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अपने पिता का सियासी पैटर्न उलटने में लगे हैं तेजस्वी, क्या बेटे की बात मान जाएंगे लालू...

राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव के छोटे पुत्र तेजस्वी यादव उनके सियासी पैटर्न को बदलने में लगे हैं। लेकिन लालू यादव इसके लिए तैयार नहीं हैं और इसे पार्टी के लिए घातक बता रहे हैं।

By Kajal KumariEdited By: Published: Fri, 24 Jan 2020 09:13 AM (IST)Updated: Fri, 24 Jan 2020 11:46 PM (IST)
अपने पिता का सियासी पैटर्न उलटने में लगे हैं तेजस्वी, क्या बेटे की बात मान जाएंगे लालू...
अपने पिता का सियासी पैटर्न उलटने में लगे हैं तेजस्वी, क्या बेटे की बात मान जाएंगे लालू...

 

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पटना [अरविंद शर्मा]। राजद प्रमुख लालू प्रसाद की राजनीति विशेष रूप से दो बातों के लिए जानी जाती है- मुस्लिम-यादव (माय) समीकरण और पिछड़ावाद। माना जाता है कि इसी फार्मूले के दम पर लालू के पास एक निश्चित वोट बैंक भी है। किंतु अति पिछड़ों की भागीदारी बढ़ाने के नाम पर अब उनके ही उत्तराधिकारी तेजस्वी यादव ने इसे बदलने की शुरुआत कर दी है। दिक्कत यह है कि लालू मान नहीं रहे। वह तेजस्वी के नए फार्मूले को राजद के लिए घातक बता रहे हैं। 

पूर्व केंद्रीय मंत्री एवं राजद के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष रघुवंश प्रसाद सिंह के दबाव के बाद राजद में जिलाध्यक्षों की सूची आखिरकार तैयार कर ली गई है, जिसमें लालू के आजमाए हुए माय समीकरण से पीछा छुड़ाने का प्रयास साफ दिख रहा है। बिहार में राजद के 50 संगठन जिले हैं। अभी तक 90 फीसद जिलाध्यक्ष यादव और मुस्लिम समुदाय से हुआ करते थे। पिछली बार सिर्फ पांच जिलों की ही कमान अन्य समुदायों को दी गई थी।

अनुसूचित जाति और अति पिछड़े वर्ग से दो-दो और एक जिले में सवर्ण को अध्यक्ष बनाया गया था। किंतु इसबार तेजस्वी की इच्छा और हस्तक्षेप के कारण माय समीकरण वाले जिलाध्यक्षों की संख्या में भारी कटौती कर दी गई है। दो दर्जन जिलों की कमान अति पिछड़े और अनुसूचित जाति को दे दी गई है। यानी पिछली बार की तुलना में पांच गुना ज्यादा। एक सवर्ण का कोटा शिवहर में बरकरार रखा गया है। 

हालांकि तेजस्वी की सूची पर अभी लालू प्रसाद की मुहर लगना बाकी है। किंतु लालू परिवार से जुड़े सूत्रों के मुताबिक विधानसभा चुनाव से पहले राजद प्रमुख संगठन में ज्यादा उखाड़-पछाड़ के पक्षधर नहीं हैं। आने वाले विधानसभा चुनाव को वह निर्णायक और तेजस्वी के भविष्य के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण मान रहे हैं।

उन्हें आशंका है कि दशकों से जिलों में जमे राजद के यादव और मुस्लिम जिलाध्यक्षों को अगर हटाया गया तो परंपरागत वोट बैंक प्रभावित हो सकता है। चुनाव के दौरान बगावत का भी खतरा हो सकता है। 

सवर्ण प्रेम की इतिश्री

जिलाध्यक्षों की सूची बता रही है कि तेजस्वी यादव ने अपनी राजनीतिक कार्यशैली में कोई खास बदलाव नहीं किया है। लोकसभा चुनाव की हार ने भी उन्हें कोई खास सबक नहीं दिया है। सवर्णों पर वह अभी भी दांव लगाने के लिए तैयार नहीं हैं। जगदानंद सिंह को राजद का प्रदेश अध्यक्ष बनाकर उन्होंने सवर्ण प्रेम की इतिश्री कर ली है। संगठन के 50 जिलों में सिर्फ शिवहर में दीपू वर्मा को बरकरार रखा है।


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