिना समय गंवाए सेवा में जुट गया। पहला एम्बुलेंस जंदाहा के शाहपुर के ब्रजेश लेकर दौड़ पड़े। फिर तो एम्बुलेंस की कतार लग गई। गांव वालों ने इतनी राहत दी कि बाद में पहुंची नर्सों की टीम चादर बिछाकर बस बैठी ही रह गई। 

पुलिस-प्रशासन ने भी दिखाई भरपूर तत्परता

एक बात और पुलिस-प्रशासन ने भी भरपूर तत्परता दिखाई। रेल एसपी संजय सिंह खुद मोर्चा संभाले हुए थे। डब्बे के ऊपर जाकर भी स्थिति को नियंत्रित रखे थे। एनडीआरएफ की टीम भी अपने तो हर मोर्चे पर डटी रही, पर इस टीम के लिए इस हादसे में काम करने का मौका सहबिहबलु (सहदेई, बिहजादी और बलुअर) की टीम ले चुकी थी। यह ट्रेन कुंभ यात्रियों से अटी पड़ी थी। इन गांवों के लोगों ने मानवता के कुंभ में जो डुबकी लगाई, युगों तक इस पुण्य से सहदेई से बलुअर तक आबाद रहेगा।


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