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तेजप्रताप के बदलते पैंतरे ने लालू परिवार और राजद को दुविधा से उबारा है, जानिए

तेजप्रताप की अपनी पत्नी एेश्वर्या राय से तलाक की खबरों के बीच एक ओर जहां लालू परिवार की बदनामी हो रही है वहीं राजद के नए नेतृत्व ने नकारात्मक आशंकाओं को कमजोर किया है। जानिए कैसे..

By Kajal KumariEdited By: Published: Tue, 06 Nov 2018 10:19 AM (IST)Updated: Tue, 06 Nov 2018 10:19 AM (IST)
तेजप्रताप के बदलते पैंतरे ने लालू परिवार और राजद को दुविधा से उबारा है, जानिए
तेजप्रताप के बदलते पैंतरे ने लालू परिवार और राजद को दुविधा से उबारा है, जानिए

पटना [अरविंद शर्मा]। तेजप्रताप यादव और ऐश्वर्या राय के संबंधों में खटास से लालू परिवार की फजीहत तो हो रही है किंतु ताजा विवाद ने राजद के नए नेतृत्व को लेकर नकारात्मक आशंकाओं को कमजोर किया है। इस मामले में तेजप्रताप जितनी दूर जाएंगे, उतनी ही उनकी किरकिरी होगी और साथ ही पार्टी का नया नेतृत्व उतना ही ज्यादा मजबूत भी होगा। 

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ऐश्वर्या से तलाक के लिए तेजप्रताप की अदालत में अर्जी, के सुर्खियों में आते ही राजद के नेता, कार्यकर्ता एवं समर्थक आशंकित होने लगे थे। सबकी निगाहें लालू परिवार के अगले कदम की ओर टिक गईं कि अब आगे क्या होता है। नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव दो दिनों से बीमार थे। वह किसी भी कार्यक्रम में नहीं जा रहे थे। किंतु अगले ही दिन राजद के अति पिछड़ा सम्मेलन में तेजस्वी ने न केवल शिरकत की, बल्कि अपने परिवार की बातें भी दमदारी से कीं। 

दूसरी तरफ, सियासत में छाने, प्रतिद्वंद्विता में आगे निकलने और चर्चाओं में बने रहने की चाहत में तेजप्रताप की नाव पार्टी की राजनीति में धीरे-धीरे मंझधार की ओर खिसकती जा रही है। हैरत तो यह कि मुसीबत में साथ निभाने वाले घर-परिवार और पत्नी का पतवार भी उन्होंने छोड़ दिया। इससे समर्थकों में तेजस्वी की स्वीकार्यता मजबूत होती दिख रही है।

लालू की राजनीति को करीब से जानने वाले राजनीतिक विश्लेषक प्रेम कुमार मणि के मुताबिक राजद में लालू की जगह तेजस्वी ने ले ली है। उनकी राजनीति को जितनी मुश्किलों से गुजरना पड़ेगा, उनके नेतृत्व में उतना ही निखार आता जाएगा। राजद पर किसी तरह के असर से प्रेम कुमार इनकार करते हैं और कहते हैं कि तेज प्रताप के सामने उनके परिवार का पूरा इतिहास है। राबड़ी के भाई साधु और सुभाष यादव के विद्रोह का हश्र सामने है।

रंजन यादव की राजनीति लगभग खत्म हो गई। रामकृपाल यादव भी राजद के वोट बैंक को प्रभावित नहीं कर सके। लालू ने तेजस्वी को डिप्टी सीएम बनाकर हैसियत दी थी, किंतु हालात ने सत्ता से बाहर कर उन्हें नेता बना दिया है। अब तेज प्रताप खुद ब खुद राजद की मुख्यधारा से किनारे होते जाएंगे। 

पहले भी अड़ चुके हैं तेजप्रताप

तेज प्रताप के अडिय़ल रवैये के चलते राजद के शीर्ष नेता भी मान रहे थे कि दोनों भाइयों के बीच कभी न कभी सत्ता संघर्ष जरूर होगा। इसकी झलक पहली बार तब स्पष्ट दिखी थी, जब करीब तीन महीने पहले तेज प्रताप ने एक कार्यकर्ता राजेंद्र पासवान को प्रदेश कमेटी में महत्वपूर्ण ओहदा दिलाने के लिए पार्टी और परिवार में हंगामा मचा दिया था।

तेजप्रताप ऐसे मचल गए थे कि प्रदेश अध्यक्ष रामचंद्र पूर्वे समेत कई नेताओं के नहीं चाहते हुए भी राजेंद्र पासवान को प्रदेश महासचिव बनाने की अधिसूचना जारी करनी पड़ी थी। वह भी तब जबकि नई प्रदेश कमेटी की घोषणा भी नहीं हुई थी। माता-पिता की नसीहतों और पार्टी नेतृत्व की बंदिशों की अनदेखी करते हुए तेज प्रताप ने सोशल मीडिया पर अपनी व्यथा-कथा का इजहार भी किया था। 


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