संतुलित जीवन का आधार है संयम
पाटलिपुत्र दिगंबर जैन समिति की ओर से जैन मंदिर में पर्युषण पर्व के छठे दिन पूजन व सत्संग का आयोजन।
- पाटलिपुत्र दिगंबर जैन समिति की ओर से जैन मंदिर में पर्युषण पर्व के छठे दिन पूजन व सत्संग का आयोजन
-----------------------------
जैन महापर्व पर्युषण के छठे दिन कांग्रेस मैदान स्थित जैन मंदिर मीठापुर, मुरादपुर, गुलजारबाग आदि में शांति धारा पूजा की गई। कांग्रेस मैदान जैन मंदिर में दमोह मध्य प्रदेश से पधारे जैन ज्योतिष प्राच्य विद्या अनुसंधान केंद्र के निदेशक डॉ. पंडित अभिषेक जैन ने श्रद्धालुओं को पर्व की महत्ता बताई। भोपाल से आए मशहूर संगीतकार कुलदीप बसंत पार्टी ने भजन-कीर्तन कर जैन श्रद्धालुओं को आनंदित किया। भक्ति गीतों को जीवंत बनाने में राजेश जैन, प्रशांत जैन एवं संजय आदि की भूमिका रही।
पर्व के छठे दिन की शांतिधारा पूजा करने का सौभाग्य विकास सोनिया जैन को प्राप्त हुआ। दिगंबर जैन समिति द्वारा दस लक्षण पर्व के तहत सुगंध दशमी पर्व मनाया गया। इस अवसर पर जैन श्रद्धालुओं ने अपने कर्मो के क्षय की भावना को लेकर भगवान के समक्ष पूजा-अर्चना की। छठे दिन 'उत्तम संयम' धर्म के बारे में बताया गया। जैन मुनि आचार्य भद्रबाहु महाराज ने उत्तम संयम धर्म के बारे में बताते हुए कहा कि संयम के बिना आदमी पशु के समान होता है। महाराज ने कहा कि कितनी भी अच्छी गाड़ी हो अगर ब्रेक नहीं तो गाड़ी बेकार है। ठीक उसी प्रकार कोई कितना भी बेहतर इंसान हो अगर उसके जीवन में संयम का अभाव हो तो उसका जीवन बेकार है।
मानव जीवन में संयम का होना जरूरी
आचार्य मुनि ने कहा कि संयम से मानव अपना जीवन संतुलित रख सकता है। मानव जीवन में संयम है तो उसका जीवन भी संतुलित रहेगा। संयमी व्यक्ति अपनी इच्छाओं, मनोविकारों एवं प्रवृत्तियों को नियंत्रित करता है। आध्यात्मिक दृष्टि से संयम आत्मा का गुण है। संयम एवं दमन में अंतर है। संयम का अर्थ नियंत्रण एवं दमन का अर्थ दबाना है। दमन से मनुष्य की स्मृति का नाश होता है। जबकि सामान्य अर्थ में संयम एक प्रतिबंध एवं नियंत्रण है। संयमी व्यक्ति अपनी इच्छाओं, मनोविकारों एवं प्रवृत्तियों को नियंत्रित करता है।
जीवन में नियमों का पालन जरूरी
आचार्य मुनि महाराज ने कहा कि मानव जाति का अस्तित्व संयम के बिना संभव नहीं है। मनुष्य अपनी पाशविक वृत्तियों के नियंत्रण के द्वारा ही सामाजिक प्राणी बन गया है। नियमों का पालन करना ही सामाजिक संयम है। समाज की प्रत्येक इकाई अपने को संयम की परिधि में बांधकर जीवन व्यतीत करता है तभी समाज में शंाति व्यवस्था कायम रहती है। क्रोध पर संयम न रखने के कारण ही जीवन में अशांति, व्याकुलता, द्वेष, अमानवीयता, क्रूरता आदि भावों एवं वृत्तियों का संचार होता है। जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में संयम अनिवार्य है। कार्यक्रम के दौरान मीरा छाबड़ा, उमा छाबड़ा, चंदा रारा, कुसुम पांडया, डॉ. गीता जैन, कांता गंगवाल, मंजू पाटनी, कल्पना सेठी, संतोष गंगवाल, वीणा जैन, पुष्पा जैन, प्रीति बड़जात्या, रजनी विनायका, सरला छाबड़ा, चंद्रा पहारिया आदि मौजूद थे।